पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/७२६

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होगा। अब्द ०१६ हुयो हो, उसे बहुत ही पुरानी कहना चाहिये । किन्तु देवताओंका एक दिन होता है। इसलिये एक अब्द लिख रखनेको प्रथा चलित रहनेसे आधुनिक वर्षको ३६०से गुण करनेपर एक देव वर्ष हुआ घटनाको पुरातन कहना कठिन है। इसौसे प्रथम करता है। चौन-देशके जिन-जिन पुस्तकोंमें अब्द लिखे हुए थे, सन् मासेन स्यादहोराव: पैत्री वष ण देवतः । (अमर) २२० ई०से पहले वहांके सम्राट्ने उन सब पुस्तकोंको अतएव ३६० लौकिक वर्ष में देवताका एक वर्ष जलवा दिया। इसके सिवा जिन-जिन पण्डितोंको वह सब अब्द याद थे, वह जीते ही गाड़े गये। पित्रा-३० तिथियोंका एक लौकिक मास होता अति प्राचीनकाल हमारे भारतवर्षमें भी अब्द है। एक महीने में पिलोगोंका एक दिन हुआ लिख रखनेको सुप्रथा न थी। ज्योतिविद्या की आलो करता है, अतएव ३० तिथिको ३६०से गुण करनेपर चना प्रारम्भ होनेपर सत्य, त्रेता, द्वापर और कलि पिटलोगोंका एक वर्ष होता है। ३६०४३०= चार प्रकार युगका विभाग हुआ। (ज्योतिष शब्दमें १०८०० चान्द्र दिनोंका एक पित्रावर्ष होगा। विस्तृत पालोचना देखो। ) उसके बाद ब्राह्म, दिव्य, पिना, प्राजापत्य-मन्वन्तरका हो दूसरा नाम प्राजापत्य प्राजापत्य, बार्हस्पत्य, सौर, सावन, चान्द्र और है। अतएव चार युगोंके परिमाणको ७१से गुण नाक्षत्र यह नौ प्रकार अब्द निर्धारित करनेका करनेपर प्राजापत्य वर्ष निश्चित हो सकता है। उपाय अवलम्बन किया गया। किन्तु युधिष्ठिरके मन्वन्तरतु दिव्यानां युगानामेकसप्ततिः । (अमर) समयसे ही प्रकृत अब्द रखनेकी प्रथा चली है। ४३२०००.४७१-३०६७२०००० वर्षका एक युधिष्ठिरके राजत्वकालसे जो अब्द निकला, उसे प्राजापत्य अब्द होता है। युधिष्ठिराब्द कहते हैं। कलिका गताब्द भी कई बार्हस्पत्य । बृहस्पतिके उदय और अस्त स्थानों में लिखा है। खेतवराह-कल्पाब्द, कलि-गताब्द, अनुसार अब्द गिना जाता है। बाहस्पत्य अब्द बारह संवत्, शकाब्द, सन्, फसली, विलायती, हिजरी, प्रकारका होता है। यथा- मघी और खुष्टीय वा ईसवी आदि अनेक प्रकारके १।-कृत्तिका किम्बा रोहिणी इन दो नक्षत्रसे अब्द हिन्दुस्थानी पञ्चाङ्गोंमें लिखे रहते हैं। किन्तु किसीमें बृहस्पतिका उदय अथवा अस्त होने से वह साधारणत: अंगरेजी अब्द ही अधिक व्यवहार कार्तिक नामक वर्ष कहाता है। किया जाता, केवल संस्कृतके काममें ही संवत् और २।-मृगशिरा किम्बा आर्द्रा इन किसीमें बह- शकका चलन देख पड़ता है। स्पतिका उदय अथवा अस्त होने से वह मार्गशीर्ष वर्ष ब्राह्म-४३२०००० लौकिक वत्सर चारयुगका परिमाण है। उसे एक हजारसे गुण करनेपर ब्रह्माका ३।-पुनर्वसु किम्बा पुथा इन किसी नक्षत्र में एक दिनमान होता है। इसलिये उसे दोसे गुण बृहस्पतिका उदय अथवा अस्त होनेसे वह पौष वर्ष करनेपर ब्रह्माका एक रातदिन होता है। अर्थात् | कहाता है। ८६४००००००० लौकिक वर्ष में ब्रह्माका एक एक ४।-अश्लेषा किम्बा पुष्था इन किसी नक्षत्रमें अहोरात्र होगा। फिर इस राशिको ३६० से गुण बृहस्पतिका उदय अथवा अस्त होनेसे वह माघ वर्ष करनेपर एक ब्राह्म अब्द होता है। ८६४००००००० होगा। ४३६०=३११०४०००००००० वर्षों में ब्रह्माका एक ५।-पूर्वफलानो, उत्तरफल्गुनो किम्बा हस्ता एक अब्द आयेगा। इन किसी नक्षत्रमें बृहस्पतिका उदय अथवा अस्त देवे युगसह हे ब्राह्मः कल्पौ तु तौः नृष्णाम् । (अमर) होनेसे फाल्गुन वर्ष कहते हैं। दिव्य-लौकिक बारह महीने अर्थात् एक वर्षमें ६।-चित्रा किम्बा स्वाती इन किसी नक्षत्र में होगा।