पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/७३७

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किया। ०३० अब्द और राज्यों में भी यही अब्द प्रचलित हो गया था। २। बुकानन साहबने सन् १८१० ईखोमें लिखा, कदम्बराज तेलपदेवने भी इसौ संवत्को स्वीकार कि उस समय लक्ष्मणाब्दका ७०५-७०६ अङ्क चलता था। * इस अवस्थामें भी ११०४-११०५ ईखोसे सिह-स'वत्। लक्ष्मणाब्द प्रारम्भ हुआ। फिर उन्होंने मिथिलाका पञ्चाङ्ग सन् १११४ ईखीमें सिह-सवत् प्रचलित हुआ देखकर कहा है, कि ११०८ या ११०८ ईस्खौके बीच में था। यह शिवसिंह-संवत्के नामसे भी प्रसिद्ध ही इस अब्दका आरम्भ हुआ होगा। उनके मतसे पूर्णि- है। गुजरातसे जैनराजाओंके निकाले जानेपर यह मान्त श्रावण कृष्ण प्रतिपदसे इसका वर्ष लगता है। संवत् चला। ३। डाकर राजेन्द्रलाल मित्र और जेनरल कनिं- लायसेन-सवत्। हाम् साहबके मतानुसार ११०७-८ ईस्वीके मध्य मिथिलामें ऐसा प्रवाद है, कि गौड़ाधिप वल्लाल इस अब्दका प्रारम्भ और माघ कृष्ण प्रतिपदसे इसका सेन जिस समय युद्धके लिये मिथिलामें उपस्थित वर्षारम्भ है। हुए, उसी समय उन्होंने राजधानीमें लक्ष्मणसेनके ४। अध्यापक कोलहोनने सन् ११८४से १५५१ जन्मका समाचार पाया था। पुत्रजन्म और मिथिला ईखोके मध्य लिखे हुए इस अङ्ग द्वारा अङ्कित नाना जय दोनोको चिरस्मरणीय रखनेके लिये उन्होंने पुस्तकों और लेखों आदिको आलोचनासे स्थिर यहां अपने पुत्रके नामानुसार लक्ष्मण-संवत् वा किया, कि १०४०-४१ शकके अमान्त कार्तिक मास में ल. सं. प्रचलित कर दिया। * तबसे अबतक इस अब्दका आरम्भ हुआ था। आश्चर्यको बात है, मिथिला और तिरहुत अञ्चलमें ल० ० चल रहा है। कि अकबरनामामें अबुलफज़लने भी १०४१ शक आश्चर्यका विषय है, कि गौड़ाधिप द्वारा प्रवर्तित अर्थात् १११८ ईखौमें ही इस अब्दारम्भके विषय होनेपर भी गौड़-वङ्गमें किसी समय इस अब्दके पर अपना मत प्रकाश किया है। गौड़ाधिप प्रचलित रहनेका प्रमाण नहीं मिलता। बोधगयामें सेनवंशके इतिहासको आलोचनासे देखा जाता खुष्टीय १२वें शताब्दके अक्षरोंसे इस अब्दका अङ्कित है, कि १११८-१८ ईखोमें वल्लालसेनका राज्य एक शिलालेख मिला है- आरम्भ हुआ था। उसी वर्षमें उनका मिथिला-विजय "श्रीमतलायसेन-देवपादानामतीत-राजा सं०७४ वैशाख वदी १२, गुरी।" करना और वहां पुत्रके नामानुसार अब्द चलाना कोई उक्त पाठसे कितने ही ऐसा खयाल करते हैं, विचित्र बात नहीं है। मिन्हाजने अपनी तवकात्- कि लक्ष्मणसेनदेवका राजा बीत जानेपर यह अब्द इ-नासिरोमें लिखा है, जिस समय लछमनियाको प्रचलित हुआ था। ऐसी अवस्था में सन्देह होता, उमर ८० वर्ष रही, उसी समय (११८८-८ ईखोमें) कि गौड़ाधिप वलालसेनपुत्र लक्ष्मणसेनसे भिन्न दूसरे बख् तियारने नदोया-विजय किया था। मिन्हाजके किसी राजाके नामानुसार यह अब्द चला है। इस प्रमाणसे भी १११८-१८ ईखोमें ही लल्मणसेनका अब्दके आरम्भकालपर भी मतभेद है, यथा- जन्म पाया गया। अतएव सन् १११८-१८ ईस्वी हो १। कोलबूक साहब इस अब्दके बारेमें सबसे लक्ष्मणके जन्म और लक्ष्मणाब्दका आरम्भकाल होता पहले सर्वसाधारणको दृष्टि आकर्षण करते हैं। सन् है। अब बात यह है, कि यदि लक्षणसेनके जन्मसे १७९६ ईखोकी १७वों दिसम्बरको ६८२ लं. स. ही इस अब्दका प्रचार हुआ, तो बोधगयाके कई चल रहा था। उसके अनुसार इस अब्दका आरम्भ शिलालेखों में “लायसेनदेवपादानामतीते राज्य" अथवा "श्रीम- काल सन् ११०४ ईस्वी होता है। जमणसेनस्यातीतराज्ये" यह उक्ति क्यों? लघुभारता + Colebrook's Miscellaneous Essays, Vol. 1. p. 472, Buchanan's Eastern India, III, p. 41 and 189. Indian Antiquary, XIX, p. 7 ff.