पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/६५७

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अपेक्षाबुद्दिज-अपेय । "अनेकै कक बुद्धिर्या सापेक्षाबुद्धिरिष्यते। (भाषापरिच्छेद) अपेक्षाबुद्धिज (सं० त्रि०) अपेक्षायुक्ताया बुद्ध्या जायते, अपेक्षाबुद्धि-जन-ड, ५-तत्। न्यायशास्त्रोक्त हित्व आदि पराध पर्यन्त संख्या विशेष, दोसे शेष संख्या पर्यन्त, जो सारी अदद दोसे होती हो। अपेक्षित (सं० त्रि.) अप-इक्ष कर्मणि त। १ अपेक्षासे भरा, जिसकी खाहिश लगी रहे । (लो०) २ ध्यान, प्रमाणा, विचार, गौर, हवाला, ख़याल । अपेक्षिततव्य, अपेक्षणीय देखी । अपेक्षिता (स. स्त्री०) अपेक्षिणी भावः, अपेक्षिन्- तल-टाए। अपेक्षाकारीका भाव, अर्थित्व, इन्तज़ारी। "प्रयोजनापेक्षितया।" (कुमारसम्भव ३.१) अपेक्षिन् (सं० वि०) अपेक्षते, अप-इक्ष-णिनि। अपेक्षाकारी, आकाङ्गायुक्त, खयाल रखते हुवा, जो राह देख रहा हो। (स्त्री. ) अपेक्षिणी। "तत्कृतानुग्रहापेक्षी।" ( कुमारसम्भव ॥३६) अपेक्ष्य (सं० त्रि.) अप-ईक्ष-ण्यत् । १ अपक्षणीय, इन्तजार रखने काबिल। (अव्य०) अप-ईक्ष भावे ल्यप् । २ अपेक्षा लगाकर, इन्तजार करके । "तदानपेक्षा।" (कुमारसम्भव ५।१) अपेच्छा (हिं०) अपेक्षा देखो। अपेत (स.नि.) अप इण कर्तरि क्त। अपगत, अपमृत, पलायित, भागा हुवा, जो गुज.र गया हो। अपे तभी (सं० त्रि.) भयरहित, निर्भय, निःशङ्क, बेखौफ, जिसका जिसका डर छूट गया हो। अपेतराक्षसी (सं. स्त्री०) अपेतः अपगतः, राक्षस इव पापं यस्याः यया वा, ५ वा ३-तत्। १ काली २बबई। अपेय (सं० त्रि०) न पीयते न-पा-यत्, नञ्-तत् । पौनेके अयोग्य, जिसका पान न किया जाय। जिसका पान शास्त्रके मतसे निषिद्ध हो, पौनेके नाका- बिल। हमारे शास्त्र में अनेक अपेय द्रव्योंका उल्लेख है। उन्ही सकल द्रव्योंको बेचने या पौनसे पापको उत्पत्ति होगी। मद्य प्रधान अपेय है। इसे पौने, देने या लेनेसे पाप लगता है। निषिद्ध द्रव्योंको गुण विवे- चनासे देखनेपर स्पष्ट मालूम होगा, कि उनके पीनेसे पौड़ा उत्पन्न होती, इसौसे शास्त्रकारोने उनका पौना रोका है। दूधके साथ नमक मिलाकर न पोना चाहिये। दूध फट जानेपर भी पीना निषिद्ध है। गोके बच्चा होनेपर दश दिन बाद दूध पीये। दश दिन तक गोका दुग्ध अति गुरुपाक रहे, खानेसे उदरामयादि रोग लगेगा । इसी कारण हमारे विचक्षण शास्त्रकारों ने उसका पीना शास्त्रको रीतिसे निषिद्ध बताया है। आधुनिक चिकित्सकोंने स्थिर किया, कि दूध बहुत देर पड़ा रहनेपर हवाके संयोगसे उसमें नाना प्रकार विषकण मिश्रित हो जाते हैं। इसलिये फटा या विगड़ा दूध पीनेसे विषका पान होगा। दूधमें नमक मिलाकर पीनेसे पित्तवृद्धि होती है। चतुर वैद्योंको सम्मति है, ऐसा दूध पौनेसे अन्तमें कुष्ठादि रोग निकलेंगे। कुत्तेका जुठा जल नहीं पीना चाहिये। यदि भूलसे उसे कहों पो भो ले, तो तीन दिन तक दूधमें शङ्खपुष्पी लताको पका कर सेवन करे। स्त्रीका उच्छिष्ट जल भी पौना निषिद्ध है। पता नहीं चलता, इसका ठोक कारण क्या होगा? शूद्रका उच्छिष्ट जल न पीना चाहिये। यदि भूलसे पो ले, तो तीन दिन तक दूधमें कुशमूल पका कर तीन दिन तक उसे ही पौये और कोई चीज न खाय । कुत्ता जिस वर्तनको छूये, उसका जल अथवा शुङ्ग विष्ठा या मूत्रादिसे दूषित जल अपेय है ; पान करनेसे तप्तकृच्छ्रव्रत करना चाहिये। उसके अभावमें एक काहन बारह पण कौड़ी उत्सर्ग करेंगे। चण्डालके कूप या पात्र में ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य वा शूद्र जल न पीये। यदि किसी कारणसे यह अपेय जल पान करे, तो ब्राह्मणका सान्तपन, क्षत्रियको प्राजापत्य, वैश्यको आधा प्राजापत्य और शूद्रका चौथाई प्राजापत्यव्रत करना उचित होगा। उसके अभावमें दूसरी भी अनुकल्प व्यवस्था है। चण्डाल यदि जल छू ले या दूग्धादि द्रव्य दे, तो वह अपेय ठहरेका । इस समय लोगोंके मलमें यह सन्देह अवश्य उठ सकता, ब्राह्मण और शूद्रमें क्या प्रभेद है। यदि ब्राह्मण जलको छुये, तो वह अपय नही होता; तुलसी।