पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/६२८

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अपराजिष्णु-अपराक पाप, दोष, ६२२ अपराजिष्णु (सं० वि०) अजित, अजेय, जो जीता । अपराधिन् (सं० वि०) अप-राध-णिनि। अपराध. न जा सके, मज़बूत, ज़बरदस्त । युक्त, अपराध करनेवाला, दोषी। अपराध (सं. त्रि.) अप-राध कर्तरित। अप- अपराधी (हिं० वि०) पापी, दोषी, कसूरवार, मुलजिम । राधी, स्खलित, जो अपने काममें असमर्थ हो। अपराधभजन (स.पु.) अपराधहर्ता, अपराध अपराइपृषत्क (सं० पु.) अपराडो लक्ष्यात् स्खलितः नाशकर्ता, अपराधका नाश करनेवाला, शिव । पृषत्को वाणा यस्य। जो ठीक लक्ष्यवेध करने में अपरापरण (स० पु.) सन्तानहीन, जिसके बाल असमर्थ है, जो ठीक निशाना नहीं मार सकता, बच्चे न हों। जिसका वाण ठीक निशानेपर नहीं लगता। अपरामृष्ट (सं० त्रि०) अव्यवहृत, अस्पृष्ट, कोरा, अछूता। अपराड (सं० त्रि०) अप-राध-ढच् । अपराधकर्ता, अपराक (सं० पु.) अपरो भिन्नोऽकः सूर्याइव उप- अपराधी, जो अपना उचित काम न कर सके। मित स० । ग्रन्थविशेष, स्मृतिसंग्रह। अपराध (सं० पु०) अप-राध-घञ् । विज्ञानवरके समयमें वा उसके कुछ बाद शिला- भूल, कसूर, अपना उचित काम न करना, दण्डयोगा हारराज अपराक वा अपरादित्यने ११३४से ११५० काम करना। ईस्वीके मध्यमें याज्ञवल्का स्मृतिका एक वृहत् भाथ चलित धर्मशास्त्र के नियम, सामाजिक नियम और बनाया। वह कोकणप्रदेशके नामक नमें राजनियमके विरुद्ध आचरण करना ही अपराध है। राजत्व करते थे। उनका यह भाष्य मिताक्षराको पर अच्छी तरह सोच विचारकर देखनपर अपराध भांति सर्वजनपरिचित न होनेपर भी परवर्ती शब्दका प्रकृत तात्पर्य प्रकाश करना अत्यन्त कठिन स्म तिचन्द्रिका, चतुर्वर्गचिन्तामणि, मदनपारिजात है। एक देशमें जो काम अपराध माना जाता है, प्रभृति प्रधान प्रधान स्म तिनिवन्धोंमें उद्धृत हुआ दूसरी जगह लोग उसी कामको निन्दा नहीं करते, भाष्यग्रन्थ होनेपर भी यह 'याज्ञवल्का- उसे दोष भी नहीं मानते। पहले हमारे देश धर्मशास्त्रनिवन्ध नामसे परिचित हुआ था। सहमरण, नरवलि आदि अनेक कुरीतियां प्रचलित अपराकने कहीं भी विज्ञानेश्वरको मिताक्षरा उद्दत थीं। उस समय लोग उन्हें सुकर्म समझते थे, किन्तु नहीं की, अथच दोनों ग्रन्थोंके अनेक स्थानों में इस समय उन सब कामोंकी बात सोचनेसे रोयें खड़े एक हो वचन उद्धृत हुआ है, इससे मालूम होता हो जाते हैं। आजकल छोटी उम्रमें विधवा हो है, कि दोनोंको किसी प्राचीन ग्रन्यसे सहायता मिली जानेसे बालिकाओंको जन्मभर वैधव्ययन्त्रणा भोगना होगो। शिलाहारराज अपराकने अपनेको जीमूत. पड़ती है। हिन्दुस्थानमें अस्मी बर्षसे भी अधिक वयस्को वाहनका वंशधर कहकर परिचय दिया है। कोई वृद्धा एकादशीके दिन निर्जल उपवास करती है। कोई उक्त जीमूतवाहन और दायभाग-रचयिता ग्याससे कण्ठ सूखने और कलेजा फट जानेपर एक जीमूतवाहनको एक ही समझते हैं, पर दोनों बूंद पानी नहीं पीती। इस निष्ठुर कामका आज हम सम्पूर्ण भिन्न व्यक्ति, भिन्न जातीय, भिन्न देशवासो आदर करते और इसे भद्र वंशका अवश्य कर्तव्य कर्म और भिन्न समयके मनुष्य थे। शिलाहारराजवंशके समझते हैं। पर दूसरे देशवाले हमारे इस निर्दय | पूर्वपुरुष क्षत्रिय और कोकणवासी, दायभाग-रचयिता आचरणकी बात सुनकर चौंक उठते हैं। हम भी जौमूतवाहन गौड़वासो राढ़ीय ब्राह्मण पारिभद्र वा एक दिन चौंक उठेंगे। अतएव देशभेद और समाज पारियाल ग्रामी था, शिलाहार-जीमूतवाहनके वह भेदसे अपराध कभी एक तरहका नहीं रह सकता। परवर्ती हैं। अपराकके पूर्वपुरुषके साथ ऐसा नाम- अपराधब (सं० त्रि.) अपराधं याति प्राप्नोति सादृश्य रहनेसे अपराकमतको प्राचीन गौड़ीय कह- अप-राध-या-क। अपराधप्राप्त । कर ग्रहण किया है। 1