पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/७२२

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अबोध्य-अबोर ७१५ समझ न पड़े। २न जागनेवाला, जो जगाने या मनुष्य पश्चिममें रहते, वह उन्हीं कनिष्ठ पुत्रके वंशधर उठाने काबिल न हो। हैं। उनकी माता अपने साथ जो सकल ट्रय ले अबोध्य, अबुद्ध देखो। गयी थों, उसका नमूना देखा सबको शिल्पकार्य अबोर-(आबर) आसामको जातिविशेष। मालम सिखा दिया। उसीसे अन्य-अन्य देशके लोग विद्वान् होता, 'कि प्रकृत शब्द अवर है। जो लोग श्रेष्ठ नहीं और शिल्पी बन गये हैं। किन्तु ज्येष्ठपुत्रके लिये अर्थात् असभ्य होते, उन्हें अबोर कहते हैं। किन्तु | जननौने दूसरी कोई चीज न रखी ; केवल एक आसामी भाषामें बोर शब्द राजत्वका सूचक है लोहेका कुरा छोड़ा था, जिसे देख आजकलके इसलिये जो स्वाधीन रहते, किसोको राजत्व नहीं अबोरोने उसका बनाना सौखा। फिर कितना हो देते, उन्हें ही अबोर कहते हैं। सादा काल-वोज पड़ा रह गया था, उसे ही बोकर आसाम विभागके अन्तर्गत लखीमपुरसे उत्तर इनका कृषि-कर्म चला। यदि नमूना देखने में न अबोर पर्वत विद्यमान है। इससे पूर्व मिशमी और आता, तो अबोर शिल्पकार्य कैसे कर सकते थे ! पश्चिम मिड़ी पर्वत, उत्तरको तिब्बत देश पड़ेगा। अबोर पहाड़को बग़ल में कुटी बनाकर रहते हैं। इसी अबोर पर्वतमें अबीर नामक कोई असभ्य जाति इनका मकान कोई बत्तीस हाथ लम्बा और बारह रहती है। डाल्टन साहबके मतसे अबोर, मिशमो चौड़ा पड़ेगा। सामने थोड़ा सहन रखते हैं। मकान- एवं मिड़ी यह तीनो जाति किसो आदिपुरुषसे उत्पन्न को इक ओर पहाड़ और तीन ओर तखतका बाड़ा हुयी हैं। कोई अबोर आदिको तिब्बतके लोगोंसे रहेगा। मकानके किवाड़ भी तख तेसे ही बनते हैं। निकला हुवा बतायेगा। किन्तु निश्चय नहीं होता, मकानको सतहसे कोई दो हाथ ऊ'चे बांसका मचान यह अनुमान ठीक है या गलत । इनकी भाषा विभिन्न बांधेगे। उसी मचान पर पड़ना-बैठना होता है। है; आचार-व्यवहार और धर्म नहीं मिलता। ऐसी अबोर फस और वनकदलौके पत्तेसे छप्पर छायेंगे। दशामें यह एक जाति कैसे हो सकते हैं। ओलती जमोनतक लटकती, इसीसे तूफान मकान दिवं नदके कूल एवं देवरूगढ़से बिलकुल उत्तर, उड़ा नहीं सकता। मकान बनाते समय गांवके दिव और दिर्जमो नदके मध्य अनेक अबोर रहते हैं। सब लोग जाकर मज़दूरी करें, किन्तु उसके लिये यह अपनेको पादम बतायेंगे। इनका मुख मुगलों किसीको दाम देना न पड़ेगा। गृहस्थको कुटीमें जैसा, शरीरका वर्ण मटमेला, आकार दीर्घ, स्वर स्त्री, पुरुष और उनको अविवाहिता बालिका एक गम्भीर और वार्तालाप अधिक मिष्ट और धीर रहता साथ रहती हैं। किन्तु बालक किंवा अविवाहित है। यह झगड़ाल होते, एक दूसरेसे अप्रसन्न रहते युवा पुरुष वहां ठहर न सकेंगे। रहनेको पृथक् और आपसमें राजनीतिक विरोध अधिक रखते हैं। स्थान होता, जिसे अबोर-भाषामें मोरङ्ग कहते हैं। अबोरों के मतमें पृथ्वीके सकल मनुष्य किसी मोरङ्ग-भवन प्रायः १३२ हाथ लम्बा निकलेगा। उसमें आदिपुरुषसे उत्पन्न हुये थे। यह कहते, कि पहले आग रखनेको कोई सोलह-सत्रह स्थान रहते हैं। सिर्फ एक स्त्री और एक पुरुष ही रहा। उनके दो हमारे देशमें जैसे रामलीलाका बाड़ा और सभ्य पुत्र-सन्तान उत्पन्न हुये। जवष्ठपुत्र मृगया मारने में समाजमें टाउन हाल हा, वैसे ही अबोरोंका मोरङ्ग- विलक्षण पटु निकला था। कनिष्ठ चतुर और शिल्पी भवन भी बनेगा। वह सर्वसाधारणको सम्पत्ति है। हुवा। माता छोटे लड़केका बहुत प्यार करती थी। प्रति दिन वहां ग्रामस्थ लोगोंको सभा लगे और क्या जाने क्या मनमें आया, वह उसे ले पश्चिम ओर रात्रिकालमें समस्त बालक और अविवाहित युवा चली गयीं। अस्त्र-शस्त्र, खेतीका सामान और घरका पुरुष सोयेंगे। द्रव्यादि कुछ भी छूटा न था। आजकल जो समस्त आजकल किसी-किसी स्थानके अबोरोंकी पोशाक