पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/६२०

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आलसी। गर्भदानी वृक्ष, अपटु-अपवपिष्णु ग्रस्त, रोगी, पटुतारहित, जो कार्यकुशल न हो, . अपत्नी (सं. स्त्री०) अविद्यमानः पतिर्यस्य । पति- होना, जिस स्त्रीका स्वामी न हो। अपटुता (सं० स्त्री०) अकुशलता, पटुताका अभाव । अपत्नीक (सं० पु०) नास्ति सन्निधाने कर्मयोगया, अपठ (हिं० वि०) निरक्षर, बेवकूफ, जो पढ़ा न हो। जीविता वा पत्नी यस्य कप। जिसको स्त्री यागादि अपमान (हिं० वि०) जो पढ़नेके लायक न हो, जो क्रिया वा सन्तानोत्पादनमें असमर्थ हो, जिसकी स्त्री पढ़ा न जाय। मर गई हो। अण्डर (हिं० पु०) शङ्का, भय, खौफ। अपत्य ( स० लो०) अप-तनोतेः पते ा यक् । निया- अपडरना (हिं. क्रि०) शङ्कित होना, भय खाना, त्यते। जिसके द्वारा वंश लोप नहीं होता, पुत्रकनया भयभीत होना। प्रभृति सन्तान। अपड़ाना (हिं. क्रि०) खींचा तानी करना। अपत्यकाम (सं. त्रि०) सन्तानको चाह रखनेबाला। अपड़ाव (हिं० सं०) लड़ाई, झगड़ा, कलह । अपत्यजीव (सं० पु०) एक प्रकारका पौधा । अपढ़ (हिं० वि०) अपठ, मूर्ख, बिना पढ़ा हुआ। अपत्यदा ( स० स्त्री०) अपत्यं सन्तानोत्पादनहेतुं अपण्डित (स त्रि०) जो पण्डित न हो, मूर्ख । गभं ददाति अपत्य-दा-क टाप । अपण्य ( सं त्रि०) न पण विक्रयम् अप्राशस्त्ये जिसके सेवन करनेसे गर्भ सञ्चार हो, मन्त्रादि देव- नञ्-तत्। अविक्रेय द्रव्य, जो चीज बेचने लायक न क्रिया जिससे गर्भ रहे। हो, शास्त्रानुसार जाति विशेषको जिस पदार्थंके अपत्यपथ (स• पु०) अपत्यस्य गर्भात् तन्त्रिःसरणस्य बेचनेका निषेध हो। जैसे ब्राह्मणोंके लिये लवण, पन्थाः, अच् स०। योनि । पक्वान्न, मधु, दधि, दुग्ध, घृत, जल, गन्धद्रव्य, लाक्षा, अपत्यविक्रयो (सं० पु.) अपने बाल बच्चोंका लालवस्त्र, गुड़, तेल इत्यादि द्रव्योंका बेचना मना है। बेचनेवाला। अपतन्त्रक (सं० पु०) अपगतं तन्त्रं यत्र कप्। अपत्यशत्रु ( स० पु०) अपत्यमेव शत्रुर्यस्य । कर्कट, वायुरोग विशेष, धनुष्टङ्कार। केकड़ा, सांप। अपत (हिं० वि०) पत्रविहीन, विना पखेका, कहते हैं, कि अण्डे देनेके बाद केकड़ीका पेट निर्लग्न, नग्न, अधम, नीच, विपद। फट जाता और वह मर जाती है। अपतई (हिं. स्त्री०) ढिठाई, निर्लज्जता अपत्यसाच् (सं० पु०-स्त्री०) अपत्य ः सन्तानः सचते अपतर्पण (सं० लो०) अपगतं तर्पण भोजनादिक सम्बध्यते अपत्य-सच-खि । अपत्यसमवेत, सन्तान- अप-टप-भावे ल्युट । लङ्घन, रोगका उपवास, दृप्ति युक्त। बाल बच्चों सहित । का अभाव, तृप्तिशूना। अपत्र (सं० पु.) नास्ति पत्रपणं पक्षो वा यस्य । अपतानक (सं० पु.) अप-तन कर्तरि बांशका कोंड़, अङ्गुर, विना पत्तेका वृक्ष, विना वातरोग विशेष। पङ्घका पक्षी। अपताना (हिं. पु०) प्रपञ्च, जञ्जाल, बखेड़ा। अपनप (सं० त्रि.) अपगता नपा लज्जा यस्य अपति (हिं० वि०) विधवा, पतिविहीन, दुर्दशा, | हस्खः। लज्जाहीन, बेशर्म । दुराचारी, पापी। अपत्रपा (सं० स्त्री०) अपरात् अनातः त्रपा लज्जा। अपतिका (सं० स्त्री०) नास्ति पतिर्यस्याः नञ् जो दूसरेसे लज्जा मालूम करे, स्त्री। बहुव्रौ। जिस स्त्रीका पति न हो, विधवा, रांड़। अपत्नपिष्णु (सं.वि.) अप-त्रप तच्छोलपार्थे कर्तरि अपतीर्थ (सं० पु.) खराब तीर्थ । इष्णुच् । खभावतः लज्जाशील, जिसका लजानेका अपत्र (सं० वि०) पत्रविहीन, विना-पत्ते का, अपत। स्वभाव हो, शर्मिंदा।