पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/७४८

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अभक्ष्य ७४१ . ग्राम्य शूकर, एक खुरवाला पशु, टिटहरी, गौरैया, हंस, चकवा, डाहुक, शालिक, तोता, चोंचसे कौड़े वगैरह मारकर खानेवाली चिड़िया, पञ्ज से मट्टी हटा-हटाकर खाना ढूंढनेवाली चिड़िया, लिप्त- पद पक्षी, पानौमें गोता मारकर मछली पकड़नेवाला पक्षी, बगला, कौवा और खञ्जन आदि चिड़ियोंका मांस खाना मना है। सूखा मांस और कसाई को दुकानका मांस कभी न खाना चाहिये। बोबारी, रेह, राजीव, कटवा और छिलकेदार मछली दैव, पैना और रोग आदिमें खाई जाती है। (सुतरां सहज ही न खाना चाहिये।) पुस्तकान्तरमें केंकड़ा, घोंघा, शङ्ख, कौड़ी आदि खाना मना है। अकेले चलने फिरनेवाले सपै आदि जीव, अपरिचित पशु, सेह, गाह, गैंडा, कछुआ और खरगोशके सिवा दूसरे पांच नाख नवाले जन्तुओंका भी मांस, और एक श्रेणी दांतवाले पशुओंका मांस खाना न चाहिये। केवल यज्ञमें ऊँटका मांस खानेकी व्यवस्था है। मास. तिथि और दिन विशेषमें भी शास्त्रकारों ने अनेक प्रकारको चौज़ोंका खाना मना कर दिया है। यथा-कार्तिक मासमें षष्ठी, अष्टमी, चतुर्दशी, अमावस्या, पूर्णिमा और रविवारको मांस मछली न खाना चाहिये। हरिशयनमें अर्थात् आषाढ़ मासको शुल्लाहादशौसे कार्तिक मासको शलाहादशी तक सफेद सेम, उड़द, कलम्बी प्रभृति न खाये। इसके सिवा नवमौके दिन लौकी, त्रयोदशौके दिन बैंगन-इसौ तरह तिथि विशेषमें अनेक चीजोंका खाना मना है। इसका ठीक तात्पर्य क्या है, सो कुछ समझमें नहीं आता। फिर मनुसंहितामें अनेक प्रकारके अभक्षा अन्नको बात भी लिखी है। उन्मत्त, क्रोधी और रोगी मनुष्य- का अन्न खाना न चाहिये। अबमें यदि बाल और कीड़ा पड़ या जानबूझकर वह पैरसे कुचल दिया जाय, तो उसे छोड़ देना होगा। जो लोग भ्रूणहत्या करते हैं, उनका दिया हुआ अन्न खाने लायक नहीं रहता। कौवा आदि कोई पक्षी जिस अनमें चोंच Vol. I. 186 डाल दे, अथवा रजस्वला स्त्री या कुत्ता छ ले, तो उस अबको खाना न चाहिये। मठका अन्न, वेश्याका अन्न और गाय बलका सूधा अन्न खान को निषेध है। चौर वृत्तिउपजीवी, सूद- खोर, कपण, केदी, महापातकी, नपुसक, व्यभिचारी, छली, वैद्य, व्याध, पुरोहित, शत्रु, अवौरा स्त्री और सूतिका-रहको स्त्रोका अन्न खाना न चाहिये। दूसरेका जूठा और बासी भात खानेके लिये मनुने निषेध किया है। खानेकी चीज़पर अगर कोई छोंक दे, तो उसे भी न खाना चाहिये। पत्नीको व्यभिचारिणी जानकर भी सहनेवाले, स्त्रीको सलाहसे काम करनेवाले, लुहार, मल्लाह, नट, गायन, सुनार, लोहा बेचने वाले, मेहतर, धोबी, रङ्गरज और शिकार खेलने के लिये कुत्ता पालन वालेका अन्न खाना शास्त्रके अनुसार मना है। दूधके साथ नमक अथवा मांस मछली मिलाकर न खाना चाहिये। सुश्रुतमें लिखा है, कि मछलीके साथ अथवा मछली खाने बाद दूध पीनेसे कुष्ठरोग होता है। कांसेके बरतनमें डालकर नारियलका पानी न पौये । तांबेके बरतनमें भी मोठा रस पीना मना है। शास्त्रकारोंने जिन चीज़ोंका खाना निषेध कर दिया है, उनमें अनेक हौ हानिकारक प्रतीत होती हैं। परन्तु दूसरी कितनी ही चीजें क्यों मना की गई हैं, उसका गूढ़ कारण समझना कठिन है। हमारे शास्त्र में जिन पशुओंका खाना मना बाइबल और कुरानमें भी प्रायः वही पशु निषिद बताये गये हैं। बाइबल (लिभिटिकस् ११) में लिखा, कि जिन ओंके खुर विखण्डित हैं अथवा जुड़े हुए और जो जुगाली करते हैं, उनका मांस खाया जा सकता है। ऊंट जुगाली करता, परन्तु उसके खुर विखण्डित नहीं, इसलिये उसका मांस न खाना चाहिये। इसी कारण बाइबलमें खरगोशका मांस खाना भी मना किया गया है। सूअरके खुर जुड़े हुए और विखण्डित भी हैं, किन्तु वह जुगाली नहीं करता, इसलिये उसका मांस खानेके अयोग्य है। जलजन्तुओंमें जिसके पर और