पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/६२४

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शेष भाग अपयश-अपरजस् अपयश (सं० पु०) लाञ्छन, अपकीर्ति, बुराई,। रहती है, वह उस जातिको अपेक्षा अपरा होती है। जैसे घटत्व पटवादि रूप जाति व्यत्व रूप जातिको बदनामौ। अपेक्षा अल्पदेशमें है, अर्थात् द्रव्यत्व घटपट सब द्रव्य अपयशस् (सं० ली.) अप अपकष्टं यशः। प्रादि- स०। अकीर्ति, कीर्ति शून्य, यशोहीन, निन्दित । ही में है। किन्तु घटत्व केवल घटमें ही है ; इसलिये द्रव्यत्वको अपेक्षा घटत्व अपरा जाति हुआ। उसी तरह अपयशस्कर (स• पु०) यशः करोति यशस्-हेतौट ततो अप न यशस्करः विरोधे नञ्। अपकीर्तिका यह द्रवत्व जाति भी सत्वाको अपेक्षा अपराजाति है। हेतु, निन्दाकारी, अख्यातिकर, निन्दा करनेवाला, कारण सत्वा, जाति, द्रव्य, गुण और कर्म इन बदनामी फैलानेवाला। पदार्थों में है, एवं द्रव्यत्व केवल द्रव्य में है। अपयान (सं० लो०) अप-या भावे लुबट । पलायन, १५ निकष्ट, अश्रेष्ठ। जैसे “अपरा ऋग्वेद-यजुर्वेद-साम- अपकाम, भागना, होन बाहन, खराब सवारी। वेदाथर्ववेद-शिक्षाकल्प-व्याकरणछन्दो ज्योतिषमिति ।" ( कठ० उप०) यह अपयोग (सं० पु०) कुसमय, कुयोग, अशकुन । सब अपरा अर्थात् अश्रेष्ठ विद्या हैं। परा देखा। अपरञ्च (सं० त्रि.) पुनरपि, फिर भी, और भी। १६ कार्य। 'नास्ति अपर' कार्य यस्य' (भाष्य)। वह कार्य पर- अपरम्पार (हिं० वि०) अपार, असीम, बेहद । मात्माके लिये नहों, किन्तु जीवात्माके लिये है। १७ अपर (स० क्लो०) न प्रियते पूर्यते वा कर्मादि अपरश्च तत् अहञ्च अपराह्नः। १८ शेष- सम्यक् सम्पद्यते येन यस्माद्दा पृ-पृ वा करणे अपादाने वेला । अपरा चासो रात्रिश्च । अपररात्रः । शेषरात्रि । वा अप्। १ कृष्ण पक्ष । २ अधुना । ३ सम्पति। एकदेशी स०। (पु०) अपरश्चासावर्द्धश्च । १८ पश्चाई, ४ अज। ५ अर्वाचीन। ६ अभी। ७ पहला। शेषाई, अपरस्खार्द्ध पश्चभावो वक्तव्यः । ८ पिछला। दूसरा । १० हाथौका पिछला भाग। अपरक्त (स० त्रि०) अपर-रञ्ज भावे क्त। अपगतं 'अपरन्त्वनाथै स्यात् पश्चादगावे च दन्तिनां । रक्तं अनुरागो यस्य, प्रादि बहुव्रौ। विरक्त, अनुराग- अर्षाचौनेऽपर प्राहुः।' (विश्व) शून्य, लोहित वर्णशून्य, कुश्म शून्य, रक्तचन्दनहीन, ११ परदेशवर्ती, पश्चिमदेशवौ। (स्त्री०) १२ नीलवर्णविहीन, नीला, रक्तशून्य । अपरदिक् । १३ परकाल भिन्न इतर "एक एककमित्यन्ये अपरकान्यकुञ (सं० त्रि०) कान्यकुनके पश्चिम हावित्यन्ये वयोऽपर चतुस्कराम।" एक पण्डित एक कहते हैं, भागमें स्थित। दूसरे दो, तीसरे तीन और दूसरे कोई पण्डित चार अपरकाय (स पु०) शरीरका पिछला हिस्सा । कहते हैं। अपरकाल (सं० पु०) पिछला समय। उदयाचलसे दूरदेशका नाम पर और निकटका अपरगोदान (सं० पु.) महामेरुसे पश्चिम एक अपर है। एवं जिस समयमें अधिक सूर्यक्रिया रहती देश विशेष । है, उसका नाम पर है, और जिस समयमें अल्प क्रिया अपरछन (हिं० वि०) आवरणविहीन, जो छिपा या रहती है, उसको अपर कहते हैं। विशेष अपरत्व शब्दमे ढका न हो, बेपर्द। देखी। अपर कालका उदाहरण यथा- अपरज (सं० पु०) अपरस्मिन् पश्चात्काले जायते "अपर' भवतो जन्म पर जन्म विवस्वतः।". (गीता ४४) जन-ड। परकालजात, रुद्रविशेष, दुनियाके अन्तमें अपरमें तुम्हारा जम्म और पूर्वमें सूर्यका जन्म उत्पन्न हुप्रा। हुआ है। (त्रि.) ५ अल्पदेशमें स्थित रूप व्याप्य । अपरजन (सं० त्रि०) पश्चिमवासी, पश्चिमके रहनेवाले। सामान्य पदार्थका और एक नाम जाति है। न्यायके | अपरजस् (स० वि० ) अपगतं रजो रेणुधूलिः रक्तं मससे सामान्य पदार्थ दो प्रकारका है। यथा-पर और रजोगुणो वा यस्मात्। प्रादि बहुव्री वा कवभावः । अपर। जो जाति अन्य जातिको अपेक्षा अल्पदेशमें । रेणुशून्य, धूलिरहित, रक्तशून्य, रजोगुणातीत ।