पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/६६०

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हुक्म अपेहिप्रकसा-अपोहनीय युक्त अपगमन आदेशविशिष्ट क्रिया-विशेष, जिस छ भी न सके, कर्ममें अक्षम, विकलाङ्ग । विकलाङ्गको धर्मकार्यका अधिकार नहीं देते,- खास फेलमें गुलामको आने-जानेका दिया जाये। "तौर्यकपङ्ग वा य-देवानां नानाधिकारः।” (जैमिनि ) अपेहिप्रकसा (सं० स्त्री०) साधारण जनभिन्न उत्सव, पश्खादि पङ्ग एवं चक्षु, कर्ण, मुख, यह तीन अङ्ग जिस जलसे में ग्राम्य लोग न जाने पायें। ऋषि-जैसे रखने यानी ऋषिकी तरह ध्यानमें बैठ अपेहिबाणिजा (स० स्त्री०) बणिक् भिन्न उत्सव बाह्य वस्तु न देखने, विषयकथा न सुनने और कोई विशेष, जिस खास जलसे में सौदागर न पहुंच सके। बात न कहनेवाले, काने, बहरे और गूगेको धर्म- अपेहिवाता (सं० स्त्री० ) वातनाशक ओषधिविशेष, कार्यका अधिकार नहीं मिलता। बादौ मिटानेवाली कोई जड़ी-बूटी। 'अपोगण्डस्तु शिशुकै विकलाङ्गतिभौरके।' (विश्व ) अपैठ (हिं० वि०) जानेके अयोगा, जहां पहुंच (त्रि.) २ षोड़श वर्षसे कम अवस्थावाला, न सकें। जिसकी उम्र सोलह सालसे कम रहे। ३ बाल, बच्चा, अप्रैठर (सं० क्लो०) न पैठरम्, न-तत्। स्थाली- कमसिन। ४ भयभीत, ख़ौफ़ज़दा, डरपोक। पक्क सद्गन्धयुक्त वचनभिन्न, जो रसोयो अच्छी तरह ५ कोमल, मुलायम । न बनायी गयी हो। अपोढ (सं० त्रि.) निरस्त, त्यक्ता, हटाया हुवा, अपैतामहक (स.नि.) पितामहादागतं पितामह जिसे अलग ले गये हों। वुज पैतामहकम्, न पैतामहकम्, नञ्-तत्। पिता- अपोदक (सं० त्रि०) अप अपगतं उदकं जलं महसे अनागत, जो दादेसे न मिला हो। यस्मात्, प्रादि बहुव्री० । १ जलरहित, पानौसे खाली। अपैक (स' त्रि०) पितुरागतं पिट-ठञ् पैटकम्, २ जो पानीदार न हो, न बहनेवाला। नञ्-तत्। पितासे अप्राप्त, जो बापसे न मिला हो। अपोदिका (सं. स्त्री०) अप अपकृष्ट उदकं यया । अपैशन (सं.ली.) पिंशति खलत्वेन सूचकत्वेन १ कलम्बी, हिरनपद्दी। २ पूतिका, पोय। वा प्रात्मानं द्योतयति, पिश तुदा० मुचादि उण् उनन् ; अपोद्धाय (सं० त्रि०) उठा ले जाने योग्य, जो चोज पिशुनस्य भावः पिशुर-अण् पैशनम्, अभावे नञ्तत् । उड़ा लेने काबिल हो। १ पैशुन्यका अभाव, खलताको शून्यता, सूचनाका | अपोनपात् (वै० पु.) जलसे उत्पन्न अग्निदेव । लोप, ईमान्दारी, सच्चायो, भलमन्सी। (त्रि.) अरोनत्रिय (सं० त्रि०) अपोनपात् देवता अस्य, नास्ति पैशुनं यस्य, नत्र -बहुव्री । २ खलताशून्य, अपोनपात् घ निं। अपोनपात् देवताको दिया सूचनारहित, ईमानदार, सच्चा, भला, बुराई न जानेवाला, जो अपोनपात् देवताके देनेको हो। बतानेवाला। अपोनप्त्रीय, अपोनम्चिय देखो। अपशून्य (सं० लो०) पिशुनस्य भावः पिशुन भावे अपोमय (सं त्रि०) अपो जलं तदात्मकम्, अपस्- ष्यञ् पैशून्यं ; न पैशुन्यं, नत्र-तत् । पैशुन्यको मयट् । जलमय, पानौसे भरा हुवा। शून्यता, खलताका अभाव, सूचनाका राहित्य, अपोह (सं० पु०) अप-उह बाहु० भावे क। १ त्याग, इमान्दारी, भलमन्सो, सचाई, बुराई न बतानेको हटाव, छुटकारा। २ युक्तिके बलसे सन्देहका निरा- हालत। करण, समझ-बूझसे शकको रफाई। ३ विवाद, अपांगण्ड (सं० पु०) न पसि कर्माक्षमतया द्रव्य बहस। स्पर्शेऽपि गच्छति ; पस् भावे क्विप्-गम-उण-ड, नञ्- | अपोहन (सं० क्लो.) अपोह देखो। तत्। १ कर्ममें अक्षम होनेसे द्रव्यको भी न छ अपोहनीय (सं० त्रि०) अप-ऊह-अनीयर् । हटाया सकनेवाला व्यक्ति, जो शखस नाकाम होनेसे चौज़को जानेवाला, जो उठाकर अलग डाल दिया जाये।