पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/७४५

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०३८ अब्बास अलौ मिर्जा-अब्बास मिर्जा मुहम्मदके अपना धर्म स्थापित करने पर अब्बासने रही। सन् १८४८ ई के समय यह लखनऊमें बसते प्राणपणसे उसके प्रचार की चेष्टा की थी। और इनको अवस्था कोई अस्मी वर्षकी थी। अब्बासी ख़लीफा-वंश भी ईन्हों महापुरुष द्वारा अब्बास मिर्जा-ईरानी शाह फतेह अलोके लड़के । सन् स्थापित हुआ। इस वंशके खलीफा लोगोंने सन् १७८३ ई० में इनका जन्म हुआ था। इनमें बुद्धि, ७४८ से १२५८ ई०तक बगदादमें राज्य किया था। साहस और रणकौशल असाधारण रहा। छोटी हो उसके बाद सन् १५५७ ई०तक वह लोग मामेलिउ उमरमें यह अजर्बिजान प्रदेशके शासनकर्ता हो गये कोंके आश्रयमें रह धर्मकार्यको अध्यक्षता करते थे। वहां अंगरेज सेनापतियों के साथ इनको मित्रता रहे। अन्तमें रूमके सुलतान् इस कार्यके अधि- हुई। अंगरेज लोग हमेशा इन्हें युद्धकौशल सिखाया नायक हुए थे। करते थे। इसीसे इन्होंने अपने सैन्याध्यक्षको शीघ्र ही अब्बासवंशक कोई कोई आदमी इस समय भी युद्धविद्यामें निपुण बना दिया। सन् १८११ ई० में रूम और भारतवर्षमें वास करते हैं। अब्बास शके ईरान और रूससे लड़ाई छिड़ी। उस समय फ्रान्सोसी कितने ही मशहर आदमो ईरानमें रहते, उन ईरानको मददपर थे। अब्बास ईरानौ सेनाके प्रधान लोगोंका जन्म सूफीकुलमें हुआ था। खलीफा अधिनायक होकर युद्धक्षेत्रमें उपस्थित हुए, परन्तु अली उनके आदिपुरुष रहे। उन लोगोंने सन् १५०० जयलाभ न कर सके। सन् १८१३ ई०को गुलिस्तानमें ई० में राज्यलाभ किया। उसके बाद सन् १७३६ ई०में सन्धि हो गई थी। उसी सन्धिसे रूसियोंने ककेसस उस वंशका लोप हो गया। इतिहासमै प्रथम प्रदेश पर कला कर लिया और कास्पियन समुद्र के अब्बासका नाम ही अधिक प्रसिद्ध है। इन्होंने रूसको किनारे तक उनका अधिकार बढ़ पाया । सन् १८२६ बार बार परास्त किया था। उसके बाद सन् १६२७ ई० में रूस और ईरानसे दूसरा युद्ध छिड़ गया था । - ई०में अंगरेजोंकी सहायतासे होमज बन्दरमें पोर्तु- फिर अपरिसीम साहस और विक्रमके साथ अब्बास गोजीका उपनिवेश नष्ट कर दिया। घुद्ध करने लगे, परन्तु इस बार भी परास्त हुए। अब्बास-अली-मिर्जा-रामपुरवाले नबाब फेज उल्लह बारको सन्धिसे अर्मेनियामें जो ईरानका अधिकार खांके पन्तो, गुलाम मुहम्मद खांके नाती और नवाब था, उसे रूसको दे देना पड़ा और पहले इङ्गलैण्ड के सादत अली खाँके बेटे। इनका कविता सम्बन्धीय साथ ईरानका जो सम्बन्ध था, वह जाते रहा; रूस उपनाम 'बेताब' रहा। हो ईरानका हर्ता-कर्ता विधाता हो गया। अब्बास बिन-अली शिरवानी-एक प्रसिद्ध ऐतिहासिक। क्रमशः रूसकी सहायतासे अब्बास ईरानके राजा सन् १५३८ ई०में हुमायूंको मार भगाने और हुए। उस समय भी इनके पिता फ़तेह अली जीवित दिल्लीके सिंहासनपर बैठनेवाले अफ.गानौ शेरशाहका थे, परन्तु दुबैल और असहाय रहे, इसलिये कुछ वर्णन इनके ग्रन्थमें मिलता है। इन्होंने एक पुस्तक कर न सके। सन १८२८ ईमें ईरानियोंने तेहरानमें लिख सम्राट अकबरको समर्पण किया और उसका रूसी दूतको मार डाला था, इससे अब्बास बहुत डरे। नाम 'तुहफा-इ-अकबरशाही रखा था। लार्ड कार्ण पौछे कहीं कोई विपद न आ पड़े, यही सोचकर यह वालिसके समय मजहर अली खाने इस इतिहासका रूस-सम्राट्से मिलनेके लिये सेण्टपितर्सबर्ग गये थे। प्रथम भाग उर्दू में अनुवाद किया ; अनुवादको इस सौजन्यसे परम प्रसन्न हो रूस-सम्राट्ने बहुमूल्य 'तारीख-इ-शेरशाहों' कहते हैं। उपहार देकर इन्हें वापस किया। सन् १८३२ २ उर्दू कविताको कोई मसनको बनानेवाले। ई० में अब्बासको मृत्यु हुई थी। उसके बाद सन् इस मसनवीमें ईसा मसीहका इतिहास लिखा गया १७३४ ई० में फतेह अलौके परलोक जानेपर अब्बासके है। इनकी उपाधि 'नवाब इतियार-उद-दौलह' लड़के महम्मद मिर्जा ईरानके राजा हुए। इस