पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/६८०

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रोग । यह ६७४ अफगानस्थान भूमि भी कितनी ही मिलती, जिसमें मेवा बहुतायतसे कहों दो घण्टे चलकर ही ऐसी जगह मिलती, उपजता है। हिन्दूकुश हो यहां सबसे बड़ा पहाड़ जहां बर्फ हमेशा जमा रहता है।" है, जो काबुलके उत्तर-पश्चिम कोहेबाबा और हरी अफगान देखने में जैसे हृष्ट-पुष्ट होते, वैसे रोगसे रुदसे मशद तक फीरोज-कोह कहाता है। मुक्त नहीं रहते। ज्वर अनेक रूपसे फैले और कोहे-बाबा और हिन्दूकुशको पारकर तीन बड़ी वसन्त-ऋतुमें उदरामयादि होगा। गर्मी में राहें काबुलसे अफगान-तुर्कस्थान और बदखू शान्को छतपर सोनेसे गठिया और ऐंठन बढ़ गयी हैं। बेगारी मजदूर काफिला चलनेके लिये जाती है। राहको बर्फ हठाया करते हैं। भारतसे अफगानस्थान में कई जाति रहती हैं। अफगान काबुल खैबर, कुरम और टोचौकी राह अपनेको दुरानी और गिल्जायो तुर्की बतायेंगे। हज.र, जायेंगे। यहां अंगरेज़ी सिपाही यात्रियोंकी रक्षा चहारमक, ताजक, अज.बग और काफिर जाति करते हैं। अफ.रोदी तौरहके बीचसे भी सड़क वगैरह छोटी-छोटी जाति हैं। यहांके सभी निकली है। जलालाबाद और काबुलके बोच निवासी पुख्तनवाली रीतिको मानते, जो राजपूतोंको दो राहें हैं। अगले ज़माने में पेशावरसे काबुल चाल-ढालसे मिलती है। इनकी जातिका विभाग जानेको खेबर ही खास राह न रही, लघमन, इनको रहन ठहनको भी देख किया जा सकता है। कुनार, बाजौर और मालकन्दकी राह भी आना कुछ अफगान घरमें और कुछ जङ्गली डेरे में रहेंगे। जाना होता था। राहमें बहुत ऊंची-ऊंची घाटियां घरमें रहनेवाले अफगान खेतौ और सिपाह- पड़ेंगी। किन्तु भारत और अफगानस्थानके गिरी करते, दूसरा काम उन्हें नही मालूम । बीच व्यापार गोमलको राह ही अधिक चलता सुन्दर सुपुष्ट होते, दाढ़ी फहराती, माथे से चोटी तक है। इसमें अधिक ऊंची घाटियां नहीं देखने में सामने बाल बनते और इधर-उधरके बाल कन्धे पर आतीं। लटका करते हैं। इनका कदम मजबूत पड़े और इस देशमे शीत अधिक पड़ता है। ओक्सस् | देखनेमें घमण्डी और गुस्ताख मालूम होंगे। स्त्रियां प्रान्तमें समय पर गर्मीका ज़ोर भी खूब बढ़ेगा। भी सुरूपा होती और बालोंमें झब्ब बांधती हैं। काबुलमें दो-तीन महिने बर्फ जमा रहता है। कहते, अफगान बचपनसे ही खून बहानेको आदत कि अगले दिनों कई बार ग़ज़नीके सम्पूर्ण डालते, मरते-मारते, बहादुरौसे झपटते ; किन्तु हाथ मनुष्य जाड़ा खाकर मर चुके हैं। सन् खाली पड़ते ही झटसे हिम्मत खो बैठते अफगानको १७५० ई० में जब अहमद शाहको फौज ईरानसे प्रकृति हैं। यह कानून कायदेको बिलकुल नहीं वापस आती, तब अट्ठारह हजार सिपाही जमकर मानते, मतलब निकलनेसे सोधे-सादे समझ बर्फ बन गये थे। जाड़े में हरीरुद नदीका पूर्वीय पड़ते ; लेकिन काम बिगड़नेसे आग बबूला बन जाते तट बफ. पड़नेसे ऐसा कड़ा हो जाता, कि लोग हैं। यह धोकेबाज, घमण्डौ, तृप्त न होनेवाले और मैदान-पर जैसे चलते-फिरते हैं। जि.ही रहेंगे। अपनी जान देकर भी यह अपना अफगानस्थान शुष्क प्रदेश है। पानी अधिक न मतलब निकालते हैं। इनका जैसा अपराध कहीं देख पड़ेगा। उत्तरकी ओर जाड़े में और दक्षिणकी ओर नहीं पड़ता। इन्हें सजा भी कड़ी मिलती है। गर्मी में वृष्टि होती है। तूफानका ज़ोर रहेगा। आपसमें ही इनके झगड़ा, साजि.श और नाएतबारी बाबर बादशाहने काबुलके बारमें ठीक चले, और बराबर मार-काट होगो। मुसाफिर अपने प्राकतिक ही कहा था,-"यहांसे एक मञ्जिलको आने-जानेका समय और स्थान हमेशा छिपाता है। दूरीपर कहीं बर्फ कभी नहीं गिरता और अफगान असलमें कोई शिकारी चिड़िया होंगे। जलवायु