पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/६७

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अक्षरलिपि १५ और विराटो खने क नाही। हम यह मान सकते हैं. कि अधिकांश भारतीय ११२ १३ १४ १५ 24 तब यह बात सहज ही अनुमेय है, कि उनसे पहले- को लाखो कौत्ति विलुप्त हो गई। इसलिये पिप्राव- को बौद्ध-लिपिसे पहलेको कोई शिलालिपि आज तक न निकली बता हम यह न ख़याल करेंगे, कि उससे पहले किसी राजकीय लिपिका चलन न था। १७ से मानवध मसूत्र बिलकुल मिल जाता है। इसीलिये पाश्चात्य संस्कृतज्ञ पण्डित प्रचलित धर्म शास्त्री याज्ञवल्क्य-सा तिको बहुत पुरानी समझते हैं। मनुकै नामसे जो शोक रामायण और महाभारतमें उदृत हुए हैं, उनके कितने ही लोक हमने याज्ञवल्का-सा तिमें देखें हैं। ऐसे स्थलमें याज्ञ बल्का-धर्मशास्त्रको बुदैवसे बहुत पहलेका कहकर यहण करने में कोई आपत्ति नहीं होती।