पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/६०२

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अन्नगन्धि-अन्नपाक बीमारी। अन्नगन्धि (सं० पु०) अतिसार रोग। दस्तको। सब जगह समान जल रहने और सब जगह समान ताप लगनसे एक साथ हो सब चावल पक अन्नछत्र (सं० पु.) भूखे कङ्गालोंको भोजन जाते हैं। फिर हांडीका एक चावल दाब कर देनेका स्थान । देखनेसे ही मालूम हो जाता है, कि सब चावल पक अब्रज, अनजात (संत्रि.) जो अनसे पैदा हो। गये हैं, कि नहीं। किन्तु यदि हांड़ी एक ओर अन्नजल (सं० पु.) आब दाना । दाना पानी। ऊंची और दूसरी ओर नीची हो, तो सब ओर समान अन्नजित् ( स० त्रि०) विजय हारा भोजन प्राप्त जल नहीं रहता, और चल्ह में एक ओर आंच लगनेसे कारी, जो जीतकर खाना हासिल करे। हांडी भरका अन्न एक बार ही नहीं पकता। एक अन्नजीवन (स० त्रि.) अन्न जिसका जीवन हो, संस्कृत श्लोक है,- जो अन्न हो खाकर रहता हो। “स्थालौस्थास्तण्डुला एते सव्वं विनित्तिभागिनः । अनतेजस् (स त्रि.) जिसमें अन्नको शक्ति हो। समकालाग्निस'योगभागित्वात् प्रतिपन्नवत् ॥" अन्नद (सं० पु.) अनं ददाति अब-दा-क। अन्न एक चावल पक जानेसे ही निश्चित हो जाता है, दाता, अन्न-देनेवाला। प्रतिपालन करनेवाला। कि सारी हांडीके चावल पक गये हैं। कारण, सब अन्नदा (स. स्त्री०) भगवतीको मूर्तिविशेष। चावलोंमें एक ही समय आंच दी जाती है। अन्नपूर्णा । अन्नपूर्णा देखो। नया चावल शीघ्र पक जाता है, इसलिये उसमें अबदाता (सं० पु०) अन्नद देखो। थोड़ा जल देकर पकाना चाहिये। पुराना चावल अन्नदान (हिं० पु०) अन्न दान करना, भोजन देना। कुछ देरसे पकता है, इसलिये उसके पकानेके लिय अन्नदास (सं० पु०) अन्ने न पालितो दासः। खाली अपेक्षाकृत अधिक जल देना चाहिये। चावल पेटभर खानेपर जो नौकरी करे। पक जानेपर हमलोग मांडको निकाल देते हैं, पर अबदेवता (स० पु.) खानेको वस्तुओं के देवता। चावलमें मांड लपटा रहनेके लिये थोड़ा ही जल अन्नदोष (स० पु०) अब्रेन अन्नभोजनप्रतिग्रहा देना उचित है। चावलके ऊपर प्रायः पांच अंगुली दिना वा जातो दोषः। ३-तत् । अभक्ष्य अन्न खानेका जल रहनेसे अन्न सुसिद्ध होता है। और मांड भी पाप। निषिद्ध स्थान या मनुष्यका भोजन करनेसे नहीं निकालना पड़ता। मांडसहित भात खाना जो दोष लगे। ही उचित है। उससे शरीर पुष्ट होता है। (सं० पु.) भूखका अभाव, भोजनको उदरपीड़ा आदिके रोगौके लिये मन्द-मन्द प्रांच में चावल पकाना चाहिये। कण्डेको गोल और कुछ अन्ननालो (हिं. स्त्री०) गलेके नौचेको वह राह ऊंचौ अहरी बनाने। फिर उसे जलाकर उसके जिससे अन्न आदि पेटमें जाते हैं। ऊपर जलसे आधा भरा हुआ भात बनानेका बतरन अबपति (स.पु.) भोजनके स्वामी। शिव, रख दे। उधर जबतक जल गर्म हो तबतक इधर सावित्री और अग्निको उपाधि । पतले पुराने चावलको जलके साथ पस्थरपर रगड़े। अन्नपाक (स.पु.) अवस्य. पाकः। ६-तत्। जब चावल कुछ घिस जांय तब उन्हें बरतनमें डालकर चावल आदि पकाना। भात बनाना। पाकस्थलीमें ढक देना। बहुत देर तक मन्द-मन्द आंच लगनेपर अबका पचना। जव चावल पक जाय, तो वरतनको उतार लेना। हम लोग जिस तरहका अन्न खाते हैं, उसका ऐसा भात बहुत ही हलका पथ्य होता है। पकाना कठिन नहीं है। दूने जलके साथ हांडीमें मोगल प्रभृति कोई-कोई जाति कई तरहके चावल पकानेसे ही भात तय्यार हो जाता है, हाड़ोमें मसाले देकर अनेक प्रकारसे भात बनाते है। वह अन्नद्देष अनिच्छा।