पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/७५४

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अभाव-अभि ७४७ पदार्थवादी नहीं, अर्थात् सात प्रकारके पदार्थ स्वीकार | अभावना (सं० स्त्री०) १ विचारका अभाव, तज करते हैं। वीज.का न निकलना। २ ध्यानको शून्यता, मज.- अभावको पदार्थ से अलग समझनेपर, 'घट नहीं हवौ ख्यालको गफलत । हैं यह प्रतौति और किसीतरह नहीं हो सकती। अभावनीय ( स० वि०) भू-णिच्-अनीयर्, नज-तत्। इसौसे आधुनिक पण्डित अभावको पदार्थ कहते अचिन्तनीय, अनुत्पादनीय, फिक्र न करने काबिल, हैं। मीमांसक लोगोंने अभावको अधिकरण स्वरूप जिसे सोच न सकें। माना है। अभावपदार्थ (स० पु.) भावरहित वस्तु, मतलबसे बौद्धोंका मत दूसरा है। वह अभावको शून्य, खाली चीज.। आकाश, निरावरण वा निरुपाख्य रूपमें व्यवहार अभावप्रमाण (सं० लौ) भावरहित प्रमाण, जिस करते हैं। गौताके मतसे जी नहीं, वह कभी है सुबूतका कुछ ठिकाना न लगे। कोई-कोई न्यायाचार्य हो नहीं। फिर जो वस्तु है, उसका अभाव कभी कारणके अभावमें भी कार्यको प्रमाणित करते हैं। नहीं होता। अर्थात् इस समय जो जीवादि रहते, गौतम अभावप्रमाणको न मानते थे। महाप्रलयकाल वह सब परमेश्वरमें लीन हो जाते अभावयिट (स' त्रि.) न समझते हुआ, जिसको हैं। पीछे महाप्रलयका अन्त हो जानेपर वह फिर ख्याल न रहता हो, हवाला न देने वाला। जीवरूपसे प्रकट होते हैं। एवं इस समय जी सब अभावसम्पत्ति (सं. स्त्रो०) अभावस्य मिथ्याभूतस्य वस्त स्थूल रूपमें देखौ पड़तों, कालक्रमसे उनका नाश सम्पत्तिः, ६-तत्। मिथ्याभूत पदार्थज्ञान, अध्यास । हो जाने पर वह परमाणुरूप में परिणत होती हैं। शुक्तिको देखनेसे जा रजतवम उठता, उसी ही ज्ञानको इसके बाद फिर वही सब समय विशेषमें अभावसम्पत्ति कहते हैं। अध्यास शब्दमें विवरण देखौ । धारण करती हैं। अभावित (सं० त्रि.) भावना न किया गया, जी न्यायादिके मतसे अभाव प्रथमतः दो भागों में ख्यालमें न आया हो। विभक्त हुआ है। यथा-संसर्गाभाव और अन्योन्या- प्रभाविन् (सं० वि०) न होनेवाला. जे। न होता हो। भाव। फिर संसर्गाभाव एवं ध्वंसाभाव, प्रागभाव अभावी, प्रभाविन् देखो। और अत्यन्ताभाव इन तीन भागोंमें इसे विभक्त अभाषण (सं० लो०) अभाव नन-तत् । भाषणाभाव, करते हैं। मौनभाव, न बोलनेको हालत, खमोशी। सांख्यके मतसे प्रागभाव उत्पत्तिके पूर्वस्थित कारण- अभास (हिं.) आभास देखो। का सूक्ष्मावस्थाविशेष है। उत्पत्तिका आविर्भाव और अभि (सं० अव्य०) न भाति स्वयं शब्दान्तरयोगं ध्वंसको तिराभाव कहते हैं। विना, बाहुलकात् कि। १ को, तयों, तर्फ, सामने । प्रभाव शब्दसे मरण भी समझा जाता है। २ में, भीतर। ३ वास्ते, लिये। ४ से, कारणवश । 'घभावः स्यादसचायामभावी निधनेऽपि च । (विश्वप्रकाश.) ५ पर, ऊपर, बाबत। ६ पास, नजदीक, रूबरू। "रिक्थ मृतायाः कन्धाया ग्रहणौयुः सोदराः स्वयम् । गणरत्नमें अभिके नौ अर्थ लिखे हैं,-१ पूजा, तदभावे भवेन्मातुस्तदभावे भवेत् पितुः ॥" (बौधायन) २ भृशार्थ (अतिशयार्थ ), ३ इच्छा, ४ सौम्य (त्रि.)२ अलङ्कारशास्त्रके मतसे, रत्यादि स्थायि (माधुर्य), ५ आभिमुख्य, ६ सौरूप्य (सुरूपता), भावशून्य, अनुरागरहित । नास्ति भावः सत्व यस्य, ७ वचन, ८ आहार, ८ स्वाध्याय। उदाहरण नीचे नन-बहुव्रौ। ३ मिथ्याभूत। मीमांसक प्रभृति देते हैं,- अभाववाले ग्राहकयोगा विषयको अनुपलब्धिरूप पूजा-त्वामहमभिवन्दे'-मैं आपको वन्दना करता प्रमाणविशेष समझते हैं। इं। भृशार्थ-'परद्रव्येष्वभिध्यानम्'-परके द्रव्यका अतिशय स्थूल रूप-