पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/७५२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

अभयाद्य -अभर्तृका ७४५ ३ मञ्जिष्ठा, मजीठ। ४ जयन्तया। ५ जया, भांग । उसमें दो सेर क्षारको ६४ सेर जल मिलाकर पकाना ६ मृणाला। चाहिये। अन्तमें १६ सेर जल रहनेसे उसे उतारकर अभयाद्य (सं० पु०) अभया हरीतको आद्या यस्य । कपड़ेसे छान ले। फिर उस छाने हुए जलको वैद्यशास्त्रोक्ता मोदकविशेष। इसके बनानेकी रीति साफ हांडीमें रख दो सेर सेंधा-नमक, एक सेर नीचे लिखते हैं, हरीतकी, पिपरामूल, काली मिर्च, हरका चर्ण और सोलह मेर गोमूत्र मिलाकर सोंठ, दारचौनी, तेजपात, पोपल, नागरमोथा, विड़ङ्ग, पकाये। जब जल गाढ़ा हो जाय, तब उतारकर उसमें आंवला दो-दो, दन्तौमूल छः, शर्करा बारह और कालाजीरा, सोंठ, पीपल, मिर्च, हींग, अजवाइन, सफेद हिरनपद्दी सोलह ताले ले खब बारीक पीस केज और आंबाहल्दोका चूर्ण चार-चार ताले मिला कर एकमें मिला लीजिये, उसके बाद मधु डाल ३२ दे। यह पिलहौ रोगका बहुत अच्छी दवा है। मात्रा मोदक बनायिये। प्रातःकाल उष्ण जलके साथ २१३ में एक तालेसे दो तोलेतक प्रातःकाल ठण्टे जलके मोदक खानसे २३ बार विरेचन ( जुलाब) होगा। साथ खाना चाहिये । पेटमें दर्द रहनेसे इस औषधको शीतल जलके साथ एक मादक खानेसे विरेचन नहीं खाना मना है। भी हो सकता। यह कृमि और अग्निमान्दय रोगका यह दवा बनाने में काले तिलका पौधा ही जलाना उत्तम औषध है। अच्छा है। उसके अभावमें सफेद तिलका पौधा; काली हिरनपद्दी कभी व्यवहारमें न लाये। यह वह भी न मिले, तो सरसोंका सूखा पौधा व्यवहार अतिशय विरेचक होती और विषक्रिया करती है। करना चाहिये। आवश्यक पड़नेसे उक्त मादक ज्यादा भी खा सकेंगे। अभयावटी (सं. स्त्री०) अभयावटी नानी गुल्माधि- किन्तु प्रति मात्रा हिरनपद्दीका परिमाण डेढ़ तालेसे कारको वटो, जो गोली फोड़े फुन्सीपर दी जाती हो। अधिक न रहना चाहिये। कानकजफल अर्थात् जैपाल और शिवा हरीतकोसे अभयाद्यमादक, अभयाद्य देखो। यह गीली बनती है। अभयाद्यावलेह (सं० पु०) अतिसारका अवलेह, जो अभयाष्टक (सं.ली.) अष्टहरीतकी भक्षण, आठ हरका अवलेह दस्तकी बीमारीपर दिया जाता हो। हरका खाना। यथा,- अभयारिष्ट (सं० पु.) अर्थोऽधिकारका रस, जी "चे पूर्वमद्यादशनादितो हे हे चापिभुक्त्वा तु तथा स्वपत्सु । रस बवासौरपर खाया जाता हो। इसे यों बनाते हैं, अस्य प्रयोगादभयाष्टकस्य विसप्तरावे व पुनथु वास्थात् ॥” (प्रयोगामव) हरीतको १२॥ शराव, द्राक्षा ६। शराव, मधूकपुष्प दो भोजनसे पहले, दो भोजनमें, दो खाकर और १. पल, विडङ्ग १२ पल, वारि २५६ शराव, शेष दो हर सोते समय सेवन करनेसे इक्कीस दिनमें मनुष्य ६४ शराव, गुड़ १२॥ शराव एकमें मिला गोक्षुरादि फिर युवा हो जाता है। का चूर्ण भी २ पल डाल देते हैं। अभर (हिं• वि.) उठनेके अयोग्य, न ले चलने अभयालवण (सं० ली.) हरका नमक । इसके योगा, जिसे उठा या खींचकर न ले जा सकें। बनाने का विधि यह है,-मन्दारको छाल, पलाशको अभरन (हिं.) आभरण देखो। छाल, आकन्द, सोजको छाल, लटजौरा, चितामूल, अभरम (हिं० वि०) १ भ्रमविहीन, जो भूलता न हो। वरुणको छाल, अरनीको छाल, खेतपुनर्णवा, गोक्षुर, २ शङ्काशून्य, बेखौफ़, जिसे डर न लगे। (क्रि.-वि०) बहती, भटकटैया, करच, हापरमाली, गुर्चकी छाल, ३ असन्दिग्ध भावमें, शङ्काको छोड़, बेशक । कड़वी तरोई, पुनर्णवा, इन सब चीजोंकी अच्छीतरह | अभर्तृका (सं० स्त्री०) १ अविवाहिता स्त्री, जिस कूटकर एक हांडीमें रख तिलके सूखे पौधोंकी आंख औरतकी शादी न हुई हो। २ विधवा, रांड़, जिस लगाये। जब हांडोको सब चीजें जल जायें, तब औरतका खाविन्द न रहे। Vol. I. 187