पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/६६६

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अप्रतिग्राह्य-अप्रतिपन्न । उसके अनन्तर जहां जैसा प्रायश्चित्त कहा गया है, । अप्रतिहन्दिता (स'० स्त्री०) प्रतिस्पर्धाश न्यता, जिस उसे करना पड़ेगा। तीर्थ वा किसी पुण्यक्षेत्रमें अथवा हालतमें कोई बराबरी न देखाये। चन्द्रसूर्यके ग्रहण-कालमें प्रतिग्रह न करना चाहिये। अप्रतिवन्दिन् (सं० त्रि.) प्रतिद्वन्दी विरोधी निन्दित व्यक्तिका धन अप्रतिग्राह्य है। चाण्डालादि नास्त्यस्य, नज-बहुव्री। विरोधोरहित, प्रतिपक्ष- का धन ग्रहण करनेसे पतित होना पड़ता, इसलिये शू ना, दुश्मन न रखनेवाला, जिसके खिलाफ कोई वह प्रतिग्राह्य नहीं होता। रजकको वस्तु अप्रति न रहे। ग्राह्य है। उसे ग्रहण करनेसे एक वर्षतक प्राजापत्य अप्रतिधुर (वै० त्रि.) भार वा शकट वहनमें व्रत करना पड़ेगा। पतितको वस्तु ग्रहण न करना अद्वितीय, जो बोझ ढोने या गाड़ी खींचने में बेजोड़ चाहिये। ग्रहण करनेसे चान्द्रायण करना उचित है। हो। यह शब्द प्रायः अश्वका विशेषण रहेगा। जो लोग सूबर खाते हैं, जैसे भनी, डोम प्रभृति, अप्रतिवृष्टशवस् (वै० त्रि०) असह्य शक्तिशाली, एवं व्याध, निषाद, रजक, बडुर और चमार इन जिसको ताकत रोको न जा सके। सबको वस्तु अप्रतिग्राह्य होगी। ग्रहण करनेसे प्राय अप्रतिवृष्य (वै० त्रि.) अप्रतिहत, रोका न श्चित्तमें चान्द्रायण करना शास्त्रसम्मत है। जानेवाला। मनुके मतानुसार इन लोगोंका दिया हुआ गृह, अप्रतिपक्ष (स. त्रि.) नास्ति प्रतिपक्षः सदृशो वा शय्या, कुश, चन्दन, पत्ता, फूल, फल, दधि, भृष्ट यव, यस्य। विपक्षहीन, अप्रतियोगी, असदृश, जिसके मत्स्य, मांस, दुग्ध एवं शाक त्याज्य नहीं होता। कोई दुश्मन या बराबरीवाला न रहे। सुमन्तु कहते हैं, कि अभोज्यान्न चाण्डालादिके अप्रतिपक्ष (स• त्रि०) परिवर्तनमें देने के अयोग्य, बागोंका फल, फल, शाक, टण, काष्ठादि, तड़ागस्थ जो बदलने काबिल न हो। जल, गोष्ठस्थ दुग्ध ग्रहण करनेसे दोष नहीं लगता। अप्रतिपत्ति (सं० स्त्री०) प्रतिपत्तिः गौरवादिः; न कुलटा स्त्री, नपुंसक एवं पतित प्रभृति यदि प्रतिपत्तिः, अभावे नञ्-तत्। १ गौरवका अभाव, घरपर पाकर भी इन सब चीजोंको दें, तो न लेना बड़ाईका न रहना। २ अप्रवृत्ति, अप्रागल्भ्य, बोधका चाहिये। इनके अतिरिक्त और कोई पापौ यदि घर अभाव, नासमझी, न जाननकी हालत। ३ निश्चयका पर आकर इन सब चीजोंको दे, तो ग्रहण करने में अभाव, बेएतबारी, जिस हालतमें यकीन न आये। कोई हानि नहीं। काशीखण्ड के मतसे गन्ध, पुष्प, ४ अस्वीकार, अग्रहण, नामञ्जूरी, कबूल न करनेको कुश, शय्या, शाक, मांस, दुग्ध, दधि, मणि, मत्स्य, हालत। ५ पदप्राप्तिका अभाव, रुतबा न पानेको गृह, धान, फल, मूल, मधु, जल, काष्ठ प्रभुति बात । ६ स्फ र्तिका अभाव, तेज़ौका न होना। (त्रि.) घरपर आकर देनसे ग्रहण किया जा सकता है। नज-बहुव्री। ७ गौरवादि शूना, बेइज्जत, बेहुर्मत, अप्रतिघ (सं० त्रि०) प्रतिहन्ति, प्रति-हन्-ड ; छोटा। नास्ति प्रतिधोऽस्य, नज-बहुव्रीः । प्रतिघातशन्य, अप्रतिपद् (स० वि०) प्रतिपद्यते प्राप्नोति जानाति अप्रतिबन्ध, अनुकूल, अभिमुख, चोट न पहुंचानेवाला, वा ; प्रति-पद-क्किए प्रतिपत्, न प्रतिपत् नञ्-तत् । मुखातिब, राजी, जिसे गुस्सा न रहे। १ विकल, न ठहरते हुवा । २ निईन्द, किसौपर मुनह- अप्रतिघात, अप्रतिध देखो। सर न होनेवाला, जो किसीका मुंह न देखता हो। अप्रतिहन्द (स.वि.) प्रतिगत प्राप्त हन्द विरोधं अप्रतिपन्न (सं० त्रि.) प्रतिपद्यते स्म, पति-पद स्वधी वा, अतिक्रा० तत् ; न प्रतिबन्दम्, नत्र-तत् । कर्मणि क्त ; न प्रतिपन्नम्, नत्र-तत्। अज्ञात, अस्खो- १ प्रतिस्पर्धाशून्य, दुश्मनीसे अलग। २ सहचरशून्य, कृत, अप्राप्त, अनभियुक्ता, नामालम, नातमाम, समकक्षरहित, बेजोड़, जिसके बराबरीवाला न रहे। भूला हुवा।