पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/६२१

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अपवस्त-अपध्यान वा कोणमें। अपत्रस्त (स० वि०) भयभीत, जो डरसे भाग जाय। | अपदवापद (सं० त्रि०) दावानलको विपत्तिसे रहित । अपथ (सं० लो०) न पन्थाः अप्राशस्ता, नञ्-तत्। अपदान (सं० क्लो०) अप-दैप शोधने करणे लुपट् । कुपथ, विकट राह, कुमार्ग, वह राह जो चलने प्रशंसनीय कार्य, महत् कार्या, अवदान, वृत्त कर्म, लायक न हो, योनि, जहां अच्छी राह न हो। शोधन, भूतपूर्व चरित्र, प्रशस्त कर्म, अच्छा काम, अपथिन् (सं० पु.) न पन्थाः । नञ्-तत् तारीफके लायक काम, बड़ा भारी काम। अप्रत्ययान्ताभावः । कुपथ, कुमार्ग। अपदान्तर (स. त्रि.) नास्ति पदान्तरं व्यवधान- अपथगामिन् (सं० त्रि०) कुपथसे जानेवाला, कुमार्गी। मत्र । नञ्-बहुव्री । संयुक्त, अव्यवहित, अभिन्नपद, अपथप्रपन्न (सं.वि.) बेजगह, वैमौका । समीप, बराबर। अपथ्य (सं• क्लो०) न पथ्यम् नत्र-तत्। अहित, | अपदार्थ (सं० त्रि.) नाचीज । स्वास्थाका नाश करनेवाला। जैसा आहार विहा- अपटिश (सं० त्रि०) दिशोमध्ये दिग्द्दयोमध्यभागे रादि करनेसे शरीर सुस्थ रहता है, कोई रोग नहीं इति यावत् शरदां टच्, अव्ययो । दिक्कोण, विदिक, होता, उसे सुपथ्य कहते हैं। उसके विरुद्धाचरणको दो दिशाओंके बीचमें, अग्नि इत्यादि कोण वा अपथ्य वा कुपथ्य कहते हैं। साधारणतः नया अन्न, वासी भात, सूखा मांस, अपदिष्ट (स. त्रि०) अप-दिश कर्मणि क्त । प्रयुक्त, सूखी मछली, दही, पेठा, लहसुन और पियाज, कथित । पुलाव, सड़ी गलौ चौज, अतिभोजन रात्रिकालमें अपदी (सं० स्त्री०) नास्ति पादौ यस्याः। नञ्- अधिक भोजन, दिनमें सोना, अतिमैथुन, वेगरोध, बहुव्री०। पादरहित स्त्री, जिस स्त्रीके पैर न हों। अतिथम, रातमें जागना, आग और धूप सेवन करना, अपदेखा (हिं० वि०) घमण्डी, आत्मप्रशंसा करनेवाला, प्रभृति अतिशय अयथा हैं। अपनेको बड़ा समझनेवाला। अपथानिमित्त (सं० त्रि.) अपथासे उत्पन्न, न अपदेवता (सं० स्त्री०) दैत्य, दानव, राक्षस, बुरे देवता। खानेलायक चीजसे पैदा हुआ। अपदेश (स० पु०) अप-दिश-घञ्। स्थान, निमित्त, अपथाभुज (सं० वि०) मना की हुई चीजका लक्ष्य, शठता, वरूपाच्छादन, उपदेश, अपकृष्ट देश, खानेवाला। बहाना, व्याज। अपद् (स. त्रि०) न पद्यते ज्ञायते पद कर्मणि अपदेशिन् (सं० त्रि.) दूसरेका रूप धारण क्विप् । नज-तत्। अन्जेय, पादशूना, जो जाना न करनेवाला। जाय, बेपैरका। अपदेश्य (स त्रि०) अप-दिश कर्मणि ण्यत्। छलसे अपद (सं० ली.) न पदम् अप्राशस्तो नञ् । बात कहना, अनुचित स्थानमें उत्पन्न । कुत्सित स्थान, बिना पैरके रेंगनेवाले जीव, | अपदोष (सं० त्रि.) निष्कलङ्क, बदनामौसे बचा हुआ । बिना पदका। अपद्रव्य (सं• क्लो) अपक्लष्टं द्रव्यम्, प्रादि-स० । अपदस्थ ( स० वि०) पदच्युत, जिसकी नौकरी ले वा-कृष्टभागो लोपः। अपक्ष्ट द्रव्य, कुत्सित सामग्री, ली गई हो। मिश्रण, मैला, वुरी चीज। अपदक्षिणम् (स० अव्य.) बाई ओर। अपहार (सं० लो०) अपकष्टं हारम् । प्रादि अपदम (सं० त्रि.) आत्मदमनहीन, अस्थिर बहुव्री। खिड़की, चोरदरवाजा। सम्पत्तिवाला। अपधूम (सं० वि०) धमरहित, जिसमें धुआं न हो। अपदव. (सं. त्रि.) दावाग्निसे मुक्त, जङ्गलको अपध्यान (सं.ली.) अपक्वष्टं ध्यायते अप-ध्य-भावे- आगसे रहित। लुपट । अनिष्ट चिन्तन, दूसरेका बुरा विचारना।