पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/७१३

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अबुदि-अबुल फजल अबुद्धि (सं० स्त्री०) बुध-क्तिन्, अभावे नञ्-तत् । उसका अङ्गुर फूटा, अङ्गुरसे चारो ओर पल्लवदल १ज्ञानका अभाव, लाइल्मो, नासमझो। (त्रि.) छिटक पड़ा। अन्तको अबुलफजलके हृदयमें उसका नञ्-बहुव्री। बुद्धिहीन, बेअक्ल, नासमझ। फूल खिला था, जिस फलके सौरभने जगत्को अबुद्धिपूर्व, अबुद्धिपूर्वक देखो। मतवाला बना दिया। अबु धिपूर्वक (सं० त्रि.) १ अबुद्धिः पूर्वा यस्य, अबुल्फजलके पूर्वपुरुष अरबस्थानके आदमी रहे। बहुव्री०। जो यथार्थ बु धिपूर्वक न हो, जिससे पहले वृद्ध पितामहका नाम शैख मूसा था। वह बेलग्रामसे समझदारी न रहे, बेवकू.फौके साथ शुरू होनेवाला। निवासी रहे। यह पल्लो सिन्धु-प्रदेशके मध्य अवस्थित (अव्य०) २ मूर्खतासे, बेवकूफीके साथ, बेसमझ-बूझ । है। उनके पौत्र शैख खजर् भारतवर्षमें आकर पहुंचे, अबुध (सं० पु०) न बुधः, अप्राशस्त्र विरोधे वा किन्तु अधिककाल न रहे। वह शीघ्र ही हजाजको नञ्-तत्। जो पण्डित न हो, अपकृष्ट पण्डित, मूर्ख, वापस जा अपने खजाति अरबोंके साथ रहने लगे गंवार, बेवकू.फ.। थे, पोलेको अजमेरके पास नगरमें फिर वापस आये। अबुध्य (सं० वि०) १ज्ञानके अयोग्य, समझमें न यहां उनका कोई दूसरा काम न रहा ; सत्सङ्ग और आने काबिल । २ न जागनेवाला, जिसे जगा न सकें। साधु लोगोंके साथ ईखर-आलोचना कर वह अपना अबुध्यमान (स० त्रि.) न जागते हुवा, जो सो काल निकाल देते थे। रहा हो। जगत्में जो सुख होना चाहिये, वह सभी खजरको अबुध्न (सं० क्लो०) बन्ध बन्धने नक् बुनः मूलम्, मिलते रहा। किन्तु कठिन मनःकष्ट यही था,- नास्ति बुनः यस्य। १ अन्तरीक्ष, आस्मान्। (नि.) उनके सन्तान उत्पन्न होकर बचते न रहा। कितने २ मूलशून्य, बेबुनियाद, जिसको जड़ न रहे। ही बच्चे हुये थे, किन्तु सकल ही मर गये। अन्तमें 'बुध्नो नामूलरुद्रयोः।' (मेदिनी) मुबारक उत्पन्न हुये। सन्तान बचे तो आह्वादको अबुल-कासिम-१ कामरान् मिर्जाके बेटे और हुमायूं बात है, न बचे तो ईश्वरको इच्छा । इसमें मनुष्यका सम्राट्के भाई। सन् १५५७ ई० में सम्राट अकबरने क्या वश है? खिजर यही सोच-समझ ईश्वरपर इन्हें ग्वालियरके किले में बन्दी किया था, खान्जमान् निर्भर कर बैठे रहे। को दण्ड देने जाते समय मरवा हो डाला। मुबारक जो-जाग गये। अबुलफजल जिस गुणसे अबुल फजल-अकबरके प्यार मन्त्री और प्रधान। जगत्में पूजित रहे, पिताके बालककालमें हो उस इनका पूरा नाम शैख अबुल्फ़ज़ल रहा। कवितामें सकल गुणका अङ्गुर फूट पड़ा था। उस वयसमें यह अपना उपनाम 'अल्लामौ' डालते थे। नागोर दौड़ने-धूपने और खेलने-कूदनेका समय रहा, किन्तु वाले शैख मुबारकके यह दूसरे बेटे और शैव फेजोके मुबारक वह काम न करते। शैशवकालमें ही उनको भाई रहे। तीक्ष्ण बुद्धिका कितना हो परिचय मिला। वह संसारमें गुण ही गौरव होता, गुण न रहनेसे शेख आतनके पास चार वत्सर मन लगाकर किसीको आदर नहीं मिलता। विद्या, बुद्धि, धैर्य, लिखते-पढ़ते रहे। सद्विवेचना, न्यायपरता आदि गुण रहनेसे ही अबुल् साधुजनके प्रातःवाक्यसे सन्तान बचनेपर खिजर् फजलने अकबरको सभामें आदर पाया था। इतना बन्धुबान्धबके आदर-सत्कारको चिन्तामें पड़े। किन्तु गुण न रहनेसे जगत्में आज इनका कौन नाम नगरमें उनका कोई खजाति न रहा। इसलिये वह कुछ ज्ञाति-कुटुम्ब बुला साथ रहनेको सिन्धुदेश गये। किन्तु यह सकल गुण खास फ.जलका न रहा, राह दुर्गम रही, केवल मरुभूमि देख पड़ती थो; पूर्वपुरुष इसका वीज बो गये थे। मुबारकके हृदयमें खिजर् बहुत पोड़ित हुये। अन्तको पथके मध्य हो लेता?