पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/७३५

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०२८ अब्द दाक्षिणात्यमें चैत्र और कार्तिक दोनों मासोंसे हो प्रारम्भ देखा जाता है। कार्तिकादि वर्षारम्भ कहीं पूर्णिमान्त और कहीं अमान्त है। परन्तु चैत्रादि वर्षा- रम्भमें पूर्णिमान्त मास माना जाता है। ४१८से ८५० अङ्कतक यह अब्द विक्रमाब्दके नामसे प्रचलित न रहा, 'मालवकाल', 'मालवानां संवत्', और 'मालवगणस्थित्यब्द'के नामसे ही प्रचलित था। ८८८ अङ्कमें पहले पहल 'विक्रम संवत्का उल्लेख पाया जाता है। सन् ईखोसे ५७ वर्ष पहले इस अब्दका प्रारम्भ माना गया है। ग्रहपरिवृत्ति-चक्र। दक्षिणभारतमें यह अब्द प्रचलित है। प्रत्येक ८० वर्ष में यह अब्दचक्र पूर्ण होता है। यह अब्द ईमा मसौहके जन्मसे २४ वर्ष पहले प्रवर्तित हुआ था। बार्हस्पत्य-चक्रके साथ इस अब्दका सम्बन्ध ख्याल किया जा सकता है। शककाल वा शकाब्द। यह अब्द 'शकभूपकाल' और 'शक-नरपतिके अतीताब्द'के नामसे प्रचलित है। इससे यह समझा जाता, कि किसी शक राजासे ही यह अब्द प्रचलित हुआ है। किस शक नरपतिने इस अब्दको चलाया है, इस विषयमें यथेष्ट मतभेद है। अनेक ऐतिहासिकोको विश्वास है, कि शकसम्राट कनिष्कसे हो शकाब्द प्रवर्तित हुआ था। कनिहाम्-प्रमुख प्रत्नतत्वविद्गणके मतानुसार उज्जयिनीपति चष्ठनसे शकाब्द प्रचलित हुआ। अन्दराजवंश शब्द-५९२ पृष्ठमै और परिचय देखो। समस्त ज्योतिषिक करणग्रन्थोंमें इस शकाब्दका उल्लेख है। पूर्वभारत और द्राविड़ अञ्चलमें इस अब्दको गणना सौरमानस और पश्चिमभारतमें चान्द्रमानसे की जाती है। जहां चान्द्रमान है, वहां चैत्रादि वर्ष और जहां सौरमान है, वहां मेषादि वर्ष गिना जाता है। इसके अतिरिक्त नर्मदासे उत्तर पूर्णिमान्त और दक्षिण अमान्त मानते हैं। चेदि वा कलचुरि-स'वत्। प्राचीन चालुक्यराज मङ्गलीशवाली ईस वीके ठे शताब्दको महाकूट-स्तम्भलिपिमें 'कलत्सरि' नामक एक राजवंशका उल्लेख है। यह राजगण अपनेको सहस्रार्जुनका वंशधर कहते हैं। सम्भवतः महाराज समुद्रगुप्तको प्रयागस्थ स्तम्भलिपिमें आर्जुनायनके नामसे इन्हों लोगोंका उल्लेख किया गया है। इन लोगोंने अपने राजत्वमें जो संवत् चलाया था, वही शिलालिपि विशेषमें चेदि-संवत् वा कलचुरि-सवत्के नामसे लिखा गया। इस राजवंशके राजत्वकालमें ७२८से ८३४ संवत्के बीच खुदे हुए अनेक शिलालेख पाये गये हैं। उनमें उच्चकल्पके महाराजको दान-प्रशस्ति हो सबसे प्राचीन है। सर् कनिहाम् और किलहोर्नने इन सब शिलालेखोंको अच्छीतरह देखकर २४८ वा २४८-२५० ईस्वीके बीच चेदि-स'वत्का प्रारम्भकाल निर्देश किया है। महाराज उच्चकल्पको एक शिलालिपिमें उक्त वंशक महाराज सर्वनाथका उल्लेख पाया जाता है। राजा सर्वनाथ गुप्तराजसामन्त परिव्राजक-महाराज हस्तीके समसामयिक थे। गुप्त- संवत्के अनुसार महाराज हस्तीको समसामयिक कहकर यदि महाराज सर्वनाथके राज्यकालको कल्पना को जाय, तो कनिहाम्के कहे हुए २४०-२५० ईखौ समयमें अन्तत: २१ वर्ष जोड़ देना ही सिद्धान्त है। किन्तु दुःखको बात है, कि उच्चकल्पको दी हुई तारीखोंसे उसके कोई सटीक सिद्धान्तको प्रत्याशा नहीं है। इसी कारण कितनों हौके मतसे २४९-५० ईस्वीमें ही चेदिसंवत्- का आरम्भ ठीक है। अध्यापक किलहोन साहब अनुमान करते हैं, कि चैत्रादि विक्रम संवत् ३०५ आश्विन शुक्ल प्रतिपदसे चेदि-अब्द प्रारम्भ हुआ है। किन्तु महाराष्ट्र-ज्योतिर्विद् शङ्कर-बालकृष्ण दीक्षितके मतानुसार अमान्त भाद्रपदके कृष्ण प्रतिपदसे कलचुरि- काल प्रचलित हुआ था। गुप्तस'वत् वा गौप्ताब्द। यह मगधके गुप्तवंशीय राजाओंका प्रवर्तित अब्द है। महाराज कुमारगुप्त और बन्धुवर्माकी मन्दशो- रस्थ शिलालिपि. मिलनेसे पहले गुप्तराजवंश-काल- निर्णयको, बातको लेकर भारतके इतिहासमें महा