पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/६६१

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अपोहित-अप्पा सूरि पानी, आब। ६५५ अपोहित (सं० त्रि०) १ हटाया गया, उठाया हुवा । अनःस्थ (सं० त्रि.) अनसि कमणि तिष्ठति ; अप्नस्- २ बुद्धिसे प्रतिष्ठित, अलसे साबित । स्था-क, ७-तत्। कर्ममें अधिकृत, काममें लगा हुवा । अपोह्य (स• त्रि०) अप ऊह गत्यादौ कर्मणि ण्यत् । अप्रगज (सं० पु. ) अप्नसां कर्मणां राजा; टजन्त १ अपगमनीय, त्याज्य, हटाने काबिल। (अव्य.) ६ तत्, वेदे पृषो. सलोपः । कर्मप्रेरक, कार्य में लगाने- १ दूरीभूतकर, निकालके। वाला, जो काम बताये। अपौरुष (स. त्रि०) पुरुषस्य भावः कर्म वा पुरुष अप्नवान (सं० पु०) अपसा कर्मणा वानं सद्गति- अण् पौरुष तन्त्रास्त्यस्य । १ विक्रमशून्य, नामर्द । यस्य, ३-बहुव्रो०। भृगुवंशीय ऋषिविशेष । (क्लो०) पौरुषस्य अभावः, अभावार्थे नञ्-तत् । अप्नस् (सं. क्लो०) आप्नोति प्रलय-समये समस्त २ पौरुषका अभाव, विक्रमको शून्यता, नामर्दी। व्याप्नोति, आप-उण-असुन्-नुट इस्वश्च । अपौष्कल्य (सं• क्लो०) पौष्कल्यका अभाव, दृढ़ता- २ कर्म, काम। ३ अपत्य, बेटा। को शून्यता, कच्चापन, खामी, नापुख्तगी। ४ रूप, शक्ल। अपचर (सं० त्रि.) अप्सु चरति, चर-ट। अप्रस्वत् ( स० त्रि.) अनस् अस्तास्य, अनस् अस्ता) चर, पानीमें चलनेवाला । (स्त्री०) अपचरौ। मतुप, मस्य वत्वम्। १ कर्मशील, कारबारौ। अप्त (वै त्रि०) १ प्राप्त, दस्तयाब । २जलसम्ब २ जलयुक्त, पानीदार। (स्त्री.) अपस्वती। धीय, पानीदार। अप्पकवि (सं० पु०) संस्कृत छन्दोग्रन्थ-रचयिता-विशेष । अप्तस् (सं० लो०) यज्ञोय कर्म, यज्ञका काम । अप्पण आचार्य-एक वैदान्तिक, तैत्तिरीयोपनिष- अप्तु (सं० पु०) आप्नोति जीवोऽयम्, आप-उण तुन् विवरण नामसे आनन्दतीर्थ-रचित तैत्तिरीयोपनिषद् ह्रखश्च । १ शरौर, जिस्म । 'अप्नु : शरीरम् ।' ( उणादिकोष ) भाष्यके टीका-रचयिता। २ सूक्ष्मरूप सोम। ३ यज्ञीय पशु। अप्पदीक्षित (स• पु०) सन् ई० वाले पन्दरहवें अतुर (स० पु.) अप सु जलदान-विषये तूतोति शताब्दके एक संस्कृत ग्रन्थकार, नारायणस्तव- धावति, तुद् जुही क्विप । १ जलदायक इन्द्र । २ जल रचयिता। दायक अग्नि । अप्पय्य-एक मराठी पण्डित, छत्रपति शाहुजीके राज्य- अप्नु य (वै० को०) अप्तुरो भावः बाहु० वेदे यत्। कालमें इन्होंने 'आचारनवनीत' नामक धर्मग्रन्थ जलप्रेरकका धर्म, जल-प्रेरकत्व, पौनीका पहुंचाना। रचा था। अप्तोर्याम (सं० पु०) अप्तोः शरीरस्य पापकत्वाद् अप्पय्यदीक्षित-प्रप्यपदौचित देखो। याम इव, अलुक्-स। अग्निष्टोमाङ्ग योगविशेष । अप्पाजी भट्ट-वीरपुरवासौ एक प्रसिद्ध दार्शनिक, विष्णुपुराणमें लिखा है कि अप्तोर्याम याग ब्रह्माके ज्ञानानन्दके शिष्य, शिवगीता और रामगीताके उत्तरमुखसे निकला था। (विष्णुपु० १।५।४८ ) टीकाकार। अपत्य (स० त्रि०) अप्तौ शरौरे भवः यत्, वेदे | अप्पादीक्षित-अध्ययदीक्षित देखो। टिलोपः। १ अपत्य, शरीरसे निकला हुवा। २ कार्य अप्पा वाजपेयिन्-नीतिकुसुमावलि रचयिता। रत, विशाल, कारबारी, लम्बाचौड़ा। ३ जलीय, अप्याशास्त्री-एक प्रसिद्ध पण्डित-इन्होंने सात पानीदार। भाषामें अप्पाशास्त्रिवादार्थ ( न्याय ), लवलोपरिणय- अन (व. पु.) धिकार, सम्पत्ति, कब्ज़ा, नाटक और सारखतादर्शनाटक ग्रन्थ बनाये हैं। जायदाद। २ कनीय कर्म, काम । ३ वश, अप्पा साहिव-नागपुरराज रघुनाथ रावको उपाधि । सन्तति, खान्दान द। ४ आकार, सूरत। नागपुर और रघुनाथ राव देखो। ५ जल, पानी। अप्पा सूरि-शब्दरवावलो-रचयिता। 1