पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/७१०

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अबतक-अबरन ००३ अनथक, प्रकृतिके अनुपयोगी, अर्थशून्य, बेमानी, | अबन्धन (स त्रि०) बन्धनविहीन, मुक्त, बंधा न. जिसका कोई मतलब न निकले। २ असंयत, स्वाधीन, हुवा, खुला, आजाद। मुक्त, बंधा न हुवा, खुला, आजाद, जो किसौके मात अबन्धु (सं० त्रि०) बन्धुशून्य, मित्ररहित, जिसके हत न हो। कोई साथी न रहे। अबद्धक, अबद्ध देखो। (स्त्रो०) अबद्धिका । अबन्धुक्त् (सं० त्रि०) शत्र उत्पन्न करनेवाला, अबद्धमुख (सं० त्रि०) न बई संयतं मुखं मुख जिससे साथियोंका अभाव हो। व्यापार वाक्यं यस्य, नत्र -बहुव्री० । १ दुर्मुख, | अबन्धुर (सं० त्रि.) १ उच्च-नीच न होनेवाला, जो अप्रियवादी, बदज.बान् मुंहजोर, नापसन्द बात बराबर रहता हो। २ अनम, कड़ा, जो मुलायम बोलनेवाला। २ असावधानतासे बात-चीत करने न हो। ३ असुन्दर, कुरूप, बदसूरत, जो खू बसूरत वाला, जो बेपरवायोसे गुफ्तगू करता हो। न हो। 'बन्धुरबन्दुरौ स्यातान्नमसुन्दरयोस्त्रिषु ।' (रन्तिदैव ) अबध (सं० पु०) न बधः ताड़नं दण्डः प्राणनाशनं | अबन्ध्य (सं• त्रि०) न बन्ध्यमफलम् । सफल, फल- वा, अभावे नज-तत्। ताड़न वा दण्ड का अभाव, ग्राह, अमोघ फलोदय, हराभरा, मेवेदार, उपजाऊ । प्राणवियोगका अभाव, मार या सजाका न दिया. अबन्ध (वै० त्रि०) बन्धनरहित, बिखरनेवाला, जो जाना, जानका न लेना। बंधा न हो। अबधा (सं. स्त्री० ) न बध्यते प्राबध्यते च । १ त्रिभुज- | अबर (वै • लो०) अन्तर्वस्त्र, भीतरी कपड़ा। मध्यके लम्बको उभयपार्श्वस्थ भूमि। इसी लम्बसे (देशज )२ अबोर या आबरजाति । भवोर देखो। त्रिभुजका हिसाब लगता है। ( Perpendicular )| अबरक (हिं० पु.) १ अभ्रक, यह धातु खानिसे विभुज देखी। निकलता और तहका तह जमा रहता है। परिष्कार अबधाई (स० वि०) मारे न जाने योग्य, जो करनेसे इसका तह शोशे जैसा चमकेगा। लोग जान लेने काबिल न हो। इसके तहको कन्दील बनाते और बेल-बूटे काट अबधू (हिं० वि०) अज्ञान, अबोध, नादान्, नावा श्रीकृष्ण आदि देवताओं की झांकी भी सजाते हैं। किफ, जो जानता न हो । (पु.) २ अवधूत, साधु, विलायतमें यह किवाड़ोंपर लगाया जाता है। इसे संन्यासी, सन्त, महात्मा, फ.कौर, वली। आग नहीं जला सकती। जोर पड़नसे यह लच अबध्य (स. त्रि०) बधमहेति. बधादेशो बध्यम्, जायेगा। इसके दो रङ्ग हैं-काला और सफेद । ततो नज-तत्। १ प्राणदण्ड पानेके अयोगा, जो भारतवर्ष में यह मन्द्राज, राजपूताने और बङ्गालके जान्से मारा जाने काबिल न हो। स्त्री और पहाड़ोंपर मिलेगा। अब देखो। ब्राह्मणादिको शास्त्र दण्डपाने योगा नहीं ठहराता। २ भोडल, भुरवल, खानिसे निकलनेवाका एक २ अनर्थक, बेमाने, जिसका कोई मतलब न निकले। चिकना पत्थर । इस पत्थरके बर्तन बनाये जाते हैं। अबध्यभाव (सं० पु.) पवित्रता, शुद्धता; आच चूर-चर कर इसे रोगनमें डालेंगे, कोंकि इसकी रणको शुद्धि, पाकीज,गौ सफाई, जिस हालतमें चिकनायी चीजोंको चमका देती है। चालचलन नापाक न बने । अबरको (हिं० वि०) अबरकका, अबरकसे बना हुवा । प्रबन्धक (सं० त्रि.) बध्यते स्वधनमन्यत्र आधीयते | अबरख, अवरक देखो। बन्धः, ततो नञ्बहुव्री०। १ बन्धकरहित, जिस | अबरन (हिं. वि०) पद्यमें-१ अवय, वर्णन करनेके कर्ज के लेने में कोई चीज गिरवी न रहे। २ असंयत, अयोगा, जिसका बयान् न हो सके। २ अवर्ण, रूप- जो बंधा न हो। (पु.) ३ व्यक्ति विशेष । (स्त्री०) रहित, बैशक्ल, बैसूरत। ३ विभिन्न वर्ण, जिसका अबन्धिका। रङ्गन मिले। भावरण देखो।