पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/६०६

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अन्य-अन्यथाख्याति अन्यकाम उत्पन्न होती है। अन्यच्च अन्य (स. त्रि०) अन-यक् औणादिकः। भिन्न, | अन्यतस् (सं० अव्य० ) अन्य सप्तम्यर्थे तसिल । अन्यसे इतर, असदृश्य, अपर, दूसरा, और कोई, कईमें एक । दूसरेसे इत्यादि। अन्ततस् देखो। (स• त्रि०) दूसरेसे प्यार करनेवाला, | अन्यतस्ता (सं० अव्य०) अन्यतोऽन्यस्मिन् स्खेतरपक्षे. औरको चाहनेवाला। भव: अन्यतस्-त्यप्। शत्रु, विपक्ष, स्वपक्षभिन्नजात । अन्यकारूक (स० पु०) अन्यत् विकृतं करोति क अन्यतोपाक (सं० पु०) नेत्रकी वह पौड़ा जो उण्। विष्ठामल, जो अन्य प्रकार करे, जो दूसरी | भौंह, दाढ़ी और कान वगेरहमें वायुके घुस जानेसे तरह करे। अन्धकारका (सं. स्त्रा०) एक प्रकारका कीड़ा | अन्यत्र (सं० अव्य.) अन्यस्मिन् अन्य-वल्। अन्य जो मलमें पैदा होता है, मलका कोड़ा। समयमें, अन्य देशमें, और कहीं, दूसरी जगह । अन्यक्कत ( स० त्रि०) दूसरेका किया हुआ, किसी अन्यत्वभावना (सं० स्त्री०) जैनशास्त्रके मतानुसार औरका किया हुआ। जीवात्माको शरीरसे भिन्न समझना। अन्यक्षेत्र (स० क्लो०) दूसरी सीमा, दूसरौ जमौन । अन्यथा (सं० अव्य०) अन्य प्रकार थाल् । अन्यग, अन्यगामिन् (सं० वि०) व्यभिचारी, दूसरे प्रकार, निष्कारण, वितथ, मिथ्या, असत्य, विपरीत, के पास जानेवाला। औरका और, अभाव, विरोध, दुष्ट । अन्यगोत्र (सं० त्रि०) अन्यकुलका, दूसरे खान- | अन्यथाकारम् (सं० अव्य०) अन्यथा-णमुल्। जो दानका, दूसरे गोत्रका। काम जिस तरह करना चाहिये उससे विपरीत । (क्रि वि०) अन्य भी, और भौ। नियमविरुद्ध। अन्यचित्त (सं० लो०) अन्यत् अन्यथाभूतं चित्तम्। अन्यथाख्याति (सं० स्त्री० ) अन्यथा अनारूपेण विषयको आलोचनामें असमर्थ चित्त, अन्यमनस्क, वह जाता ख्याति: ज्ञानम् । भ्रमात्मक ज्ञान, गलत खयाल । जिसका मन किसी दूसरे वा दूसरी चीजपर लगा हो। अप्रकृत वस्तुको प्रकृत वस्तु समझना। जैसे रज्ज सर्प अन्यज, अन्यजात (सं० वि०) दूसरे किसीका वा नहीं है, अथच रज्जुमें रज्जुज्ञान न होकर जो सर्प- दूसरे खानदानका जन्मा हुआ। ज्ञान होता है, इसी मिथ्याज्ञानको अनाथाख्याति अन्यजन्मन् ( सं० त्रि०) दूसरा जन्म, फिर जन्म लेना। कहते हैं। शरीर आत्मा नहीं है आत्मा और अन्यत् (स० त्रि.) कोई और, दूसरा । अन्य शब्द देखो। शरीर दो पृथक् पृथक् पदार्थ हैं। ऐसे स्थानमें यद्यपि अन्यत्काम (सं० त्रि०) किसी दूसरी वस्तुका, कहा जाय-'मैं गौरवर्ण है। तो इसे भ्रमात्मक किसी दूसरी चीजको इच्छा करनेवाला, किसी ज्ञान अर्थात् अनाथाख्याति कहेंगे। कारण, 'मैं और चीजका चाहनेवाला। ऐसा कहनेसे मेरी आत्माका हो बोध होता है। अन्यत्कारक (सं० त्रि०) अन्यस्य कारकः । अतएव आत्मा कभी गौरवर्ण नहीं हो सकती। प्रकृत जो अन्य कार्य करे, दूसरा काम करनेवाला। पक्षमें मेरा शरीर ही गौरवर्ण है। अन्यत्क्रो (स. त्रि०) पढ़ने आदिमें भूल पुनश्च, इदमें वह्नि नहीं रहता। अतएव 'इदो करनेवाला। वह्निमान्' ऐसा विश्वास करनेसे उसे भ्रमात्मक ज्ञान अन्यतम (सं० त्रि.) अन्य-डतमच् । अनेकमेंसे कहेंगे, सुतरां ऐसे भ्रमात्मक ज्ञानको अनाथाख्याति निर्धारित एक वस्तु वा व्यक्ति ; बहुतमेंसे एक चीज कहते हैं। वा आदमी। मीमांसक लोग भ्रम नहीं मानते। वह सब ऐसे अन्यतरदुस् (सं० अव्य०) अन्यतरस्मिनहनि एदुस् । ज्ञानको 'असंसर्गाग्रह' कहते हैं। 'इदो वह्निमान्' अन्यतर दिवसमें, अन्यदिनमें, दूसरे दिन। ऐसा कहनेसे वह सब इद और अग्नि दोनों