पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/६१३

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अन्ववक्षा-अवारोहण देना। अन्ववेक्षा (सं० स्त्री० ) अनु-अव-ईक्ष-अ-टाप् । अपेक्षा, उसमें दो चार समिध् लकड़ियोंका देना, होमकी अनुरोध, सोच विचार। आग स्थापन करनेके बाद उस आगको बनाये रखनेके अन्वष्टका (सं० स्त्री०) अन्वन्ति भुञ्जते पितरो यस्यां लिये उसमें और कुछ लकड़ियों का छोड़ना। सा अष्टका। श्राद्धका कालविशेष । मुख्य अग्रहायण, अन्वाधि (स'• पु०) अनु पश्चात् अधिः प्रत्यर्पण पौष, और माघमासको कृष्णाष्टमीको तीन अष्टका अनु-आ-धा-कि। अपने पास रखे हुए मालको उसीके श्राद्ध होते हैं। उसके बाद तीन कृष्णा नवमी को मालिकके पास भेज देना, किसीकी धरोहर किसी अष्टका श्राद्धका विधान है। दूसरे आदमीको मार्फत उसके मालिकके पास भेज अन्वष्टमदिश (स० त्रि०) उभयतः अष्टमी दिशम् २ पश्चात्ताप, पछतावा । अनुलक्ष्योकत्य अच्-स० । पश्चिमोत्तर कोण, वायुकोण। अन्वाधय (सं० लो०) विवाहस्य पश्चात् आधेयं वायुकोणकी ओर मुहकरके। लब्ध। अनु-आ-धा-यत् एत्वम् । वह धन जो विवाह- अन्वह (स. त्रि.) अनि अङ्गि वीप्सार्थे अव्ययो, के बाद स्त्रीको भर्तृकुल, पिढमाकुल एवं स्वामी अच-स•। प्रत्यह, प्रतिदिन, हर रोज । और मातापितासे मिले । अन्वहन् (स त्रि०) अह्नि अङ्गि वोप्सार्थे अव्ययौ । "विवाहात् परतो यत्तु लब्ध भत्तू कुतात् स्त्रिया । प्रति दिन, दिन दिन, हर रोज । अन्वायं तदुक्तन्तु लब्ध' बन्धुकुलात्तथा ॥ अन्वाख्यान (स. क्लो) अनु पश्चात् आख्यानम् । ऊई' लब्धन्तु यकिञ्चित् सस्कारात् प्रीतित: स्त्रिया । अनु-आख्या-ल्युट् । तात्पर्य समझा देनेके लिये भर्तुः सकाशात् पिबोचा अन्वाधेयन्तु तभृगुः ॥" (कात्यायन) पुनर व्याख्या, अच्छीतरहसे मतलब समझा देना। अन्वाध्य (सं० पु.) एक प्रकारके देवता । अन्वाचय (सं० पु०) अनु प्रधानस्य पश्चात् आचौ अन्वान्त्र (सं० त्रि.) अन्तरीके भीतर । यते बोध्यते उद्दिश्यते वा अनु-आ-चि कर्मणि अच् । अन्वायतन (संत्रि०) आयतनस्य मध्ये विभक्त्यर्थ आनुषङ्गिक, प्रधान उद्देश्य के अन्तर्गत सामाना उद्देश्य । अव्ययौ। यज्ञग्रहमें, यज्ञराहके अनुगत, यजगह- खास कामके साथ साथ और एक काम करनेका प्राप्त । अन्वायत्त (सं० वि०) अनु पश्चात् आयत्त आयत्तो- अन्वाचित (सं० त्रि०) दूसरी श्रेणीका, अदना, कृतं। अनुगत, अनुसार, मुताबिक । कमकद्र। अन्वारब्ध (संत्रि०) अनु पश्चादारब्ध', अनु-बा- अन्वाज (सं. अव्य०) अनु पश्चात् पा सम्यक् जयति रभ-क्त। कृतस्पर्श, पश्चात् स्पृष्ट, पीछे लगे रहना, जययुक्ता भवन्ति प्राणिनो येन। दुर्बलका बलाधान, जो पौछ प्रारम्भ किया गया है। बलहीनको बलप्राप्ति। अन्वारभ्य (सं० त्रि०) अनु-आरभ्यते अनु-प्रा-रम- अन्वादिष्ट (सं० वि०) पुनः नियत किया, फिर मुकर्रर कर्मणि यत्। स्पर्शके योग्य, छुनेके लायक, माकूल, किया, कमकद्र। मुनासिब । अन्वादेश (सं० पु.) अनु-पश्चात् आदेशः । अनु-पा- अन्वारम्भ (सं० पु.) अनु सह पश्चादा आरम्भः । दिश ।। अनुकथन। किसीके एक काम कर लेने पश्चात् आरम्भ, पोछे प्रारम्भ किया हुआ। छूत लगाव । पर उसे दूसरा काम करनेको आज्ञा। जैसे, इसने अन्वारम्भणीया (स. स्त्री०) प्रथम रीति, पहली व्याकरण पढ़ लिया है, अब इसे वेद अध्ययन कराओ। अन्वारूढ़ (सं० त्रि.) अनु-प्रा-रूह-क्त । अधिरूढ़, अन्वाधान (सं० लो) अनु आधीयते अनु-आ-धा पीछे चढ़नेवाला। भावे ल्युट । होमाग्नि स्थापन करनेके उपरान्त अन्वारोहण (स० को०) अनु-पश्चात् आरोहणं अनु- रस्म।