पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/६३६

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अपसर-अपस्मार देना। २ तर्जनी और अङ्गुष्ठका मध्यस्थानरूप पिटतीर्थ । समाचार पाकर स्नान करनेवाला। (पु.)२ स्नान ३ भूमिमें गिराया हुआ भग्नप्राय वामाङ्ग। (त्रि०) संस्कारके निमित्त स्थापित मृत । ४ विपरीत, दक्षिण ओर स्थित । अपनान (सं० क्लो०) अपकष्टं स्नानात्। निरा० अपसर (सं० पु०) बहाना, होला। तत्। स्नानावशिष्ट जल, स्नान करनेके बाद बचा अपसार (स० पु०) अप-सृ-णिच्-अच । दूरीकरण, हुआ पानी, किसी पात्रमें रखे हुए जिस जलसे कोई वहिष्करण, सञ्चालन, अपनयन, दूर करना, निकाल स्नान कर चुका हो। अपस्पति (सं० पु०) उत्तानपादका एक पुत्र । अपसारण (सं० ली.) अपसार देखो। अपस्पश (स. त्रि०) स्पशते वाधते परान् प्रभुशत्रून् अपसारित (सं० त्रि.) अप-मृ-णिच क्त। उत् पौड़यतीति वा प्रभुशत्रुपक्षीय यथार्थवर्णमन्त्रणां सारित, दूरीकृत, चालित, विस्तारित, बाहर निकाला संग्रह्णाति वा स्पश-पचाद्यच् स्पशो गूढ़चरः सोऽपगतो हुआ, दूर किया गया। यस्मात् । प्रादि बहुव्री। गूढ़चरशून्य । अपसिद्धान्त (सं० पु०) अपक्रान्तः सिद्धान्तात् ।। अपस्पशा (स स्त्रो) शास्त्रारम्भ समर्थक उदाहरण निरा. तत् । सिद्धान्तके विरुद्ध विचार, अयुक्त सिद्धान्त, | संग्रहशून्य (शब्दविद्या)। जैसी सिद्धान्तको स्थिरता है, उसके अनाथारूप दोष । अपस्फिग (सं० त्रि.) जिसके चूतड़ बेडौल "सिद्धान्तमभ्युपेत्यानियमात् कथाप्रसङ्गोऽपसिद्धान्तः।" (गो० सू०) बने हों। किसी शास्त्रकारका अभ्युगत (सम्मत ) अर्थ अपस्मार (सं० पु०) अपस्मारयति स्मरणमपगमयति स्वीकार करके उसी नियमके उल्लङ्घनद्दारा जो दूसरी अप-स्मृ-णिच पचाद्यच । अप अपगतः स्मारः स्मरणं बातका प्रसङ्ग किया जाय, उसका येन वा। रोगविशेष, मृगोरोग, मूर्छाविशेष, सरा। नाम अप सिद्धान्त है। यथा- अपसोपान (सं० पु०) अपक्रान्तः अतिक्रान्तः "म तिभूतार्थ विज्ञानमपञ्च परिचर्डने। सोपानम् अकारण, अतिक्रां-तत् । १ हस्तिनख, अपस्मार इति प्रोक्तस्ततोऽयं व्याधिरन्तकृत् ॥” (मश्नुत) हाथोका नाखून। २ वहिारके सम्मु खका मृत्तिका अतीत अर्थका विशिष्ट ज्ञान हो स्मृति और स्तप, दरवाजे के सामनेकौ मिट्टीका ढेर । अप शब्दका अर्थ वर्जन है। इससे पूर्वज्ञानका वर्जन अपसोस (हिं• पु०) सोच, दुःख, चिन्ता, पतावा। होता, इसीसे इसका नाम अपस्मार है। इस रोगसे अपसोसना (हिं. क्रि.) अफसोस करना, सोचना आदमी मर जाता है। पछताना, चिन्ता लगना। अपस्मार (Epilepsy) स्वायुमण्डलका पुराना अपसौन (हिं. पु.) अपशकुन, असगुन । रोग है। रोगके आक्रमणके समय रोगी उठकर अपस्कर (सं० पु०) अप-क-अप रथाङ्गे निपातनात् अज्ञान हो जायेगा। वह अज्ञानता बहुत देर तक सुट् । अपस्करो रथाङ्गम्। पादा११४६। धुरी, जुआ, पहिया नहीं रहती। रोगीके अज्ञान हो जानेपर कभी कभी आदि रथके अङ्ग। स्नायुका आक्षेप आता है और कभी कभी कुछ भी नहीं अपस्तम्भ (सं० पु०) छातौके बगलको एक नस होता। कभी शरीरके एक ओर सायुमें और कभी जिसमें प्राणवायु रहता है। देहके सब स्नायुमण्डलमें आक्षेप होगा। डाकर नाइ- अपनात (सं० त्रि.) अपक्वष्टम् अमङ्गलार्थत्वात् मियर कहते हैं, कि एक हजार मनुष्यों में छः आदमि- मृतमुद्दिश्य सातम् प्रादि-तत्। १मृतके उद्देश्यमें योंको मृगी रोग होते देखा जाता है। पर डाकर मान किया हुआ, मृतदेह दाह करके जिसने सान रेनलड्स इस बातको स्वीकार नहीं करते। किया हो, विदेशमें रहनेवाले कुटुम्बके मरनेका कहना है, कि अन्यान्य नायवीय रोगोंके साथ तुलना उनका