पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/७४२

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1 अब्दुर रहमान् खान् ७३५ दी थी। इनके सुप्रबन्धसे स्पेनमें उमय्यदोंने ढाई याकू.ब खान्पर धावा मारा और ऐसा विजय पाया, शताब्दतक राज्य किया। इनका समय सन् ७५६ से कि उन्हें ईरान भाग हो जाना पड़ा। कठोर शासन- ७८८ ई०तक रहा था। के कारण गिलज़ायो जातिने बलवा किया, किन्तु २, यह सन् १६८१ ई०के समय दिल्लीमें उत्पन्न सन् १८८७ ई के अन्तमें गहरी हार खायी थी। हुए थे। इन्होंने पहले सम्राट मुअज्जमशाह और याकूब खान्के ईरानसे चढ़ दौड़ने और सन् १८८८ फिर सम्राट् बहादुर शाहका दरबार किया। इनकी ईमें इसहाब खान्के बलवा करनेसे कुछ फल न कविताका उदाहरणस्वरूप 'यमकशतक' नामक निकला। पुस्तक देख पड़ेगा। सन् १८८५ ई में अफगानस्थानको उत्तर-पश्चिम अब्दुर्रहमान् खान्–दोस्त मुहम्मदके नाती और सोमाके निर्धारण पर जब अफ़गानी और रूसो अफजल खानके बेटे। सन् १८६३ ई०को ८ वी सेनामें झगड़ा हुआ था, तब इन्होंने बड़ो चतुरतासे जूनको दोस्त मुहम्मदके मरने पर अफजल खान्ने शान्तिको रक्षा को। 'आर्डर अवष्टार अव इण्डिया' अपने छोटे भाई शेर अलीके अमीर बननेसे उत्तर में को उपाधि पा यह अत्यन्त प्रसन्न हुए थे। सन् १८८८ बलवा खड़ा किया था। उसमें अबदुर् रहमान्ने ई के अन्तसे इन्होंने छः महीने उत्तरमें रह बलवा बड़ी योग्यता और साहसका परिचय दिया। मिटाया। सन् १८८२ ई में ईन्होंने हजारा अफजल अलीके कैद हो जानेपर इन्होंने उत्तरमें जातिको भी दबा दिया। सन् १८८३ ई० में सर फिर उपद्रव उठाया था। सन् १८६६ ई०के मार्च हेनरी डरण्डके काबुल रूसो और अफ़गानो सोमाका मास यह विजयी हो काबल पहुंचे। इन्होंने शिकोहा निर्धारण करने जानेपर इनका बरताव बड़ी बुद्धिमानी बादमें शेर अलीको हरा अपने पिता अफजलको और पटुताका रहा, इन्होंने भारत और अफगान- कैदसे छोड़ा और अमौर बना दिया था। सन् स्थानको सीमा बांधने में कोई झगड़ा न लगाया था। १८६७ ई० में यह फिर शेर-अलोसे जीते और कन्धार सन् १८०१ ई०को १लो अक्तोबरको इनको मृत्यु को अधिकारमुक्त बनाया। किन्तु सन् १८६८ हुई। इन्होंने अपने सिंहासनके प्रतिद्वन्दीका मुंह ई०के अन्तमें शेर अलोने लौट इन्हें सन् १८६८ तोड़ दिया था। किसौमें इनको आज्ञा टालनेको ई.को री जनवरी को परास्त किया था, जिससे शक्ति न रहो। यह बलपूर्वक फौज भरती करते और यह इरानको भाग खड़े हुए। पीछे इन्हें रूसको भेद ले-लेकर काम चलाते थे। इन्होंने खुलो अदालत रक्षामें समरकन्द जाना पड़ा। उस समय इनका बैठे लोगोंका आवेदन-निवेदन सुना और अभियोगोंका वयस बीस वत्सरसे अधिक न था। विचार किया। यह एशियाको सबसे अधिक बली सन् १८७८ ई में शेर-अलौके मरने और जातिपर शासन कर और युरोपीय आविष्कारसे लाभ अंगरेजी फौजके अफगानस्थान पहुंचने पर रूसियोंने उठा सके थे । किन्तु इन्होंने अपने देशमें रेल-तारको न इन्हें फिर अफगानस्थान भाग्यको परीक्षा लेने वापस फैलने दिया। इन्हें भय था,-युरोपीय कहों हमारे भेजा था। सन् १८८० ई के मार्च मास अंगरेजोंको देशमें घुस न आयें। रूसी और भारतीय साम्राज्य के इनके उत्तर पहुंचनेका समाचार मिला और उसौ बीच पड़ इन्होंने जिस योग्यताका परिचय पहुंचाया, वर्षको २२वीं जुलाईको अंगरेजोंने इन्हें अफगान उससे अफगानस्थानके इतिहासमें इनका नाम अजर- स्थानका अमीर बना दिया। किन्तु शेर-अलीके अमर रहेगा। लड़के याकू.ब खान्ने हेरातसे चढ़ अबदुर्रहमानको अमीरको प्रति वत्सर बटिश गवर्नमेण्ट साढ़े अट्ठा- सेनाको हराया और कन्धारपर अपना अधिकार रह लाख रुपया वृत्ति स्वरूप देती थी। इन्हें युद्ध- जमाया था। अबदुर् रहमान्ने फिर सेना एकत्र कर सामग्री भी मंगानका अधिकार रहा। इनके मरने-