पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/६५२

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अपौड़ा-अपुवक अपौड़ा (सं० स्त्री०) अपीड़न देखो। अपीव्य (?) अतिसुन्दर, निहायत ख बसूरत । इस अपीत (संत्रि.) अप-दूण-ता। १ विलयप्राप्त, विषयमें सन्देह है, कि यह शब्द वास्तवमें अपीच्य विलीन, पहुंचा हुवा, जो दाखिल हो चुका। २ अप्र होगा या अपीव्य। भागवतमें पाठान्तर मिलता मत्त, जो नशेमें न हो। (क्लो.) भावे क्त। ३ विलय, है,-'अपीव्यदर्शन' शश्वत् सर्वलोकनमस्कृतम्।" अपगमन, पहुँच, दाखिला । ( पु०) न पोतः, नञ् अपुस् (सं• पु०) न पुमान्, नज-तत्। नपुंसक, तत्। ४ पीतवर्ण भिन्न, जो रङ्ग पीला न हो। क्लीव, नामर्द, हिजड़ा। पुरुष, स्त्री और नपुंसकको अपीता (सं० स्त्री०) न पीता, नत्र-तत् । हरिद्रा उत्पत्तिका विषय इसतरह लिखा गया है,- भिन्न, जो चीज़ हलदी न हो। 'पीता हरिद्रा' (हेम) "पुमान् पुसोऽधिक शक स्त्री भवत्यधिक स्त्रियाः । अपीति (सं० स्त्री०) अपि-इण-क्तिन् । 'पीतिः पाने समोऽपुमान् पुस्त्रियो वा चौणेऽल्पे च विपर्ययः ॥" (मनु ३।४६) तुरङ्गे च ।' (विश्व ) १ विलय, अपगमन, प्रलय, पहुंच, सन्तानोत्पादनके समय पुरुषका शुक्र अधिक दाखिला। अपि इयते गम्यते यत्र । २ संग्राम, रहनेसे पुत्र, स्त्रीका वीर्य ज्यादा पड़नेसे कन्या और लड़ाई, मुहीम। न पोतिः, नज-तत्। ३ पान भिन्न, स्त्री-पुरुष दोनोका वौर्य समान जानेसे क्लीव या यमज जो चौज पौनेमें न आये। ४ अश्व भिन्न, जो चीज. सन्तान उत्पन्न होगा। उभयका वीर्य क्षीण या अल्प घोड़ा न हो। लगनेसे गर्भ नहीं ठहरता। अपीत्वा (सं० अव्य०) विना पिये हुये, नशा अपुंस्का (सं० स्त्री०) नास्ति पुमान् यस्याः ; नज- पीकर। बहुव्री० । कप्-टाप । “नापुस्कासौति मेनतिः ।” (महिला५) पति- अपीनस (सं० पु.) अपि निश्चित ईयते गम्यते रहित वनिता, पुरुषहीन स्त्री, जिस औरतके मद (क्षीयते ) नाशिका येन, बहुब्रो । अपि-ई दिवा० न रहे। क्विप् । नासारोग विशेष, पीनसकी बीमारी। इसमें | अपुंस्त्व (सं० लो०) क्लोवत्व, पुरुषत्वहीनता, नाक सड़कर गिर जाये और उससे बदबू निकला करे- नामर्दी, हिजड़ापन । गी। वैद्यकशास्त्र में इसका लक्षण लिखा है, अपुच्छ (स• त्रि०) नास्ति पुच्छं लाल यस्य । “अनाह्यते यस्य विद्यूप्यते च पापच्यते क्लिद्यति चापिनाशः । पुच्छहीन, लाङ्गलशून्य, बेदुम, जिसके पूंछ न रहे। नो वेत्ति यो गन्धरसांच जन्तुजुष्ट व्यवसेत् तमपौनसेन ॥ अपुच्छा (स. स्त्री०) नास्ति पुच्छः अग्रभागो यस्याः । तानिलले भभव' विकार' ब्रूयात् प्रतिश्याय समानलिङ्गम् ॥" शिंशपा वृक्ष, शीशम, सरसयौ। (Dalbergia (सश्चत चि० २२ १०) Sissoo ) "यो मस्तुलुङ गाधनपौवपक्व कफ सवेदगाढ़मपीनसः सः।" (चरक चि०) अपुच्छाङ्गुर (सं० पु०) भेक प्रभृति जीव, मेंडक अपीयत (सं० त्रि०) निकट आगमन लगाते हुवा, वगैरह जानवर। जो नज़दीक आ रहा हो। अपुण्य (सं० क्लो०) पुनाति शोधयति, पूञ् उण् अपील (६० स्त्री०) १ प्रार्थना, मुराफा । २ निम्न यणुक् एखश्च ; न पुणं, विरोधे नज-तत्। १ पाप, अदालतके विचार विरुद्ध निवेदन, जो दावा छोटौ इजाब। (त्रि.) नास्ति पुणं यस्मिन् यस्य वा नज- अदालतके खिलाफ लगाया जाये। बहुव्री० । २ पुषणरहित, पुणहीन, सबाबसे खाली, अपीलाण्ट (अं० पु०-स्त्री०) अपौल करनेवाला, जो मैला, नापाक, बुरा, खराब । मुराफा लगाये। (appellant) अपुणवत् (सं० त्रि०) अपुणं पापं करोति, अपुणा- अपोलो (हिं० वि०) प्रार्थना सम्बन्धीय, अपोलसे क-क्किए तुगागमः । पापकारी, इजाब उठानेवाला, ताल्लुक रखनेवाला। जो अधर्म करता हो। अपीत (सं.वि.) आच्छादित, ढका हुवा। अपुत्र, अपुत्रक (सं० पु०) नास्ति पुत्रो यस्य नज-