पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/७३६

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अब्द ७२६ होगा। गुप्त एवं वलभौ-राजवंशका अभ्युदय और वर्षारम्भ एक ही समयमें हुआ था। २४१ शकाब्द या सन् ३१८ ई०को काठिवाड़ प्रान्तमें वलभोसे एक वर्ष चला। ताम्रपटादिमें २से ८४५ तक इस अब्दक अङ्क पाये गये हैं। इससे स्वीकार करना पड़ेगा, कि खुष्टीय ४थेसे १३वें शताब्दतक यह अब्द प्रचलित रहा। अब भी सौराष्ट्र में कहीं-कहीं यह अब्द चलता है। यह वर्ष कार्तिकसे आरम्भ हो, किन्तु पूर्णिमान्त और अमान्त यही दो प्रकारको मासगणना लगायेंगे। श्रीहर्ष-संवत् । गोलमाल मच गया था। कितने ही ऐतिहासिक उसी भ्रमात्मक पथसे विचरण कर भारतके इतिहासमें अनेक राजवंशोंके राज्यकाल-सम्बन्धपर विभ्राट् उप- स्थित कर गये हैं। शिलालिपि और मुद्रा हो गुप्तकाल निर्णयके प्रधान अवलम्बन हैं। हमलोग चन्द्र- गुप्तको रौप्यमुद्रासे ८४ वा ८५ संवत्, कुमारगुप्तको मुद्रासे १४४, १४५, १४७, १४८ वा १४८ संवत् और बुधगुप्तको मुद्रासे १७५ और १८० सवत्का उल्लेख पाते हैं। कुछ स्वर्ण मुद्राओंमें भी द्वितीय चन्द्रगुप्तका विक्रम वा विक्रमादित्य, कुमारगुप्तका महेन्द्र वा महेन्द्रादित्य और स्कन्दगुप्तका क्रमादित्य नाम मिलता है। पहले पाश्चात्य पण्डितोंने अल्बीरूनीके कालनिर्णय- से अपनी अपनी युक्ति और मीमांसारूप गुप्तकाल निर्धारित किया था। उसके अनुसार मि. टमस ( Thomas ) शकाब्दके साथ गुप्तकाल समकालवर्ती अर्थात् सन् ७७-७८ ईखो, उसके बाद जेनरल कनि- हाम १६६-६७ ई०, क्लाइव बेलौ १८०-८१ ई. और मि० फागुसन ३१८-१८ ई. में ही गुप्तकालका आरम्भ स्वीकार कर गये । अल्बोरूनौके मतसे प्राचीन गुप्तवंशका राजत्व विलुप्त होने बाद गुप्तराजाको प्रतिष्ठा और प्रतिभा स्मरण रखनेको हौ गुप्ताब्दका प्रचलन हुआ था। गुप्त और वलभी-राजवंशियोंके शिलालेखों, विशेषतः मन्दशोर-शिलालिपिको पर्या- लोचना करनेसे देखा जाता है, कि प्राचीन गुप्तराज- वंशका राजा सन् ३१८ ई में नहीं मिटा, वरं उक्त अब्दके बहुत पीछे तक चलते रहा। गुप्तराजवंश देखो। उसके अनुसार २४२ शक वर्ष वाले चैत्र शुक्ल प्रतिपदसे गुप्तकाल प्रारम्भ हुआ था। बलभी-स'वत्। अबूरैहान् (अल्बीरूनौ)ने लिखा, कि गुप्त- वश-पतनके साथ वलभी संवत् आरम्भ हुआ था। यह अब्द शकाब्दसे २४१ वर्ष पछिका है। अबूरैहान्के वर्णनानुसार गुप्तकाल और वलभी काल एक समयमें पड़ता है। उन्होंने गुप्तवंशके पतन बाद वलभौकालका प्रारम्भ भूलसे लिखा Vol. I. 183 अबू रैहान्ने काश्मीरी पञ्चाङ्गके प्रमाणसे लिखा है, कि विक्रमाब्दके ६६४ वर्ष बाद श्रीहर्षकाल आरम्भ हुआ था। मधुरा और कान्यकुबप्रदेशमें भी यही अब्द प्रचलित रहा। स्थाखौश्वरके वर्द्धनवंशीय सम्राट हर्षवर्द्धन ६६४ विक्रमाब्दमें (६०६-६०७ ईस्खोमें) सिंहासनपर बैठे थे। उनके अभिषेकसे हो इस अब्दके अङ्क पाये गये। नेवार-सवत्। नेपालमें नेवार-सवत् चलता है। राजा राघव- देवने सन् ८७० ईस्वीमें यह अब्द प्रवर्तित किया था। पण्डित भगवान्लाल इन्द्रजौने इस अब्दको खुदी हुई लिपि छपायी है। कार्तिक माससे यह संवत् भी व्यवहार किया जाता था। विजयी गोर्खाराज पृथ्वी- नारायण-शाहने सन् १७६८ ईस्त्रीमें इस संवत्को उठाकर नेपालमें शक संवत् चलाया। अब भी नेपाली मुद्रामें नेवार-संवत् लगता है। चालुक्य-विक्रम-स'वत् । चालुक्य-शिलालेखोंमें साधारणत: शक संवत् हो देखने में आता है। किन्तु सन् १०७६ ईवीमें चालुक्य- राज विक्रमादित्य-त्रिभुवनमल्लने एक नया संवत् चलाया। उसका नाम चालुक्य-विक्रमवर्ष है। उक्त नृपतिके शिलालेखसे ही प्रकट है, कि उन्होंने प्राचीन शक-संवत्को उठाकर अपने नामका विक्रम संवत् चलाया था। वह ८८८ शकसे १०४८ शकतक जीवित रहे। ८८८ शकमें उनका सवत् चला था। वह बड़े शक्तिशाली नृपति रहे। उनके राज्यके आस-पास और