पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/६७३

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अप्रसिद्धपद-अप्रस्तुतप्रशंसा परन्तु उस प्रकत विषयको छोड़कर, जिस देश में पति वास करता, वहांके कोकिल-कुहुखरको तुलना कौवोंको बोलीके साथ कर पति क्यों घर नहीं लौट आता, उसके कारणका उल्लेख किया गया है। अर्थात् विरहिणी नारी जहां रहती, वहां कोकिलको कूक हमेशा उसे व्याकुल करती है। परदेशमें जहां उसका पति है, यदि वहां कोयलोंको बोली मोठी होती, तो वह अवशा हो मुग्ध होकर घर लौट आता। २। कारण वर्णन करनेके अभिप्रायसे कार्यका वर्णन। न अनिष्पन्न, अविखवात, अप्रतिष्ठित, अनिर्वाचित, अज्ञात, अपूर्व, बफैसला, बेबुनियाद, अजनवी, ना- मशहूर, अजीब, नामालूम, जिसे कोई न जाने । अप्रसिद्धपद (स'• क्लो०) अप्रचलित शब्द, नाजायज लफज़, जिस शब्दका चलन उठ गया हो। अप्रसूत (सं० वि०) निःसन्तान, वन्धा, बांझ, जिसके बालबच्चा न रहे। अप्रसृत (सं० त्रि०) न प्रसृतम्, नञ्-तत् । विद्यासे शून्य, इल्मसे खाली, जो पढ़ा-लिखा न हो। अप्रस्ताविक (सं० त्रि.) प्रधान विषयसे सम्बन्ध न रखनेवाला, जो खास मजमूनसे तअल्लुक रखता हो। अप्रस्तुत (सं० त्रि.) न प्रस्तुतम्, नत्र-तत् । १ अनिष्पन्न, नातैयार, जो मौजद न हो। २ आरम्भ- शून्य, प्रकरणसे अप्राप्त, जो बातके नामुवाफ़िक हो। ३ अप्रशंसित, तारीफ़ न पानेवाला। अप्रस्तुतप्रशंसा (स० स्त्री.) अप्रस्तुतस्य अप्राकरणि- कस्य अभिधानेन प्रस्तुतस्य प्रशंसा आक्षेपः । अप्रस्तुतेन प्रस्तुतस्य प्रशंसा व्यञ्जन मध्यपदलोपो ६-तत्। अथवा प्रस्तुतवाचकम् अप्रस्तुतकथनम् । अर्थालङ्कार-विशेष । जो प्रस्तुत है अर्थात् जिसके विषयमें कहना आरम्भ किया गया है, उसके अतिरिक्त किसी विषयका वर्णन करनेसे यदि प्रस्तुत अर्थात् प्राकृत प्रारब्ध विषयका वर्णन करना हो, तो उसे अप्रस्तुतप्रशंसा अलङ्कार कहते हैं। अप्रस्तुतप्रशसा अलङ्कार पांच प्रकारका है, यथा-१ कार्यप्रकाशके अभिप्रायसे कारणका वर्णन । २ कारण प्रकाशके अभिप्रायसे कार्यका वर्णन । ३ विशेष विषय वर्णन करने के अभिप्रायसे सामान्य विषयका वर्णन। ४ सामान्य विषय वर्णन करने के अभिप्रायसे विशेष विषयका वर्णन। ५ तुल्य विषय वर्णन करनेके अभिप्रायसे तुल्य विषयका वर्णन। १। कार्य वर्णन करनेके अभिप्रायसे कारणका वर्णन- "सुखसे मम पति करत हे सखि ! विदेशम वास । जहां कोकिला काकसम कूकत रहत सुपास ॥" पति परदेश गया है और लौटकर घर नहीं आता, यही काम वर्णन करनेको इच्छा कविको है। "नभम विधुको देखिकै कञ्चल विरच्यो राहु । महा कोपसों विरहिणी बहुरि तरेरे बाहु ।" राधिका कृष्णके विरहमें उदास बैठी थों, वैसे ही समय उन्हें आकाशमें चन्द्रमा दिखाई दिया। वह आंखके काजलसे राहुको मूर्ति आंककर क्रोधके साथ चन्द्रमाके प्रति देखने लगीं। चन्द्रमाको देखकर राधिकाको विरहाग्नि बहुत भभक उठी थी। अतएव राधिकाके मनःकष्ट बढ़नेका कारण वर्णन करना हो कविको इच्छा रही। परन्तु उस प्रकृत विषयको छोड़ राधिकाने चन्द्रमाको डर दिखानेके लिये जो राहुको मूर्ति आँको थी, उसी कार्यका वर्णन किया गया। अतएव यही व्यक्त हुआ, कि राहु उल्लिखित होनेसे चन्द्रमा ही राधिकाके अधिक दुःखका कारण रहा । ३। विशेष विषयका वर्णन करनेके अभिप्रायसे सामान्य विषयका वर्णन। यथा,- "पादाहत यदुत्वाय मूर्धानमधिरोहति । स्वस्थादेवापमानेपि देहिनस्तहर' रजः ॥" जो धूलि लात मारनेसे उड़कर मस्तकपर पड़तो, वही अचेतन धूलि अपमानित होते भी चेतन एवं सन्तुष्ट देहधारीको अपेक्षा श्रेष्ठ है। हम लोगोंको अपेक्षा धूलि श्रेष्ठ है, यही विशेष प्रस्तुत प्रकाश करना वक्ताका अभिप्राय था। किन्तु वह-देहधारी सामान्यको ' अपेक्षा श्रेष्ठ है, इस सामान्य आकारमें वर्णन किया गया। ४। सामान्यका वर्णन करने में विशेषका वर्णन