पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/६६८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

अप्रतिरूपकथा-अप्रतीक अप्रतिरूपकथा (सं० स्त्री०) नास्ति प्रतिरूपा प्रत्यु धाम यस्य, नज-बहवी.। १ अन्यधामरहित एवं त्तरीभूता कथा यस्याः, नञ्-बहुव्री०। उत्तररहित खीयधामस्थित ब्रह्म। (त्रि०) नास्ति प्रतिष्ठा यस्य । वार्ता, जिस बातका जवाब न निकले। २ अप्रतिष्ठित, अनाश्रय, निष्फल, गौरवशून्य, नापाय- अप्रतिलब्धकाम (संत्रि.) असिद्धाभिलाष, जिसकी दार, बेसबात, फेंका हुवा, बेफ़ायदा, बदनाम । (पु०) खाहिश पूरे न पड़ी हो। ३ विष्णु। ४ नरकविशेष । ५ प्रतिष्ठारहित याग- अप्रतिवीर्य (सं० त्रि०) नास्ति प्रतिरुद्ध वीर्य यस्य, व्रतादि। ६ जो छन्द चार अक्षरका न हो। ७ प्रशंसा- न -बहुव्री० । अत्यन्त पराक्रमशील, जिसको ताकत का अभाव, बदनामी। कोई रोक न सके। अप्रतिष्ठा (सं० स्त्री० ) अस्थिरता, अपकीर्ति, अप- अप्रतिशासन (सं० ली.) न प्रतिशासनम्, नञ् मान, नापायदारी, बदनामी, बेइज्जती। तत्। १ आह्वानपूर्वक प्रेरणका अभाव, बुलाकर न अप्रतिष्ठान (वै• त्रि०) १ सुदृढ़ भूमिविहीन, जो भेजनेको हालत। (त्रि०) नास्ति प्रतिशासनं येन मजबूत जगह न रखता हो। (क्लो० ) २ स्थिरता- यस्मै वा। २ बुलाकर न भेजा जानेवाला। नास्ति का अभाव, बेसबाती, नापायदारी। प्रति सदृशं शासनं यस्य । ३ असदृश शासन रखनेवाला, | अप्रतिष्ठित (सं० वि०) १ अनभिषिक्त, खुशी न जिसको हुकूमत बेजोड़ रहे। मनाया हवा, । २ स्थितिश न्य, बेफ़ैसला, गैरमजबूत । अप्रतिथय (सं० त्रि.) नास्ति प्रतिश्रय आश्रयः ३ अनिर्दिष्ट, नियाज, न किया गया। यस्य, नज-बहुव्री०। १ निराश्रय, बेठिकाना। नास्ति अप्रतिसङ क्रम (सं० त्रि.) विशुद्ध, खालिस, प्रतिश्चयः सभा यस्य । २ जहां सभा न रहे। जिसमें कोई मिलावट न रहे। अप्रतिश्रव (सं• पु०) न प्रतिश्रवः, अभावे नञ् - अप्रतिसङख्य (सं० त्रि.) न प्रतीता संख्या यस्य, तत्। १ अङ्गीकारका अभाव, इनकार, सुनाई न गौण इस्वः। जिसकी एक-एकके हिसाबपर विशेष होने की हालत । (त्रि.) नत्र -बहुव्री०।२ अङ्गीकार रूपसे संख्या न ठहरायी जाये, देखा न गया। हौन, सुना न जानेवाला। अप्रतिसङ खया (सं० स्त्री०) विशेष बुद्धिका अभाव, अप्रतिश्रुत् (सं० स्त्री०) प्रति-श्रु-क्विप् तुगागमः ज्यादा अक्ल का न आना। प्रतिश्रुत् अभावे नज-तत्। १ प्रतिध्वनिका अभाव, अप्रतिसखानिरोध (सं० पु.) न प्रतिसंखवाया बाज़गश्तका न निकलना। (त्रि.) नज-बहवो । बुद्ध्या निरोधः, नञ्-तत्। किसी पदार्थका गुप्त २ प्रतिध्वनिशून्य, बाज़गश्तसे खाली। विनाश, बेजाने किसी चौज.को बरबादी। बौद्ध, अप्रतिश्रुत (सं० त्रि०) न प्रतिश्रुतम् । जो अङ्गी कल्पित अबुद्धि हारा भावका विनाश बताते हैं। कृत न हो, सुना न गया। अप्रतिहत । (सं० त्रि.) न प्रतिहतम्, नत्र-तत्। अप्रतिषिद्ध (सं० वि०) न प्रतिषिद्धम्, नत्र-तत् । १ अनभिभूत, अव्याहत, रोका न गया, जो ठहराने पनिषिद्ध, जिसको रोक न रहे। काबिल न हो। २ अविनष्ट, अछता, जो कमज़ोर न अप्रतिषेध (सं० पु०) प्रतिषेधका अभाव, रोकका पड़ा हो, चोट न खाये हुवा। ३ आशान्वित, उम्मेद न लगना, मुमानियतको नामौजूदगी। रखनेवाला, जिसका दिल ट्टा न हो। अप्रतिष्क त (सं• त्रि०) प्रति-स्कूज आप्रवणे स्कु वते अप्रतिहतनेत्र (सं० पु०) बौद्धोंके कोई देवता। इनकी गत्यर्थाहा क्त, अषोपदेशत्वाव्यत्ययेन षत्वम्। अप्रति आंख कभी नहीं झपती। गत, अप्रतिहत, अप्रतिस्खलित, दूर न रखा जानेवाला, अप्रतीक (सं० त्रि०) नास्ति प्रतीकः शरीरं एक- जो रोका न जा सके। देशो वा यस्य, नञ् बहुव्री० । १ एकदेशरहित, अप्रतिष्ठ (सं० क्ली० ). नास्ति प्रतिष्ठास्वभिन्न मन्यत् सम्पूर्ण, जिसके टुकड़े न रहें, समूचा, पूरा। o -