पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/७४३

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अब्दुर रहीम-अब टुल्लह खान् पर बड़े बेटे हबीबुल्लह खान् सिंहासनपर बैठे। हबो अकबरपुरके मैदानमें अतिशय सुन्दर और प्रशंसनीय बुल्लह खान् और उनके भाई नसीरुल्लह खान् दोनो प्रासाद बनवाया। मांडूमें सिवा इनकी कब्रके समरकन्दमें उत्पन्न हुए थे। अब्दुर्रहमानके तीसरे किसी शिलालेखसे प्रमाणित होता, कि बाजबहादुर- लड़के ऊमर जान्ने किसी अफगान माताके पेटसे का प्रासाद नसौर-उद-दीनका ही बनवाया रहा। सन् १८८८ ई में जन्म लिया था। अबदुलज़लील-सम्राट् औरङ्गजेबके कोई मुसाहब । अबुदुर् रहीम खानखाना-नवाब-बैरामखान्के बेटा। यह हरदोई ज़िलेवाले बेलग्रामके निवासी रहे। इनका जन्म सन् १५५६ ई में हुआ था। यह अरबी, इनका जन्म सन् १६८२ ई० में हुआ था। प्रथमतः. फारसी, तुर्की आदि भाषा जानते रहे। अकबर इन्हें यह अरबी और फारसी भाषाको कविता लिखते रहे, बहुत चाहते थे। इनके पिता सुप्रसिद्ध बैरामको पोछे हरिवंश मिश्रसे हिन्दी भाषाको कविता भी वीरतासे ही हुमायू ने भारत जीता था। शिव सौखी। इन्होंने हिन्दी भाषामें अच्छे-अच्छे पद सिंहने लिखा है, 'खानखाना खयं कवियोंका आदर- बनाये हैं। सत्कार ही न करते, वर संस्कृतमें अच्छे-अच्छे | अब्दुल्लह-यमनके हजाजसे भारत भेजे गये कोई श्लोक और हिन्दी में बढ़िया बढ़िया कवित्त, दोहे भौ मुसलमान-साधु। यह सन् १०६७ ई०के समय बनाते थे। नीतिके दोहे इन्होंने बहुत ही अच्छे कम्बे में आ उतरे थे, जहाँ कुछ वर्ष लोगोंको लिखे हैं। मिथिलाके लक्ष्मीनारायण कवि इनकी देखते-भालते रहे। इनके विषयमें दो आख्यायिका सभामें उपस्थित रहते थे। प्रसिद्ध हैं। पहले तो इन्होंने किसी खाली कूपको अब दुल-कादिर-गुजरातवाले नवाब गियास्-उद् दीन जलसे परिपूर्ण कर एक किसानके हृदयमें घर किया के पुत्र। सन् १४६८ में जब अपने पिता महमूद था। दूसरे, कम्बे के किसी मन्दिरमें बेसहारे लटकते के मरनेपर गियास-उद-दीन् गद्दीपर बैठे, तब उन्होंने हुआ लोहेका हाथो भूमिपर गिरा पुरोहितोंको अपने बेटे अब टुल्कादिरको प्रधान मन्त्री और उत्त आश्चर्यमें डाला। उसके बाद यह गुजरातको तत्- राधिकारी बना नसीर-उद्-दोन्को उपाधि दी थी। कालीन राजधानी पाटनको रवाना हुए थे। पाटनके कहते हैं, कि इन्होंने छोटे भाई शुजाअतके कहनेसे महाराज सिद्धराज जयसिंहने इन्हें पकड़ बुलानेको अपने पिताको विष पिलाया। सन् १५०० ई०के कुछ सशस्त्र सिपाही भेजे, किन्तु इन्हें आगसे समय यह मांडूमें सिंहासनारूढ़ हुए थे। इन्होंने घिरा देख वह पौछे हट गये। जब महाराज स्वयं बलवा दबानेके लिये पौछे यात्रा की। मांडू वापस इनके पास पहुंचे, तब अग्निके स्थान प्रदान करनेसे आनेपर यह व्यभिचार और अपने भाईके आत्मीयोंको पास जा सके थे। महाराजने इनसे कहा,-आप हत्या करते रहे। इन्होंने अपनी माता खुरशीद | अपने धर्मको उत्कृष्टताका कोई दूसरा प्रमाण बानको पिताका गुप्त धन बतानेके लिये अत्यन्त कष्ट भी दीजिये। उनको प्रार्थना स्वीकृत हुई। पवित्र दिया था। किसौ दिन नशेके झोंकसे यह हौज़में मूर्तियों में कोई बोल उठी, अरबी धर्म सर्वोत्तम है। जा पड़े। चार दासियोंने इन्हें उस हौज़से बाहर इस बातसे हिन्दुवोंने आश्चर्यमें पड़ नया धर्म ग्रहण निकाला था। होश आते ही इनके शिरःपोड़ा होने किया था। सन् ११३०से १३८० ई. तक गुजरातमें लगी और अपनी दासियोंके कामका हाल सुन इन्होंने इसमायिली धर्म खूब फैला। किन्तु सन् १३८०से उन्हें अपने ही हाथ मार डाला। कुछ दिन बाद १४१३ ई. तक मुजफ्फर शाहके समय सुबी धर्म सन् १५१२ ई०के समय यह फिर हौज़में गिरे और बढ़ते और शिया धर्म गिरते गया था। मरते समय तक उसौमें पड़े रहे। इन्हें प्रासादसे | अबदुल्लह ख़ान् उजबक-सम्राट अकबरको फौजके बड़ा प्रेम था। इन्होंने मांडूसे दश कोस दक्षिण एक सेनापति। सन् १५६२. ई० में सेनापति पौर