पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/७३२

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अब्द ७२५ त्रेतायुग 92 " 97 कलिगताब्द वा कल्यब्द । सत्य, त्रेता, द्वापर और कलि इन चारो युगोंका एक महायुग होता है। नीचे युगोंका परिमाण दिया जाता है- वत्सर देवपरिमाण कृतयुग १७२८०००+३६०-४८०० वत्सर १२८६००० ३६०-३६०० हापर ८६४०००+३६०-२४०० कलियुग ४३२००० ३६० - १२०० महायुग ४३२०००० ३६०-१२००० ईसा मसीहके जन्मसे ३१०२ वर्ष पहले कलियुग प्रचलित हुआ। वराहमिहिरके समयतक भी कलिगताब्द व्यवहार- में आता था। वराहमिहिरसे प्रायः पचास वर्ष पहले आर्यभट जीवित थे। आर्यभट और उनसे पहलेके ज्योतिर्विद्गण भी कलियुगाब्द हारा हो सौर और चान्द्रसौरको कालगणना करते थे। जिस-जिस स्थलमें केवल कलियुगाब्द हो काल- गणनाके मानरूपसे परिग्टहीत होता, उसी-उसौ स्थलमें महीने की तारीख सौर और दिनको संख्या सावन दिन नामसे की गई है। * सावन और चान्द्र- मान द्वारा ही साधारणतः वत्सरको गणना होती है। उत्तरभारतमें चान्द्र-सावन-मान ही प्रचलित है। युधिष्ठिराब्द वा भारत-युद्धाब्द । युधिष्ठिरके आविर्भावकाल-विषयमें मतभेद है। बाहस्पत्यमान वा षष्टिसवत्सरके प्रसङ्गमें यह बात पहले ही कह दी गई है। वराहमिहिरके मतमें शकाब्दके साथ २५२६ जोड़ देनेसे (अर्थात् शकाब्दसे २५२६ वर्ष पहले ) युधिष्ठिरका समय जाना जाता है। भास्कराचार्यने लिखा है- "नन्दाद्रीन्दुगुणास्तथा शकनृपस्यान्त कलेवत्सराः ।" कलिके ३१७८ वर्ष बीत जानेपर (वराहमिहिरके

  • सूर्योदयसे जो दिन गिना जाता है, उसे सावन दिन कहते हैं।

परन्तु इस शब्दका अर्थ दूसरी तरह है। सवनका पर्थ यज्ञ वा सोमरसानु- सन्धान है। उस समयमें सूर्योदयसे यज्ञ प्रारम्भ होता था, इसीसे सावनका अर्थ सौरदिवस है। Vol. 1. 182 मतसे ) युधिष्ठिर आविर्भूत हुए थे। किन्तु पहले कहा जा चुका है, कि वराहमिहिरसे पहले कल्यब्द प्रचलित था। उत्तरभारतमें उनका मत प्रचलित होने पर भी ऐसा विश्वास नहीं होता, कि दक्षिण- भारतमें प्रथमतः विशेषरूपसे वह प्रचलित हुआ था। बराहमिहिर ५०८ शकमें परलोक गये। * उसके ४७ वर्ष बाद उत्कीर्ण प्रतीच्य चालुकराज रे पुलिकेशीके शिलाफलकमें लिखा गया है- "त्रिशत्स विसहसे सु भारतादाहवादितः । सप्ताब्दशतयुक्त षु गतेष्वब्द षु पञ्चम् ॥ पञ्चाशत्स कली काले षट्स पञ्चशतासु च । समासु समतौतासु शकानामपि भूभुजाम् ॥" अर्थात् भारतयुद्धसे अबतक ३७३५ वर्ष और इस कलिकालमें शकाधिपतिके ५५६ वर्ष बीत चुके हैं। उक्त खोदित लिपिके श्लोकानुसार शकाब्दके ३१३८ वर्ष पहले भारतयुद्ध हुआ था। फिर भास्करा- चार्य तथा मकरन्दके मतसे इसी वर्ष कल्यब्द प्रारम्भ हुआ। सुतरां प्राचीन खोदित-लिपिके अनुसार भारतयुद्धके समयसे हो कल्यब्द आरम्भ हुआ है। ज्योतिर्विदाभरणमें (१०वें अध्यायमें) देखा जाता है- "युधिष्ठिराई दयुगाम्बरामयः कलम्बविश्वे ऽयखखाष्टभूमयः । ततोऽयुत लक्षचतुष्टयं क्रमात् धरादृगष्टाविति शाकवत्सराः ॥" ऊपर लिखे हुए श्लोकका तात्पर्य यही है, कि घुधिष्टिरसे लेकर ३०४४ वर्ष, उसके बाद विक्रमा- दित्यके १३५ वर्ष बीत जानेपर शाकवर्ष वा शकाब्द प्रारम्भ हुआ। ऐसे स्थलमें युधिष्ठिरके (३०३४ + १४५=)३१७८ वर्ष बाद शकाब्द प्रचलित हुआ था। सुतरां भास्कराचार्य और वराहमिहिरने जिसे कल्यब्द माना, वही यौधिष्ठिराब्द वा भारतयुद्धाब्द होता है। . परशरामचक्र वा सहन-स'वत्सर । एक सहस्र वर्ष में परशुराम अब्द होता है। ईसा- मसीहके जन्मसे ११७६ बर्ष पहले यह अब्द प्रचलित हुआ। विवाङ्कोड़ और कुमारिका अन्तरोपके अञ्चल "नवाधिकपञ्चशतसख्यशाकै वराहमिहिराचार्यों दिवंगतः।". (ब्रह्मगुप्तरचित खण्डखाद्यको भामराजकृत टीका)