पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/७५५

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०४८ अभिक-अभिक्षद अभिनिवेश। इच्छा-'कामोऽभिलाषः' । सौम्य-अभिजात- | अभिवति ( सं० स्त्री० ) सौ मात्राका छन्दो- वाचि, मधुर सम्भाषिणीमें। आभिमुख्य–'अभ्युपत्य विशेष। सामने पहुच कर। वचन-'अभिधत्ते' बताता है। अभिक्कत्वन् (संत्रि०) अभि-क-वनिए तुगागमः । पाहार-'अभ्यवहतः' भक्षित यानी खाया हुआ। आभिमुख्यकारी, सामने आनेवाला। स्वाध्याय-'वेदाभ्यासः' वेदका अभ्यास । अभिलप्त (स• त्रि०) अभि-कप्-त । सम्पन्न, नियत, वस्तुतः, अभिके बाद जो शब्द आता, उसीका सर्वथा प्रकाशित, सम्मुख प्रकाशित, भरापूरा, तैयार, अर्थ झलकता है। अभि उस अर्थका द्योतक मात्र जाहिर, हाज़िर। रहेगा। अभिक्रतु (सं० पु.) आभिमुख्य न क्रतुः युद्धकर्म अपि शब्दकी तरह अभिको भी क्रियाके साथ यस्याः, बहुव्री०। बलवान्, युद्धकर्म करनेमें समर्थ, योग देनेसे उपसर्गसंज्ञा एवं गतिसंज्ञा मिलती है। गुस्ताख, गर्म मिज़ाज। इस अर्थमें यह भाग-भिन्न लक्षण, इस्थम्भूताख्यान और अभिक्रन्द (सं० पु.) जयजयकार, ललकार, ऊंचा वीसा बतायेगा। लक्षण–'हरिमभिवर्तते' हरिको लक्ष्य शोर, जोरको आवाज। लगा रहा है। इत्यम्भूताख्यान-भक्तो हरिमभि-भक्त | अभिक्रम (सं० पु.) अभि-क्रम भावे घञ् न वृद्धिः । हरिविषयमें भक्तिविशिष्ट होगा। वीसा-'देव' देव' अभि- १ आरम्भ, आगाज, इब्तिदा। २ आरोहण, चढ़ाई। सिञ्चति' सब देवताके मस्तकपर जल चढ़ाता है। ३ आक्रमण, हमला। अभिक (सं. त्रि.) अभिकामयते, अभि-कन्। अभिक्रमण (सं० ली.) निकट आगमन, नजदीक- कामुक, मैथुनेच्छाविशिष्ट, जिसको शहबत करनेको की आमद, प्राप्ति, पहुंच । खाहिश पैदा हुयो हो। अभिक्रान्त (सं० त्रि.) १ आगत, प्राप्त, पहुंचा अभिकरण ( सं० क्रो०) १ प्रभाव, असर। २ मोहिनी, हुआ। २ आक्रमित, हमला किया गया। ३ श्रारब्ध, जादू। जो शुरू हुआ हो। पभिकाचा (सं० स्त्री०) अभि कामयते, अभि- अभिक्रान्ति (सं. स्त्री.) अभि-क्रम-तिन्। अति- काइ-भावे पटाप् । अभिलाष, वाच्छा, ख़ाहिश, चाह। क्रम, उपक्रम, आमद, पहुंच। पभिकाक्षित (सं० वि०) अभि काश्ते स्म, | अभिक्रान्तिन् (सं. स्त्री० ) अभिक्रान्तमत्वेन इष्टादि, पभिकाङ्क्ष-कर्मणि क्त। अभिलषित, वाञ्छित, इनि । उपक्रमकर्ता, उद्योगकर्ता, चलनेवाला, काम- लिप्सित, चाहा हुआ, खाहिश किया गया। अभिकाङ क्षिन् (सं० वि०) अभि-काङ्क्षते, अभि- | अभिक्रामम् (सं• अव्य०) अभिक्रम पाभोक्षस्य काङ क्ष-णिनि। अभिलाषयुक्त, आकाङ्क्षाविशिष्ट, णमुल। अभिमुख आकर, नजदीक पहुंचके । चाहने या ख़ाहिश रखनेवाला, जो आकाङ्क्षा | अभिक्रोश (सं० पु०) अभि-क्रुश भावे धा । निन्दा, करता हो। हिकारत। अभिकाम (सं० वि०) अभिकामयते, अभि-कम- | अभिक्रोशक (सं० त्रि०) अभि-क्रुश-खुल् । निन्दक, णिच्-अच् । १ काममान, इच्छुक, खाहिशमन्द, चाहने आक्रोशक, हिकारत करनेवाला, जो किसीको बुराई वाला। (पु.) भावे घञ् । २ अभिलाष, वाहिश बताता हो। पर । (स्त्री०) अभिकामिकी। अभिक्षत्तु (स. त्रि.) अभि-चद-वच्। हिंसक, पभिकामिक (सं. त्रि.) इच्छाविशिष्ट, मरजौका। कातिल, मार डालनेवाला । (स्त्रो०) अभिक्षत्री। अभिकाल (सं० पु०) रामायणाक्तं सुप्राचीन नगरविशेष । अभिक्षद (सं० त्रि.) अभि-क्षद-अच्। हिंसक,. (रामायण राप१७) कातिल, मार डालनेवाला । (खौ) अभिचदा। 1 काजी।