पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/७५१

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७४४ अभयन्दद-अभया चूर्ण और मधु मिलाते हैं। हिङ्गुल, त्रिकटु ( सोंठ, महाराजने पालनपुरमें डेरा डाला और मुबारिज उल्- मिर्च और पोपल), विष, जौरक, टङ्गणरस, गन्धक मुल्कको युद्धके लिये तैयार देखा, तब सरदार मुहम्मद एवं अधको बराबर-बराबर और सबके समान अहि गोरौको लिख भेजा,-आप अहमदाबाद अधिकार फेन डाल निम्बु करसमें घोंटनेसे यह रस बनेगा। कीजिये और मुबारिज-उल-मुल्कको निकाल दीजिये, हम आपको अपना प्रधान मन्त्री बनाते हैं। सरदार अभयन्दद, अभयद देखो। अभयपद (स० क्लो०) रक्षा रखने की लिखी हुयी मुहम्मदमें यह आज्ञा पालन करनेको सामर्थ्य न थी, चिट्ठी, जो कागज हिफाजत रखने को लिखा वह महाराजके आगमन को राह देखने लगे। जाता हो। महाराजके सिद्धपुर पहुंचनेपर सफदरखां बाबी अभयपुर-विहार प्रान्तका कोई प्राचीन स्थान। इसी और जवान् मद खां बाबी राधनपुरसे जाकर साथ स्थानके नामपर मजरोत खालावोंकी एक शाखा हो लिये थे। उसके बाद महाराजने अदालजपर धावा प्रसिद्ध है। मारा, जो राजधानीसे चार कोस दूर रहा। मुबा- अभयप्रदान, अभयदान देखी। रिज-उल-मुल्कका डेरा अदालज और राजधानीके बीच अभयमुद्रा (सं० स्त्री०) अभयनाम्नी मुद्रा, तन्द्रोक्त हो पड़ा था। महाराज के वहां पहुंचते ही युद्ध हुआ मुद्राविशेष। और महाराजको पीछे हटना पड़ा। महाराजने अभयम्प्रद, अभयद देखी। अपना मोरचा बदल फिर भीषण रूपसे युद्ध किया, अभयराम-वृन्दावनके एक प्रसिद्ध कवि। सन् १५४५ दोनो दल सेनापतिके संहारको चेष्टा लगाये थे। ई० में इनका जन्म हुआ था। किन्तु मुबारिज-उल-मुल्क और महाराजके गुप्तवेशमें अभयवचन (स'. ली.) अभयवाच देखो। लड़ने कारण कोई कृतकार्य हो न सका। पहले अभयवाच् (सं० स्त्री.) अभयार्था वाक् । भय न महाराजने शत्रुको मार भगाया था, किन्तु नदीपर रहनेका आश्वासवाक्य, जिस बातमें खौफ छुड़ानेका मुबारिजके दिल तोड़कर लड़नेसे राठोरोंको पीछे इक़रार रहे। हटना पड़ा। राठोरोंने इकट्ठे होकर फिर भीषण अभयसनि (वै त्रि०) शरण देते हुआ, जो हिफाजत रूपसे आक्रमण किया, अन्तमें शत्र का बल अधिक कर रहा हो। रहनेसे सरखेज लौट आये। महाराजने मुबारिजका अभयसिह-जोधपुरनरेश अजिसिंहके पुत्र। सन् यह हाल देख मोमिन खां और अमरसिंहको १७२४-१७५० में करणकविने 'सूर्यप्रकाश' नामक सन्धिकी बात करने भेजा था। अन्तमें एक लाख ग्रन्थ इनके कहनेसे लिखा था। सूर्यप्रकाशमें ७५०० रुपया लेकर मुबारिज़ अहमदाबाद छोड़नेपर राजी श्लोक हैं और महाराज यशोवन्त सिंहके समयसे हुए और उदयपुरको राह आगर चले गये। महा- (सन् १६३८-१६८१ ई०) महाराज अभयसिंहके राजने बाबियों के साथ गुजरात-अधिनायकको पिलाजी समयतक (सन् १७३१ ई.) राठौर वंशका इतिहास गायकवाड़, हमीद खां और कांताजीसे माहोपर युद्ध लिखा है। सन् १७३० ई में मुहम्मद शाहने इन्हें करने में साहाय्य पहुंचाया था। महाराजके पुत्र गुजरातका अधिनायक बनाया था। भले पादमियोंने रामसिंह और उनके चचा विजयसिंहमें युद्ध होनेसे चाहा, कि भूतपूर्व अधिनायक मुबारिज़ उलमुल्क महाराष्ट्र मारवाड़पर टूटे। शान्तिपूर्वक अपना पद परित्याग करते ; किन्तु | अभया (स. स्त्री. ) नास्ति भयं यस्याः, ५-बहुव्रो । उन्होंने लड़नेका सामान बांध लिया। महाराज १ हरीतकीभेद, खास किस्मकी हर। यह चम्पादेशमें अपने भाई बख्तसिंह और २०००० आदमौके साथ बाहुल्यसे उपजती और पांच मुख रखती है। इसे गुजरातका शासन हाथमें लेनेको आगे बढ़े थे। जब लोग नेत्ररोगमें प्रशस्त समझते हैं। २ श्वेतनिर्गुण्डी। 3B