पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/६८५

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अकोबरमें काबुल अफगानस्थान-अफ़जल्उद्दीन् मौर बात पक्की हुयो । किन्तु सितम्बर महीने राजदूत सर शनने किया; पहले तो पञ्जदेहमें रूशियों और अफ- लुइम केवेगनेरी अपने मुसाहब और अरदलेके साथ गानोंके बीच एक छोटी-मोटी लड़ाई हुयी, किन्तु काबुलमें मारे गये। दूसरौ मुहीम फिर रवाना हुयी, अन्तमें सब काम शान्तिपूर्वक निकल गया। जिसने अफगानीको चरसियामें जा हराया और सन् १८८० ई० में अबदुर रहमानके गद्दीपर बैठने ले लिया। याकूब खान बाद दश वर्षतक अफगानस्थानमें खूब लड़ाई झगड़ा आत्मसमर्पण करनेपर भारत भेजे गये और अंगरेजी चला, किन्तु १८८१ ई में वह यहांके एकमात्र नृपति फौज काबुलमें ही पड़ी रही। किन्तु आफगानों के बन गये। रूश और अंगरेजोंने मिल चौनका तर्फ- बलवा मचानेसे उसके समाचार भेजने और मंगानेका वाली सरहद भी ठीक करा दो। अबदुर रहमानने मार्ग रुक गया था। अंगरेजोंसे कितना हो धन और अस्त्र-शस्त्र ले बलवायी अमीर शेर अलौके बड़े भाईवाले लड़के अबदुर अफगानोंको दबाया और अपनी फौज खूब रुस्त रहमान, दोस्त मुहम्मदको गद्दीपर बैठानेके लिये शेर कर दी। अलौसे लड़ते रहे और पौछे ओक् सम् नदौके पार सन् १८०१ ई० को १लो अकोबरको अबदुर- निकाल दिये गये थे। सन् १८८० ई० में वह वापस रहमानका देहान्त हुवा और दो दिन बाद उनके बड़े आये और अफगानस्थानके उत्तर अपना आधिपत्य लड़के हबीबुल्ला गद्दोपर बैठे। अफगानों ओर बड़े जमाने लगे। अन्तमें अंगरेजोंने उनसे बातचीत कर लाटको ओरसे मुसलमानोंने उनके सिंहासनारूढ़ उन्हें अमीर बनाया और किसो विदेशीय राज्यसे कोई होने पर बड़ा आनन्द मनाया था। उन्होंने अपने सम्बन्ध न रखनेका वचन लिया। कन्धार बरकजाई राजाका प्रबन्ध सुधारना और बलपूर्वक सेनाको संस्था वंशवाले शेर अली खान के अधीन स्वतन्त्र राजा बना सुधारना चाहा। वह अपने बापको हो तरह दिया गया था। भारतसरकारके मित्र बने हैं। सन १८०४ ई. के सन् १८८० ई० में अबदुर रहमानके गद्दीपर दिसम्बर महीने भारतसे अंगरेजी डेपुटेशन अमौरके बैठते हो हेरातसे निकल शेर अलोके छोटे लड़केने पास गया था। अमोरने पुरानी सन्धिमें कुछ हेर कन्धारको अंगरेजी फौजको बड़े जोरसे हराया, फेर करना न चाहा। अन्त को वह सन् १९०७ के जिसने उसका धावा रोकना चाहा था। उसी समय जनवरी महीने लार्ड मिण्टोसे भारत आकर मिले काबुलसे दश हजार अंगरेजी फौजने जा याकूब और उनके आने का बहुत अच्छा फल निकला । सन् खान्को नीचा देखाया और दक्षिण-अफगानस्थानमें १८०७ ई०को ३१ वों अगस्तको अंगरेजों और रूशि- बैठायो । सन् १८८१ ई में अफगान योंके बीच जो सन्धि हुयी थी, उससे दोनोने अफगान- स्थानसे अंगरेजी फौज जैसे ही भारत वापस आयो, स्थानको स्वतन्त्र राज्य मान लिया। वैसे हो फिर याकूब खान ने हेरातमें कुछ आदमौ | अफ़जल (फा०वि०) औवल, बढा हुवा, जो सबसे इकट्टे कर कन्धारपर धावा मारा। उसने जूनमें अच्छा हो। गिरिकका किला और जुलाईमें कन्धार जीत अफ.ज.लउद्दौला नवाब-हैदराबादके एक निजाम। लिया। २२ वीं नवम्बरको अमौर अबदुर रहमानने यह सन् १८५७ ई०में अपने पिता नवाब नसौर- अपनी फौज ले याकूब खान का जा हराया और हौलहकी जगह गद्दीपर बैठे थे। सन् १८६८ ई.को उसको तोपें छीन ली। पोछे याकूब खान ईरान २६ वों फरवरौको चवालीस वर्षको अवस्थामें कराल भाग गये। कालने इन्हें कवलित किया। सन् १८८४ ई० में उत्तर अफगानस्थानको सीमा अफ.ज.लउद्दीन् मौर-सूरतके कोई नवाब । सन् १८४० निर्धारित करनेका विचार अंगरेजी और रूशौ कमि ईको ७वों अगस्त को उनसठ वर्षको अवस्थामें इक्कीस अंगरेजी हुकूमत