पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/६३८

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६३२ अपस्मार लक्षणों में से कोई न कोई बहुत कम आदमियोंमें पुतली फैल जाती है। ऐसे समय आंखके सामने दिखाई देगा। पर मृगी रोगका और एक प्रधान चिराग रखनेसे पुतलौ नहीं सिकुड़ती। नींद छूटने लक्षण है। मूर्छित होनेके पहले रोगीको ऐसा पर शरीर भारी और दुर्बल मालूम होगा। इसके मालम हो, मानो कमरसे एक कोड़ा सरसराता अतिरिक्त और कोई उपद्रव देखने में नहीं आता। हुआ पीठको रीढ़में होकर शिरपर चढ़ जायेगा। किन्तु कोई कोई रोगी ऐसी अवस्थामें उन्मत्तको भांति किसी किसी मनुष्यको धारणा दूसरे प्रकार है। प्रलाप करता है। बीच बीच में कितनी ही तरह वह सम्भवतः लोगोंने अच्छीतरह सोच विचार देखा अनापशनाप बकेगा। उठकर खड़े होनेपर मत- हो, मूर्छा आनेके पहले कमरसे मानो ठीक शीतल वालेकी तरह उसके पैर डगमगाने लगते हैं। इस जलको धारा पौठवाली रीढ़पर चढ़ती चली तरह उन्मत्त होनेपर रोगी अपनेको अथवा और जायेगी। कभी कभी किसीको यह धारा बहुत गर्म किसीको मारपीट सकेगा। कुछ देरके बाद यह मालूम होती है। ऐसा लक्षण देखने पर रोगीको अवस्था दूर होती और रोगी अच्छी तरह होशमें आ सावधान हो, नहीं तो आग या जलमें गिरकर जल जाता है। होश आनेपर फिर उसे रोगका कोई जाना या डूब मरना सम्भव हो सकेगा। बात याद नहीं रहती मूर्धावस्था--मूर्च्छित होनेके पहले रोगी बड़े एकबार प्रकृत मृगीरोग होनेसे रोगो बार बार जोरसे चिल्लाकर वेसुध हो जाता है। चौत्कारको मूर्छित हुआ करता, पर इसकी कोई स्थिरता सुन लोगोंके मनमें आतङ्क छायेगा। रोगीके शिर, नहीं, कि कितने दिन बाद मूर्छा आती है। प्रथम गले और हाथ पैरमें बार बार आक्षेप होते बार रोग होनेसे बहुत दिनों बाद मूर्छा दौड़ेगी। रहता है। सचराचर शरीरको एक हो ओर अधिक पहली मूर्छाके पांच छः महीने या पांच छः वर्ष आक्षेप आयेगा। हाथको सब अंगुलियां दृढ़ और बाद, और किसी किसीको १०१२ वर्ष बाद, जड़ीभूत होती हैं। अंगूठा झुककर हाथके तले मूर्छा आती है। किन्तु सचराचर तरुण अवस्थामें चला जाता है यानी मुट्ठी बंधती है। होंठ मुर्देको वर्ष भरके भीतर दो तीन बार मूर्छा पड़ेगी। तरह विवर्ण होगा। दांतपर दांत चढ़ते हैं। कभी क्रमसे रोग जब कठिन हो जाता और अच्छी तरह कभी रोगी ऐसी अवस्थामें दांतसे जीभ आदि काट जकड़ लेता, तब दिन भरमें तीन चार बार मूर्छा लेगा। मुंहसे फेन निकला करता और जीभ काट आ सकती है। कोई कोई रोगी १४।१५ वर्षमें विना लेनेपर उसके साथ खून आता है। गलेको नलीके औषध ही आपसे आप अच्छा हो जायेगा। उसके आक्षेपके कारण सांस कम पड़े, आंखको पुतली बाद फिर एक दिन रोग अकस्मात् ही उभर उलटेगी। गले और कपालकी नसें फल जाती हैं। आता है। हृदयका कांपना बहुत बढ़ जायेगा । असल बात यह, उपसर्ग-बार-बार रोगका धावा होनेसे क्षुधा- कि उस वक्त रोगीको अवस्था देखनेसे ऐसा ही मालूम मान्य, बुद्धिको जड़ता, भ्रम एवं आयुक्षय होगा। होता-शीघ्र ही मृत्यु आना चाहती है। यह अवस्था किसी किसोको उन्माद रोग भी लग जाता है। प्रायः दो तीन मिनिट रहे हो, उसके बाद रोगीको भावीफल-यौवनावस्थासे पहले नाना प्रकारको नींद लगेगी। कुक्रियायोंके कारण यह रोग उत्पन्न होने किम्बा स्त्री- मू के बाद-मू के कुछ ही देर बाद कोई जातिको जरायुके क्रियाविकारसे मृगीरोग उपस्थित कोई रोगी अच्छा होकर अपना काम करने लगता होनेपर आरोग्य होने की आशा रहेगी। किन्तु है। कोई कोई होशमें आकर कुछ देर तक सोते यौवनावस्थाके अनन्तर बार बार रोगका धावा होनेसे रहेगा। नींद लेते समय कभी कभी आंखको फिर प्रतिकारको आशा नहीं देखते। अनेक स्थलों-