पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/७५३

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४ आश्चर्य, ०४६ अभल-अभाव अभल (हिं. वि०) अनुत्तम, खराब, जो भला नञ्-तत्। १ मन्दभागा, बुरौ किस्मत। (त्रि.) . न हो। नज-बहुव्री । २ मन्दभागवान्, बदकिस्मत। अभव (सं० पु०) भू-अप भव उत्पत्तिः, अभावे अभाजन ( स० ली.) अप्राशस्त्र नज-तत्। नज-तत्। १ जन्मका अभाव, पैदायशका न होना। १ मन्दपान, खराब बर्तन। २ मूढ़, बेवकू.फ.। २ विनाश, मटियामेट। नञ्-५ बहुव्री०। ३ मोक्ष, अभार्य (स० पु०) नास्ति भार्या तत्सम्बन्धो वा निजात, छुटकारा। यस्य, बहुव्री. गौणे इखः। जिसके स्त्री न रहे, अभवनीय (सं० त्रि०) न होने वाला, जो न हो। शास्त्र में जिसे विवाह करने के लिये निषेध किया जाये। अभवन्मतयोग (सं० पु.) १ काव्यमें-शब्दयोजना जैसे, नैष्ठिक ब्रह्मचारी आदि। • का दोष, इबारतका ऐब, प्रकट किये जानेवाले अभाव (सं• पु०) भू भावे घञ् भावः, नत्र-तत् । विचार और उनके बतानेवाले शब्द मध्य वियोग, १ अनस्तित्व, सत्ताको शून्यता, असत्व, अनवस्था, जाहिर होनेवाले खयाल और उसे कहनेवाले लफ्ज़ असम्भव, अवतैन, अदममौजूदगी, गैरहाज़िरी, गैबत, के बीच मेलका न मिलना। न होनेको हालत। अभवन्मत-सम्बन्ध, अभवन्मतयोग देखो। वैशेषिको मतसे सात प्रकार जा पदार्थ हैं, उनमें अभव्य (सं० लो०) भू-यत् भव्यम्, अप्राशस्ता नञ् 'अभाव' भी एक पदार्थ है। यही सबके अन्तमें परि- तत्। १ अमङ्गल, दुर्भाग्य, बदशिगूनो, कमबखती। गणित हुओं है। नैयायिक लोगोंने भी इसे सात (त्रि.) नञ् बहुव्री०। २ दुर्भाग्यवान्, बदबख्त । प्रकार पदार्थों में सबके अन्त गिना है। भाषा- ३ न होनेवाला, जो हो न सकता हो। परिच्छे दमें लिखते हैं,- अपूर्व, अनोखा, अजीब । ५ असभ्य, नौच । "ट्रव्यं गुणस्तथा कर्म सामान्य' सविशेषकम् । अभस्त्र (सं.वि.) बेधोंकनी, जिसके पास धोंकनी समवायस्तथाभाव: पदार्थाः सप्त कीर्तिताः ॥". न रहे। द्रव्य, गुण, कर्म, सामान्य, विशेष, समवाय एवं अभस्त्रका (सं० स्त्री०) खराब धोंकनौ, जो धोंकनी अभाव यह सात प्रकारके पदार्थ पदार्थवित् पण्डित ठौक न बनी हो। स्वीकार करते हैं। अभस्त्राका, अभस्त्रिका (सं० स्त्री.) अभस्त्रका देखो। अनेक हो कहते, कि भाव न रहनेको हो अभाव । अभाऊ (हिं.वि.) न भाने या सुहानेवाला, जो कहा जाता है। किन्तु ऐसौ व्याख्या स्पष्ट नहीं

बुरा मालूम हो।

पड़ती। विशेषतः प्रभाव समझनेके लिये-भाव क्या अभाग (सं० पु.) भज-कर्मणि घञ् कुत्वं भागः, है-यह जानना आवश्यक है। सुतरां इसमें अन्योन्या- अभावे नञ्-तत्। १ अंशका अभाव, हिस्से का न श्रयदोष लगता है। अन्योन्याश्य देखो। इसलिये आधुनिक होना। नास्ति भागोऽशो यत्र नञ्-बहुव्री० । २ अंश पण्डित अभावत्वको अखण्डोपाधि कहते हैं। (लक्षण- शून्य, पूर्ण, भागरहित, बेहिस्सा, समूचा, जो तकसौम 'शून्य जाति विशेष अखण्डोपाधि कहाती है)। न किया गया हो। (हिं• पु०) भाग्य देखो। भाव और अभाव इन दोनों में हो अभाव पदार्थ अभागा (हिं० वि०) भाग्यरहित, कमबखूत, जिसका रहता है। जैसे, 'यह घट नहीं-किन्तु पट हैं। नसोब खराब रहे। यहां घटका अभाव, भाव पदार्थ पटमें जिस तरह अभागिन् (सं० त्रि०) न भागो, नञ्-तत् । विषयका रहता, उसीतरह पटका अभाव भी रहा करता है। - अंश न पानेवाला, जिसे जायदादका हिस्सा न मिले। सांख्यसूत्रकारने छः प्रकारके पदार्थका , उल्लेख अभागी, भागिन् देखो। किया है। परन्तु छः प्रकार उल्लेख करते भी अभागा (सं० क्लो०) न भज ण्यत् कुत्वम्, अप्राशस्ता अन्त में लिखा है, 'न वयं षट पदार्थवादिनः ।' हमलोग षट्- I