पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/६५४

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अपुष्टस्ट----अभोर हे प्रेयसि ! विस्तृत आकाशमें चन्द्रको देख क्रोध | अपूठा (हिं० वि० ) १ अपुष्ट, कच्चा, नावाकिफ़, जा छोड़ दीजिये। यहां विस्तृत शब्द प्रियाके मानभङ्गको जानकार न हो। २ अस्फुट, बंधा हुवा, जो फला कोई उपकार नहीं पहुंचाता। इसका अर्थ व्यर्थ या खिला न हो। जाता है। अपूत (स० त्रि०) न पूतम्, नञ्-तत् ; पू-त वा अपुष्टत्व (सं० ली.) अपुष्टस्य भावः। १ अपुष्ट इडभावः । १ पवित्र भिन्न, अशुचि । २ संस्कारहौन, पड़नेका धर्म १ काव्यका अर्थदोषविशेष । प्रधानके व्रात्य। व्रात्य देखो। (हिं.वि.) ३ पुत्ररहित, जिसके अनुपकारीको अपुष्टत्व दोष कहते हैं,- औलाद न रहे। (पु.) ४ अयोगा पुत्र, जो लड़का "अपुष्टत्व मुखयानुपकारीत्वम् ।” (साहित्यदपण) भला नहो। अपुष्प ( स० पु. ) न सन्ति पुष्पाणास्य, नज-बहुव्री० । अपूप (सं० पु०) पूपते शोध्यते, पू बाहुलकात् उण १ वनस्पति, पुष्पको छोड़ जिस वृक्षमें फल लगे। प पूपः ; न पूपः, नञ्-तत् । विभाषा हविरपूपादिभ्यः । पा ५।१४। जैसे उडुम्बर आदि यानी गूलर वगैरह। जिस वृक्षमें १ तण्डुल वा गोधूमादि चूर्ण निर्मित पिष्टक, चावल विना फूल फल लगता, उसे वनस्पति कहते हैं, या गेहू वगैरहके आटेकौ लिट्टी। पूपोऽपूपः पिष्टकश्च । (अमर) "अपुष्याः फलवन्तो ये ते वनस्पतयः स्म ता:।" (मनु ११४७) पुरोडास, हविविशेष । यथा,- पुष्यका अभाव, फलका न खिलना। (अव्य) “गोधूम ऊक्षपिष्टं गुड़ेन युक्तम् जलेन समृदितम् । पुष्पाभावसे, फूल न खिलनेपर। सोल्यो वतुलनिभा ते विपक्का भवन्ति चापूपाः ॥ "अफलाम्मा अपुष्यावाग भवति।" (निरुक्त ) वल्या हृद्या रुचिदा गुरवो वृष्याश्च तुष्टिदा: प्रोक्ताः । अपुष्यफल, अपुष्पफलद देखो। पित्तानिनशमनक। मधुना: प्रोक्ताः-" (वैद्यक निघण्टु ) अपुष्यफलद (सं० पु.) अपुष्येण पुष्याभावेनापि ३ गोधूम, गेहूं। फलं ददाति, अपुष्प-फल-दा-क। १ पुष्प व्यतिरेक अपूपमय (सं० त्रि.) अपूपयुक्त, रोटीसे भरा हुवा । फलप्रद वृक्ष, बेफल जो दरखत फल पैदा करे। अपूपवत् (सत्रि०) अपूप सदृश, रोटी-जैसा । २ पनस वृक्ष, कटहरका पेड़। (त्रि०) ३ हेतु अपूपादि (सं० पु.) अपूप इति शब्दः आदिर्यस्य व्यतिरेक फलदानकर्ता, बे सबब नतीजा निकालने गणस्य, ६-बहुव्री । पाणिन्युक्त छ और यत् प्रत्ययका वाला, जो व्युत्पत्तिसे नहीं, किन्तु लक्षणासे सिद्ध प्रकृतिभूत शब्दसमूह, अपूपादि गण । यथा- हो। ४ विना पुष्य फलोत्पादक, बेफूल जिसमें फल अपूप, तण्डुल, अभ्यूष, अभ्योष, अवोष, अभ्येष, लगे। ५ पुष्यफलरहित, जिसमें फलफल न रहे। पृथुक, ओदन, सूप, पूप, किण्व, प्रदीप, मुसल, अपुस् (वै० लो०) आकृति, शक्ल । कटक, कर्णवेष्टक, इगल, अर्गल, यूप, स्थूणा, दीप, अपूजक (सं० त्रि०) अनादरकर्ता, बेअदब, जो अश्व, पत्र, कट, अयःस्थूण, । - पूजा या परस्तिश न पहुंचाये। अपूपापिहित (स• त्रि०) अपूपसे आवृत, रोटीसे अपूजा (सं० स्त्री०) पूजाया अभावः, अभावे नञ् ढंका हुवा। तत्। पूजाका प्रभाव, अनादर, असम्मान, कुत्सित | अपूपाष्ठका (सं० स्त्री०) अपूपस्य तदानस्य अष्टका पूजा, अविधानको अर्चना, बेअदबी। ६-तत्। १ आग्रहायणी पूर्णिमासे पर कष्णाष्टमी, जो अपूजित (सं० वि०) न पूजितम्, नञ्-तत् । पूजित भिन्त्र, अंधेरै पक्षको अष्टमी अगहनको पूर्णिमाके बाद आये। अनाहत, अवज्ञात, जिसकी परस्तिश न हुयो हो। इस अष्टमीको अपूपसे श्राद्ध करना चाहिये। २ अष्टका अपूज्य (स• त्रि०) पूजा पहुंचानेके अयोगा, जो में विहित श्राद्ध। परस्तिश करने काबिल न हो। अपूपोय.. ( स. त्रि०) अपूपसम्बन्धीय, रोटौसे तोञ्जुक. अपूठना (हिं• क्रि०) १ मिटाना, तोड़ डालना। रखनेवाला।