पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/६२

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अक्षरलिपि पण्डितोंने ललितविस्तरको सन् ई०से पहलेको दूसरी आविष्कृित बुद्धदेवके देहावशेषको रक्षा करने वाले शताब्दिका ग्रन्थ माना है। किन्तु हम इससे भी पत्थर पर खुदी हुई लिपि इस बातको गवाही देती पुराना समझते हैं। सम्राट अशोकके यत्नसे जैसे बौद्ध है। पिपरावा-लिपि देख इम समय दृढ़ विश्वास धम फैलाने के लिये पश्चिममें यूनान, उत्तरमें मङ्गोलिया, होता है, कि सन् ई से पहले को छठी शताब्दिस भी पूर्व में कम्बोज और दक्षिणमें लङ्कातक धम्माचार्य भेजे पहले भारतवर्षमै पत्थरपर अक्षर खोदन की प्रथा गये, वैसे ही सभ्य जगत्कै प्रायः सभी स्थानोंसे लोग प्रचलित थी। मगधपति जरासन्धकी राजधानी गिरि- श्रा अशोकके साम्राज्यमें नाना कार्योपलक्ष्यसे बसने व्रजमें जरासन्धक कमर और भीम जगमन्धकी रण- लगे थे, हम नहीं समझते, कि इस समय भारतमें रङ्गको भूमिपर चित्रलिपि और कौनसा शिल्पलिपि- नाना विदेशीय संस्रवोंसे जितने प्रकारको लिपि या के बीचको लिपि पर्वतगात्रमें उत्कोण रही है। उसके अक्षरमाला प्रचलित हुई थी, पहले और किसी ऊपर बहुत समयसै गो और भम आदिक अान समय उतने प्रकारको लिपि या अक्षरमाला देखने में जाने की राह होने से वह प्राचीनतर लिपि कितनी आई हो।* भारतीय बौद्धोंके इसी सुवर्णयुगमें यहां ही अस्पष्ट और अबोध्य हो गई है। हम विश्वास जितने प्रकारको लिपि प्रचलित हुई थी, सम्भवतः होता है, कि आज तक भारतमें जितने प्रकारको ललितविस्तरके बनानेवालेने उतने प्रकारको लिपिका लिपि आविष्कृत हुई है, उनमें वह मगधनिपि सबसे उल्लेख किया है। पुरानी है। कौन कह सकता है, कि वह जरासन्धक लङ्का, ब्रह्म और श्याम देशवाले बौद्ध ग्रन्थों के समयकी लिपि नहीं है? मतसे सन् ई०से ५४३ वर्ष पहले बुद्धदेवका निर्वाण जो हो, हम समझते हैं, कि २२०० वर्ष पहले और निर्वाणसे २१८ वर्ष पीछे यानी सन् ई०से ३२५ भारतवामी ६४ प्रकारको लिपि जानते थे। इन ६४ वर्ष पहले अशोकका साम्राज्याभिषेक कार्य सम्पन्न लिपियोंमें कितनी हो सम्राट अशोकर्म भी बहुत हुआ था। [प्रियदर्शी शब्दमें विस्तृत विवरण देखना चाहिये।] पहले भारतमें प्रचलित थीं । जैनियोंकि मप्राचीन इसके बाद अशोकको राजधानीमें ६४ प्रकारको “समवायमूत्र" नामक ४थे अङ्गमं लिखा है-- लिपिका चलना कुछ विचित्र नहीं। इस समयके यूनानी “बम्भी एग अठारम विह लम्ब कविताना **** ***** नियखूस (Nearchus)को विवरणीमें लिखा है, कि उरियार खरीदिया पुग्वरमारिया । पाक सय १५५ कार पाथिया भारतवासी रूईके वस्त्र या काग़ज़ पर अक्षरयोजना भोमवया व विद्या निक्कैइया । Shifaixi.f. गन्ध मिनि करते थे। उनसे कुछ समय पीछे यूनान-दूत मेगस्थि- श्रादसमगन्निवि माहेसरनिविदामिलिलिनि योनिदिति ।" निस् मगधराज्यको वर्णनाके उपलक्ष्यमें लिख गये हैं, ब्राह्मी प्रभृति १८ प्रकारको लग्वन प्रक्रियाओंक कि भारतवासी १० ष्टेडियाम् दूर शाखापथ और नाम यह हैं-१ ब्राह्मो, २ यवनानी, ३ दशोतरिका, उसके अन्तर्वर्ती स्थानको दूरी बतानेवाला कोसके ४ खरोष्ट्रिका, ५ पुष्करमारिका, ६ पार्वतिका, " अङ्कोंसे युक्त प्रस्तरफलक (mile-stone) रखते थे। उत्तरकुरुका, ८ अक्षरपुस्तिका, ८ भीमहिका, १० पत्थरमें अक्षर-खोदनेकी प्रथा उस समय खूब प्रचलित विक्ष पिका, ११ निक्ष पिका: १२ अङ्ग, १३ गणित, १४ थी। अशोकके अनुशासन और उससे भी बहुत गन्धर्व, १५ आदर्शक, १६ माहेश्वर, १७ द्राविड़ी पहले कपिलवास्तुके निकटवर्ती पिपरावा गांवसे और १८ बोलिदो (?) लिपि ।

  • शकाधिप कनिष्कका अधिकार उत्तरमैं खुतन, पश्चिममें ईरान और

पूर्व में पूर्ववङ्ग तक फैल गया था सही, किन्तु वहाँसन् ई० की पहली शताब्दि- में विद्यमान अवश्य थे। यह बात सन् ई०से पहलौ शताब्दिक चीन-अनु- वादसे प्रमाणित है, कि इससे पहले ललितविस्तर बनाया गया था।

  • 'खरसारिया-पाठान्तर ।

+ 'दोषउरिया--पाठान्तर । भोगवयत्ता-पाठान्तर। +t 'वयनतिया निराहत्या, बंगगिया. निहत्या-पाठान्तर ।