पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/७४६

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अब्बासौ-अविन्दु ७३६ अब्बासौ (अ० स्त्री० ) कार्पास विशेष, किसी किस्म का | अब भिय (सं० त्रि.) मेघभव, आकाशीय, बादलसे कपास। यह मिश्र देशमें उत्पन्न होती है। पैदा, आसमानी। अब्भक्ष (सं० पु०) आपो भक्षयति ; अप्-भक्ष-ण उप. अब धोत्थ (स• क्लो०) १ वज, विद्यत्, बिजलो। स०।१ सर्पविशेष, पनिहा सांप। (त्रि.)२ केवल (त्रि.)२ अनजात, बादलसे पैदा । जलभक्षण करनेवाला, जो सिर्फ पाना हौ पौता हो। अब्र (फा० पु.) मेघ, बादल । अब्भक्षण (सं० क्ली० ) पानी पीकर रहनेकी दशा, अब्रह्मचर्य (सं० क्लो० ) न ब्रह्मचर्यम्, विरोध नञ्-तत् । जिस हालतमें सिर्फ पानी ही पोकर रहें। १ मैथुनादि, ब्रह्मचर्यका विरोधी कार्य। (त्रि.) अबध (सं० लो०) आपो विभर्ति, भृ-क अथवा नज-बहुव्री० । २ ब्रह्मचर्यरहित । अन गतौ अच्। १ मेघ, बादल। २ गगन, आकाश, अब्रह्मचर्यक (सं. क्लो. ) ब्रह्मचयराहित्य, लोलुपता, आसमान्। ३ मुस्ता, मोथा। ४ त्रिदिव। ५ स्वर्ण, लम्पटता, नफ सपरस्ती, नापाकदामानी, छिनारा। सोना। ६ धातुविशेष, अवरक । यास्कने अबझके अब्रह्मण्य (सं• लो०) ब्रह्मणि ब्राह्मणोचितकर्मणि ३० पर्याय बताये हैं,- अहिंसादौ साधु यत् विरोधे नत्र-तत्। ब्राह्मण-विरुद्ध १ अद्रि, २ ग्रावा, ३ गोत्र, ४ बल, ५ अश्न, ६ पुरु- कार्य, जो काम ब्राह्मणके करने काबिल न हो। भोजा, ७ बलिशान, ८ अश्मा, ८ पर्वत, १० गिरि, अब्रह्मता (सं० स्त्री०) योग अथवा विशुद्ध ईश्वर- ११ व्रज, १२ चरु, १३ वराह, १४ शम्बर, १५ रौहिण, ज्ञानका अभाव, जिस हालतमें इबादत न बने या पर १६ रैवत, १७ फलिग, १८ उपर, १८ उपल, मखर समझ न पड़े। २० चमस, २१ अहि, २२ अच, २३ बलाहक, अब्रह्मन् (वै० त्रि०) १ साधन-भजनविहीन, ज्ञान- २४ मेघ, २५ दृति, २६ अोदन, २७ वषन्धि, २८ वृत्र, शून्य, जो पूजापाठ न करता हो, जिसे समझ न रहे। २८ असुर और ३० कोश । अध देखो। २ ब्राह्मण भित्र, जो ब्राह्मण न हो। अब्भ्रंकष (स• पु०) १ पर्वत, पहाड़। २ वायु, अब्रह्मविद् (सं० त्रि.) ब्रह्मको न पहचाननेवाला, हवा। (त्रि.)३ गगनस्पर्शी, आसमान् छुनेवाला। जिसे ब्रह्मज्ञान न रहे। अझलिह (सं० पु०) अब्लेढ़ि स्पृशति, अब्ध- अब्राह्मण (सं० पु.) न ब्राह्मणः, अप्राशस्ता नत्र- लिह-खस् । १ उच्च शिखर, अंची चोटौ। २ वायु, तत् । अपकृष्ट ब्राह्मण, जो ब्राह्मण विशुद्ध न हो। हवा। (त्रि. ) ३ गगनस्पर्शी, आसमान छूमेवाला। शास्त्रमें छः प्रकारका अब्राह्मण बताया गया है,- अब्धक (सं० पु०) अश्वधातु, अबरक । १ राजाके अबसे पालित, २ बाणिज्य करनेवाला, ३ अब्भ्रपिशाच (सं० पु०) राहु । चन्द्रसूर्यको ग्रहण के समय बहुयाजक, ४ ग्रामयाजक, ५ कार्यविशेष में ग्राम्य वा ग्रास करने कारण राहुको अद्भपिशाच कहते हैं। नागरिक सकल लोगोंसे वरण किया जानेवाला और अब्भपुष्प (सं० लो• ) १ जल, पानी । २ वेतसवृक्ष, ६ सन्ध्यावन्दनादि न करनेवाला। बेंतका पेड़। अब्राह्मण्य (सं.ली.) पवित्रताका नाश, ब्राह्मणके अब्भ्रमातङ्ग (सं० पु.) ऐरावत, इन्द्रका हाथी। कामको खराबी। अब भयु (सं० स्त्रो०) १ ऐरावत हस्तीको स्त्री, पूर्व- अब्रुवत् (सं० वि०) न बोलनेवाला, जो बात न कह दिग्रहस्तीकी स्त्री। रहा हो। अब भयुवल्लभ (सं० पु०) ऐरावत हस्ती। अब्रूक्कत (सं० क्लो०) न ब्रूवे कृतम् । १ वाक्य-प्रति- अब भरोहस् (सं० पु०) वैदूर्यमणि । रोधक, गुराहट । २ बालीका धुंधलापन । 'अब भि (सं० स्त्री०) काठको कुदाल । इससे नौका | अब लिङ्ग (सं० स्त्री०) जलार्थं पठित सूक्तविशेष । दिका मल परिष्कार किया जाता है। अब विन्दु (सं• पु०) अश्रु, आंसू ।