पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/७१६

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अबुल्-फजल ७.६ हठात् अबुल फजलके मकानपर जा पहुंचे। उस समय दक्षिणमें युद्ध हो रहा था। जो कर्म- अबु ल-फजलने कुरानको जो टीका बनायौ, चालीस चारी नियुक्त थे, उनमें सकल ही शठ रहे ; विपक्षसे लेखक बैठे उसकी नकल उतार रहे थे। सलीम रिशवत (उत्कोच) ले सब काम बिगाड़ते थे । अबुल- समस्त कागज पत्र समेत उन लेखकोंको सम्राटके फजलके पहुंचने पर बहादुर खान्ने उत्कोच भेजा। पास बुला ले गये। उसके बाद कागज-पत्र सामने किन्तु अबुल फजुल उत्कोच लेनेवाले आदमी न रहे। रखकर कहने लगे,-"अबुल्-फजलको शठता देखिये; उन्होंने गर्वके साथ बहादुरखान्का द्रव्यादि लौटा उन्होंने मुझे पढ़ाते समय कुरान कैसे समझाया था ; दिया था। फिर मकानमें बैठ जो टीका लिखी, वह ठीक उसके मुरादका शिशु सन्तान मिर्जा रुस्तम उसी समय विपरीत निकली।" इस बातपर अबुल् फजल और एलिचपुरमें मर गया। वह पुत्रशोक भूल जानेके सम्राटके मनमें थोड़े दिन कुछ अखरस रहा था। लिये दिवारान शराब पीने लगे। अन्तको मदात्यय- अकबरने अब ल-फ.जल प्रभृति उस समयके प्रसिद्ध रोगने उन्हें धर दबोचा था। किन्तु अबुल फजलका प्रसिद्ध लोगोंको अच्छे-अच्छे संस्कृत और हिन्दी पुस्तक आना सुन वह उसी अवस्था में अहमदनगर जानेको फारसी भाषामें अनुवाद करनेपर लगा दिया था। तैयार हुये। पथमें अवस्था और भी खराब हो गयी फैजी लीलावती-गणितशास्त्र अनुवाद करने लगे। थी। एलिचपुरसे नरनाला उसके बाद शाहपुर कालीयदमन और महाभारतके कियदंशका भार पड़ता, पास हो दक्षिण पूर्णानदी भरी है। उसी अबुलफजलको मिला था। जगह शरीरको छोड़ मुरादका प्राणवायु निकल गया। सन् १५८२ ई में यह दो हजार सवारके मन्सब अबुल फजलने जाकर देखा, कि चारो ओर गड़- बनाये गये। उसी समय खान्देशके पति अलीखान्ने बड़ मच रहा था। सेनापति इन्हें वापस जानेको अपनी कन्याको सलीमके पास पहुंचा दिया था। समझाने लगे। किन्तु अबुल फजलने किसीकी बात सम्राट्को शीघ्र उनका सम्मान करना आवश्यक रहा। न सुनी। पहले जो सकल स्थान जीते गये थे, उन्हों इसीसे उन्होंने खान्देश और दक्षिणमें बुरहान् सकल स्थानों में आदमी पहुंचा इन्होंने शान्ति स्थापित उल्मुल्कके पास दूतस्वरूप फैजीको भेजा था । को। वेताला, तानटुम और सतनन्दा इनके हाथ सन् १५८३ ई०को ४थौ सितम्बरको मबारक मर आ गये थे। किन्तु उससे भी दक्षिणका गड़बड़ बन्द गये। दो वत्सर भी न बीते थे, कि फैजो भी दुनिया न हुवा, उलटे और भी जटिल पड़ गया। बहादुर से चल बसे। ज्ञानी लोग सब कुछ समझते हैं, किन्तु खान् कुमार दानियालके पास जा वश्यता स्वीकार समझकर भी शोकके समय मनको स्थिर रख नहीं करने को अस्वीकृत हुये थे। खान्देशमें भी युद्ध सकते। अबुल फजल परम ज्ञानी रहे, फिर भी पिता बढ़ गया। सम्राट अकबर उस समय उज्जयिनी में और भाताके शोकने उन्हें अभिभूत कर डाला था। रहे। उनकी इच्छा थी, कि वह स्वयं जाकर असीर- अबुल-फजल फिर हो ढाई हजार सवारके गढ़पर आक्रमण करते। असौरगढ़ बहादुर खान्का उस समय दक्षिणमें बड़ा गड़बड़ रहा। किला रहा। इधर उन्होंने अहमदनगर पर आक्रमण सुलतान् मुराद वहां शासन चलाते ; किन्तु राजकार्य करने के लिये दानियालको नियुक्त किया था। अबुल- कुछ भी न देखते, दिवारान शराब पीते और पड़े फज़ल अपने सिपाहियोंको मिर्जा शाहरुख, मौर रहते थे। अतिरिक्त सुरापानसे उनका शरीर भी मुर्तजा और खाजा अबुल-हसनके पास छोड़ सम्राट्स भग्न हो गया था। इसी कारण अबुलफजलसे मिलने चले गये। उस समय यह चार हजार सम्राट्ने कह दिया,-'लौटते समय आप मुरादको सवारके मन्सब बने थे। अकबर और अबल-फजल अपने साथ लेते प्रायियेगा।' दोनोने मिल असौरगढ़ जीत लिया। उसके बाद Vol I. 178 मन्सब बने।