पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/६५३

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अपुवता-अपुष्टता तीर्थभेद । । बहुव्री०। पुत्रहीन, जिसके बेटा न रहे। मनु फिर जन्म न होगा। (क्लो०) ४ रामचरित-वणित संहितामें लिखा है,- गौडाधिप रामपाल प्रतिष्ठित तद्राजधानी निकटस्थ "अपुत्रोऽनेन विधिना सुतां कुर्वीत पुविकाम् । यदपत्य भवेदस्या तन्मम स्यात् स्वधाकरम् ॥” (मनु २०२७) अपुनर्भाव (सं० पु०) पुनर्वार उत्पन्न न होनेवाला पुत्रहीन व्यक्तिको इस विधानसे कन्या पुत्रिका पुरुष, जो शख्स फिर न पैदा हो। बनाना चाहिये,-उससे जो सन्तान उत्पन्न हो, वह अपुनीत (स० वि०) १ अपवित्र, नापाक, जो शुद्ध उसका श्राद्ध करेगा। न हो। २ दोषयुक्त, ऐबदार । अपुत्रता (सं० स्त्री०) पुत्रराहित्य, लड़का न रहने- | अपुरातन (सं० वि०) अपुराण देखो। की हालत। अपुराण (सं• त्रि०) न पुराण पुरातनम्, नत्र तत्। अपुत्रा, अपुत्रिका (सं० स्त्री.) पुत्ररहित स्त्री, जिस परातन भिन्न, नतन, जो पराना न हो, नया । औरतके लड़का न रहे। कात्यायन कह गये हैं, अपुरुष (सं० त्रि०) ज़नाना, नामर्दाना । "अपुवय शयन भतु : पालयन्ती गुरौस्थिता।" अपुरुषार्थ (सं० पु.) १जो विधान याजकके अपुत्रा नारीको भर्ताके शयनका प्रतिपालन करना लाभार्थ न हो। २ आत्माका अप्रधान अभिप्रेत, और खशुरके घर रहना चाहिये । रूहका मामूली मकसद। अपुनपो (हिं. पु.) आत्मीयता, रिश्ता, मेलजोल । अपुरोदन्त (सं• त्रि.) अदन्त, बोड़ा, पोपला अपुनप्राप्य (सं० वि०) फिर मिलनेके अयोग्य, ( Edlentate )। पिपीलिका आदिके मुख सम्मुख भो गैरमुमकिनुलवसूल। पाचवर्ती छेदक दन्त नहीं रहते। अपुनर् (स• अव्य० ) न पुनः, नञ्-तत्। पुनर्वार | अपुरोऽनुवाक्यक (सं० त्रि०) पुरोऽनुवाक्यविहीन, भिव, सवत्, दो बारा नहीं, एक ही बार। जिसमें पुरोनुवाक्य न रहे। अपुनरन्वय (सं० त्रि०) प्रत्यागमन न लगानेवाला, | अपुरोरुक (सं० त्रि०) पुरोरुक्शून्य, जिसमें पुरो- वापस न आते हुवा, मृत, मुर्दा । अपुनरावर्तन (सं० लो०) अपुनरावृत्ति देखो। अपुष्कल (सं० त्रि.) १ निम्र, नोचा। २ अभद्र, अपुनरावृत्ति (सं० स्त्री०) न पुनः आवृत्ति: भावे कमीना, छोटा। आगमन यस्मात्, ५-बहुव्री । १ निर्वाणमुक्ति । अपुष्ट (सं० त्रि०) पुष कर्मणि क्त, न पुष्टम्, न (त्रि०) २ पुनर्गमनशून्य । ( अव्य० ) ३ पुनरावृत्तिके तत्। १ अकृतपोषण, परवरिश न पाये हुवा, दुर्बल, दुबला। २ अपरिपक्क, कच्चा, जो कड़ा न अपुनर्दीयमान (सं त्रि०) पुनार न दिया जाने पड़ा हो। वाला, जो फिर न बख्शा जाये। अपुष्टता (सं० स्त्री०) अपुष्टस्य भावः, भावार्थे तल्- अपुनर्भव (सं० पु०) न पुनर्भवति उत्पद्यते यस्मात् टाप्। १ अपुष्ट होनेका धर्म, मजबूत न रहनेको अपुनर्-भू अपादाने अ। १ मोक्ष । न पुनर्भवति येन, हालत। २ काव्यका अर्थदोषविशेष । यथा,- करणे अप, नञ्-तत्। २ पुनर्भवके अभावका हेतु, "अपुष्टदुष्क मग्राम्य व्याहताश्नोलकष्टताः ।" (साहित्यदर्पण) तत्त्वज्ञान। (त्रि.) नास्ति पुनर्भवः पुनरुत्पत्तिरस्य, उपरोक्त कारिकामें अपुष्ट शब्दके बाद 'ता' न रहते नञ् बहुव्रो० । ३ पुनर्जन्मरहित, तत्त्वज्ञानयुक्त, मुक्त । भी अश्लीलकष्टताको 'ता'के साथ ही उसका अन्वय "अवस्थास्त्रिदिव' यान्ति ये मृतास्ते ऽपुनर्भवाः ।" (स्कन्दपुराण) लगेगा। प्रकृतिके अनुपकारौका नाम अपुष्टता गङ्गातोरसे दो कोसके मध्य जो रहता, वह स्वर्ग होता है, जाता है। इसीतरह उस स्थानमें जो मर सके, उसका "विलोक्या वितते व्यौखि विधु' मुञ्च रुष प्रिये ।" (साहित्यदर्पथ) रुक् न मिले। अभावसे।