पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/६९

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अक्षरलिपि आठ हैं, अनुदान ऋषभ और धैवत, मरितमें पड़ ज, मध्यम और पञ्चम स्वरका उद्भव ना है। 'अक्षर-समष्टि उच्चारण करने के स्थान यथा हृदय, कण्ठ, शिर, जिनामूल, दन्तममूह, नासिका, अोष्ठ और ताल । उम अक्षरको प्रमित आठ गति यह है...'बो' भाव, वित्ति, श ष म, रेफ, जिह्वामूल और उपधमा। 'ओ' भाव उकारान्तादि पदमें मंहत मिलता है मही, किन्तु मा पद स्वरान्त ही समझना पड़ेगा। मिवा इमक दृमगे जगह जिम किसी पदम उमाक्षरको अभिव्यक्ति होती है, उस पदको भी वैमा हो म्वगन्त जानना चाहिये । हकार, पञ्चस्वर और अन्त्यम्थ अत्तगम मिल जानेमे हृद- योत्पन्न और न मिन्ननम कगठास्थित माना जायगा। प्रा.लि मhi - 4th III. वगविलय कम्पनी प| यादव याना 14.1 मा । अनमागविमगध सकते हैं। श्रुति, स्मृति और सुप्राचीन हिन्दू राजाओं- के अनुशासन उसी बाह्मी लिपिमें हो लिखे जाते थे। ऋग्वेदमें दर्शनयोग्य मन्त्रमूर्ति और अक्षरका उख है। मिश्र-देशमें जैसे एक हो समय चित्रलिपि (Hieroglyphics) और उसको सङ्केतलिपि (Ilierati. characters) प्रचलित थी, वैदिक अायोंके बीच भी वैसे ही मन्त्रमूर्तिरूप चित्रलिपि और अक्षरलिपि प्रचलित हुई थी। पापिरम् (Papyrus) नामक पत्रपर जैसे मिश्रको आदि सङ्कत-लिपि अशित होतो, वैदिककालमें भी वैसे ही भूज पत्र, या क्षुरभ्र द्वारा किसी पटपर लिखने की प्रथा वर्तमान थी। वेदाङ्गके दूसरे शिक्षाग्रन्थमें लिखा है,--"शम्भुक मतसे प्राकृत और संस्कृतमें यथाक्रम निरमठ और- चौसठ अक्षर प्रसिद्ध है। उनमें स्वराक्षर डकोम, म्पर्शा- क्षर यानी 'क' से 'म' तक वर्गीय अक्षर पचीम, याद्यक्षर यानी य व र ल श ष स ह यह आठ और यम या युग्माक्षर (2) चार हैं। सिवा इनके अनुसार, विसर्ग, जिह्वामूलीय, उपध्मानीय, दुःस्पृष्ट, टुकार और प्लत; इन सबको मिला चौमठ अक्षर होते हैं 'आत्मा बुद्धिसे मिलकर वचन-रचनाको वामनामें मनको लगाता है; जब मन कायाग्निको आहत करता है। अग्नि वायुको प्रेरण करती हैं। वायु हृदय देशमें प्रवाहित हो धीरे-धीरे स्वर निका- लता है। यह स्वर प्रातःस्नानके माहचर्यमै गायत्री छन्दमें, मध्याह्नके समय कण्ठोस्थित मध्यम विष्टभ्छन्द- मैं और सायाह्नको अत्युच्च शीर्षण्य जगतीच्छन्दमें परि- णत होता है। वायु क्रमसे उठकर शौर्ष-देशर्म अभि- हत होता, फिर वहांसे मुंहमें आ अक्षर-ममष्टि प्रकाश करता है। यह अक्षरसमष्टि पांच भागोंमें विभक्त है। यथा, स्वर, काल, स्थान, प्रयत्न और अनुप्रदान । अक्ष- राभिज्ञोंने उक्त पांच भागोंमें ही अक्षर-विभागको नि- देश किया है। 'स्वर, तीन तरहके हैं-उदात्त, अनुदात्त और स्वरित। अच् या स्वर विषयमे उक्त तीन स्वर और इस्ख, दीर्घ और प्लुत ; यही कालत: नियत या नियमबद्ध हैं। उदात्त स्वरसे निषाद और गान्धार, पdिiatha: 01 नः कामासनम प्रात मनवाना । के मायानगम मम । ना नानांवमानन नायनानकम : मीदाणी मःम मा । वणान् जनयन नपा निभाग: ५ ॥ बरन: ht-:: म्यानान प्रदानदानात! अनि वर्गनिटः भानपुर : उदान शानदानवम्बग्लियाम:। अम्वी दोधप्रत इन फनना नाना पाप । उदानं निषादगार म्वरितप्रभवा नाना । अष्टा स्थानानि व नाममः केरा यार था। जिन्नामलञ्च दन्नाश्च नामिकीली न लान न । श्रोभावश्च विवृतिश्च प्रषमा गफ एव च। जिहामूलमुपधमा च गतिरष्टविधामगाः । यद्योभावप्रसन्धानमुकारादिपरं पदम् । खरान्तं तादृशं विद्यादयदन्धयक्रमभणः ॥