पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/६८४

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अफगानस्थान दो वर्षतक शाह शुजा काबुल और कन्धारमें जो मुलाकात हुयी, उससे दोनो राजोंका सम्बन्ध राजा करते रहे। सन् १८४० ई० को ३रौ नवम्बर- घनिष्ट पड़ा। को आत्मसमर्पण करनेसे दोस्त मुहम्मद भारत भेज शेर-अली अपना जोर बढ़ाने और रूश और दिये गये थे। सन् १८४१ ई० को श्री नवम्बरको ईरानसे लड़नेको अंगरेजोसे मदद मांगने लगे। किन्तु काबलमें बलवा फूटा और बानस आदि अफसर मारे जब अंगरेज मुंह मांगौ मदद देनेको राजी न हुये, पड़े। अन्तमें २३ वी दिसम्बरको दोस्तके लड़के तब वह ताशकन्दके रूशी हाकिमोंसे मिले-जुले। अकबर खान्ने अपने हाथों सर वलियष् मेकनेटनका सन् १८७६ ई० में अंगरेज़ोने भी अपना दबदबा शिर काट डाला था। सन् १८४२ ई० को ६ठी जन काबुलको ओर बढ़ाना चाहा था। अन्तको अंगरेजों- वरोको सन्धिपत्रके अनुसार साढ़े चार हज़ार अंगरेजी ने अमौरसे सन्धि करने और अपना कोई प्रतिनिधि सिपाही और बारह हज़ार अरदली काबुलसे भारत काबुलमें रखनेको कहा, किन्तु अमौर सुनी-अनसुनी आने लगे। राहमें जाड़ेके ज़ोर और अफगानोंके कर गये। अत्याचारसे लोगोंको बड़ा कष्ट मिला था। १३ वीं सन् १८७८-८० ई० में द्वितीय अफगान-युद्ध हुवा जनवरीको कुल बौस आदमी गण्डमक पहुंचे। था। सन् १८७८ ई० में रूशने अपना दूत काबुल इस विपद्का बदला लेने और कैदियोंके छुड़ानेको अमीरसे सन्धि करनेको भेजा। भारत-सरकारने भारतमें बड़ी तैयारी हुयी थी। सन् १८४२ ई० को भी अपना राजदूत काबुल भेजा ; किन्तु जब अमौरने १६ वीं अप्रेलको जनरल पोलकने जलालाबादका उसे निकाल बाहर किया, तब लड़ाई छेड़ दी गयो। उवार किया। कितने ही दिन ठहर वह आगे बढ़े सन् १८७८ ई० के नवम्बर महीने दूसरा अफगान और १५ वों सितम्बरको काबुल जा जीता था। दो युद्ध शुरू हुवा था। डोनल्ड टुवर्टको फौजने बलूच- दिन बाद गजनीके हथियार छीन नाट बहादुर भौ स्थानको राह बोलन घाटोसे आगे बढ़ बैलड़े भिड़े उन्हें मिल गये । बमियनसे खुशी खुशी कैदी छूटे थे। कन्धारपर कना किया और दूसरी फौजने वेबर काबुलका किला और बौचवाला बाजार तोड़ा गया घाटोसे पहुंच जलालाबादमें अपना अड्डा जमाया। और सन १८४२ ई. के दिसम्बर महीने अन्तको सर फेडरिकको फौज कुरमके घाटियोंसे अफगान- अंगरेजी फौजने अफगानस्थान खाली किया। स्थानके बौचमें घुसौ और अमौरको फौजको हरा किन्तु अफगान शाह-शुजाको हुकूमतसे खुश न शुतर-गरदानका दररा छोन लिया था। अमीर शेर रहे। वह अपना हक मारा जाता देखते थे और न अली भागे और सन् १८७८ ई. के फरवरी महीने शाहके पास अफगानोंको कोई ऐसी फौज थी, जो उत्तरप्रान्तके मजराइ-शरीफमें जा मरे। कितने ही बलवायियोंको मारती और भले आदमियोंको दिन अफगानों और अंगरेजी सिपाहियों में छोटी- बचा लेती। मोटी लड़ाइयां होते रही थीं। सन् १८५६ ई० में ईरानियोंने फिर हेरात पर इसी बीच शेर अलीके लड़के याकूब खान्ने मेजर अपना अधिकार जमाना चाहा था। सन् १८६३ ई. केवग नेरौको ( Cavegnari) खबर दो, कि वह में दोस्त मुहम्मद चल बसे और उनके लड़के शेर काबुल में अपने बापको गद्दीपर बैठ गये थे । अन्तमें सन् अलौने सन् १८६८ ई० में अफगानस्थान पर अपना १८७८ ई. के मार्च महीने गण्डमकमें अंगरेजों और अक्षुम प्रभुत्व स्थापित किया । उसी समय रूशने भौ याकूब खानके बीच सन्धि हुयी और याकूब खान् बोखारको अपने राजामें मिलाया। यह बात भारत अमौर बने। अफगानस्थानके कुछ जिले अंगरेजी सरकारको अच्छी न लगी थी। सन् १८६८ ई० को राज्यमें मिलाये गये, अमीरने सारा विदेशीय प्रबन्ध अमीर शेर-अली और बड़े लाट लार्ड मेयोसे अम्बालेमें अंगरेजोंको सौंपा और काब्लमें अंगरेजी दूत रहनेको