पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/६५०

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अपाति-अपिग्राह्य - अपावृति (सं. स्त्री०) अप-आ-व-क्तिन् । आवरण अपास्य (सं० अव्य०) अप-अस-ल्यप् । फेंककर, निवारण, पर्दा हटाना, खोलना। छोड़के। अपावृत्त (सं० त्रि.) अय-श्रा-वृत-क्त। अन्तरित, अपाहरण (सं० लो०) अप-आ-ह-लुप्रद । आकर्षण, परावृत्त, निवृत्त, लुण्ठित, लोटनेवाला, जो गिर अपनोदन, खिंचाव, खण्डन । गया हो। अपाहिज (हिं० वि०) अङ्गहीन, आलसी, खंज । अपावृत्ति (स. स्त्री०) अप-श्रा-वृत्-क्तिन् । उद्दर्तन, | अपि (स' त्रि०) न पिवति अर्थान् नाशयति पा- निवृत्ति, लौट आना, लोटना, गिरना। उण् इण् आकारलोपश्च । १ भौ। २ हो। ३ निश्चय, अपाश्रय (सं० पु०) अप-आ-धि-अच् । १ चन्द्रातपादि, ज़रूर। यह अव्यय प्रश्न, शङ्का, गर्हा, समुच्चय, चांदनी, शामियाना, बीच आंगनमेंका मण्डप वा युक्त पदार्थ, अल्प पदार्थ, सन्देह, कामाचारक्रिया, छावनी। (त्रि.)२ आश्रयहीन । सम्भावना, निश्चय, आदि कई विषय बताता है,- अपाश्रित (सं०वि०) विरक्त, विरागो, त्यागौ। 'गहीं समुच्चयनशा सम्भावनास्वपि।' (अमर) अपाष्ठ (सं० त्रि०) अप-आ-स्था-क अन्वष्ठां यत्वं । 'अपि सम्भावना प्रश्नशद्धा गर्दा समुच्चये। अपास्थित, निरस्त, पलायित। (वै० पु०)२ तौरका तथायुक्तपदार्थेषु कामाचारक्रियास च।' (विश्व ) खार या कांटा। (लो०) ३ सोम नामक पौधका रस गण-रत्नने अपिके और तीन अर्थ निकाले हैं, निचोड़नेके बादको सौठौ। यथा- आशीर्वाद, मरण, भूषण । अपाठु ( स० पु०) अप तिषेधे आतिष्ठति गच्छति | अपिकक्ष (सं० अव्य०) कक्षे विभक्त्यर्थे अव्ययौ । अप-आ-स्था-उण दु अन्वष्ठां यत्वं । १ काल। १ कक्षप्रदेशमें, बाहुमूलमें। २ लतामें, कच्छमें। २ बालक। जो एक जगह नहीं रहता, उसे अपाछु ३ सूखे वनमें, तृणमें अपिकच्य (सं० त्रि०) अपिकक्षं सन्धानं यत् । अपासङ्ग (सं० पु०) अपा सजन्ति तिष्ठन्ति वाणा कक्षप्रदेशबारा सन्धानयोग्य । यह शब्द प्रवर्ग-विद्या- न्यस्मिन् अप-आ-सच्च अधिकरणे घञ्। तूण, इषुधी, नामक रहस्य विशेषका विशेषण है। अपासङ्ग, तरकश, निषङ्ग, युद्धके समय वाण रखनेका | अपिकर्ण (सं० ली.) अपिगतं कर्णम्, अतिक्रा- पावविशेष। तत्। १ समीप, निकट। (त्रि.) २ समीपवर्ती,. अपासन (सं० लो०) अप अस्यते अप-अस-लुट् । निकटवर्ती अपसारण, अपक्षेपण, दूरीकरण, वध, फेक देना, छोड़ | अपिगत (सं० त्रि.) भीतर गया, निकट आया, देना, मार डालना। पहुंचा, शामिल हुआ। अपासि (सं० त्रि०) जिसके पास तलवार न हो अपिगीण ( स० त्रि.) अपि गीर्यते स्म अपि-गृ कर्मणि या खराब तलवार रहे। त ऋ-इर दीर्घत्व तस्य णत्वञ्च । कथित, वर्णित, अपासित (सं० वि०) अप-अस-निच-त। अप प्रशंसित, स्तुत, कहा हुआ, वर्णन किया गया, जिसकी सारित, छेदित, जो निकाल दिया गया हो, निकाला तारीफ हुई हो। अपिगु (सं० पु.) अपि-गम-डु। ज्ञान, समझ। अपामृत (स० त्रि०) अप-आ-म-क्त । दूरीभूत, क्षरित, अपिग्रह (सं• त्रि०) अपिग्टद्यते गृहवेदे क्यप् । अपगत, पलायित, जो चला गया हो, भगेड़। प्रतिग्रहके योग्य, जो ग्रहण किया जाय । अपास्त (संत्रि.), अप अस-क्त। क्षिप्त, निरस्त, अपिग्राह्य (सं० त्रि.) अपि रयते अपिग्रह लोके दूरीकत, अपसारित, खण्डित, खदेड़ा हुआ, जो कर्मणि ख्यत्। प्रतिग्रहके योग्य, जो पतिग्रह किया स्वाग या निकाल दिया गया हो। जाय। कहेंगे। ।