पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/७४७

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९४० अभक्त-अभक्ष्य

न लगना। अभक्त (सं० वि०) भज सेवायां विभागे च ; कर्तरि दूसरे प्रधान कारण भी हैं। उसके बाद मनुके पुत्र कर्मणि वा क्त, नज-तत्। १ भक्ति न रखनेवाला, जो भृगु अभक्षा चीजोंका नाम लेने लगे। सेवक न हो। २ विभागरहित, बांटा न गया। अब कुछ प्राचीन ऐतिहासिक तत्वोंका निश्चय अभक्ताच्छन्द (सं० पु०) अरोचकभेद, अनमें अरुचि, किया जाता है। "चतुष्पात् सकलो धर्मः सत्य'चैव कृते युगे।" खाने में मजे.का न आना। मनुसंहितामें लिखा है, कि सत्ययुगमें धर्म और सत्यके अभक्तरुच् (सं० स्त्री०) बुभुक्षाका अभाव, भूखका चार पैर थे। किन्तु सत्ययुग हौ में ऋषियोंने भृगुसे अकालमृत्युका कारण भी पूछा था। उसके उत्तर में अभक्ति (सं० स्त्री०) भज्-क्तिन, अभावे न-तत् । भृगुने आचारभ्रष्टता और खाद्य दोषादिको बात १ भक्तिका अभाव, अविश्वास, बेवफाई, नाएतबारी। कही। इससे इस बातका प्रमाण मिलता है, कि अभक्तिमत् (संत्रि०) भक्तिविहीन, अविश्वासी सत्ययुगमें भी लोग यथेच्छाचारी रहे। भोजनादिका बेवफा, जिसे एतबार न आये। अत्याचार न करनेसे लोग उस समय दोघजीवी होते अभक्ष (हिं.) अभय देखो। थे; फिर यदि इस समय भी भोजनादिका अत्याचार अभक्षण (स. क्लो०) भक्ष-लुप्रट, नञ्-तत् । भक्षण न किया जाय, तो लोम दौर्घजीवी हो सकते हैं। का अभाव, उपवास, न खानेको हालत, फ.ाका। भृगुने कहा,-गाजर, लहसन, पियाज, छत्रक अभक्ष्य (स• त्रि०) भक्षितुमयोग्य भक्षि-ण्यत् नञ् (कठफला) और विष्ठा आदिमें जो सब शाकादि तत्। शास्त्रनिषिद्ध भोजनद्रव्य, अखाद्य । पियाज, पैदा होते हैं, उनका खाना मना है। (शास्त्रकारोंने लहसन आदि कोई-कोई चीज, स्वभावतः अखाद्य ब्राह्मणादिके लिये इन सब चीजोंको मना किया है, मानी गई है। कोई-कोई चीज. समय विशेषमें खानेसे परन्तु शूद्र आदिके लिये नहीं।) दोष नहीं होता, पौर कोई-कोई चीज. समय विशेषमें वृक्षका निकलकर सूख जानेवाला रक्तवर्ण निर्यास, खानेसे दोष लगता है। कोई-कोई द्रव्य स्थान पेड़को विना छेदे न निकलनेवाला निर्यास, चालता, विशेषसे अभक्ष्य हो जाता, कोई-कोई वस्तु किसी और बच्चा जनने बाद दशदिन न बीत जानेपर दूसरे विशेष द्रव्यके साथ मिला दी जानेपर खाने उबालनेके वक्त कड़ा पड़नेवाला गायका दूध खाना लायक नहीं रहती, कोई-कोई चीज़ पात्र विशेषमें न चाहिये। रख देनेसे अखाद्य हो जाती, किसी-किसी चीजको जिन सब पशुओंका दूध पीनेको व्यवस्था है, बच्चा असत् व्यक्तिसे लेकर खाना मना है और किसी देनेके बाद दश दिन न बीत जानेसे उनका दूध पीना चीज.को व्यक्तिविशेषसे छू जानेपर खाना न चाहिये। मना है। ऊंटनीका दूध, घोड़ी आदि खुर जुड़े अभक्षय वस्तुका खाना आयुक्षयका प्रधान कारण हुए पशुओंका दूध ; भेडीका दूध और ऋतुमती है। मनुसंहितामें पांचवें अध्यायके प्रथम ऐसी गायका दूध खाना न चाहिये। स्त्रियों और हरिण भूमिका लिखी है,-ऋषियोंने भृगुसे प्रश्न किया था, आदि वनपशुओंका दूध पौना अनुचित होता, परन्तु -'वेदन सभी ब्राह्मण अपने-अपने धर्मका अनुष्ठान भैंसका दूध पौना मना नहीं है। करते हैं, परन्तु वह सब वेदविहित चार सौ वर्ष पर जो चीज़ स्वभावसे मीठी हैं, परन्तु खराब हो मायु भोग क्यों नहीं करने पाते? क्यों उनकी जानेसे निःस्वाद या खट्टी हो गयी हों, उन्हें खाना अकालमृत्यु होती है ?' इस बातको सुनकर मृगुने न चाहिये। परन्तु दही और मक्खन अखाद्य नहीं कहा, 'ब्राह्मण अब अच्छी तरह वेद नहीं पढ़ते। हैं। जो सब अच्छे-अच्छे फल, फल, और मूल जलके वह सब प्राचारभ्रष्ट हो गये हैं। दिन-दिन अत्यन्त साथ मिल जाते हैं, उन्हें खाने में भी कोई दोष नहीं। आलसी होते जाते हैं ; विशेषतः उनमें अकालमृत्युके मांस खानेवाला पक्षी, ग्राम्य पक्षा, ग्राम्य कुक्कुट,