पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/७६

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अक्षरलिपि ७२ पूर्वकालमें प्रबल हो असुरीय, मिदीय प्रभृति पुराने दिया गया है, कि मग विपरीत भावस पढ़ते थे राज्य जीते। भविष्यपुराणक मतसे ऋजिवा नामके भविष्यपुराणमें लिखा है- मिहिरगोत्रमें एक ऋषि हुए थे। उन्हींको कन्याके 'विपरीत क्रममे वेदाध्ययन करनकै कारण इनका गर्भसे जरशस्त्र (जरथुस्त्रका) जन्म है। उनका जन्म नाम 'मग' पड़ा था। ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद ठीक वैधरूपसे न होनेके कारण वह और उनके वंश और अथर्ववेद जैसे ब्राह्मणों के चार वेद है, वैसही धर पुराणमतसे 'अग्निजात्य और उनका पिटकुल मगोंके भी इनसे विपरीत चार वेद हैं, जो विद, अज्ञात रहनेके कारण हेरोदोतस्ने उनके वंशधरीको विश्वरद (या विस्परद्), विदाद और आङ्गिरम् नामसे माकुलके अरिअस्प या आर्जव (अर्थात् ऋजिवा पुकारे जाते हैं।' के गोत्रापत्य) बताकर ही प्रकाशित किया। भविष्यपुराणको इस युक्तिस भलीभांति समझ लिदियाके प्रसिद्ध यूनानी पण्डित जानथोस् सन् ई० पड़ता है, कि भारतके चार वेद जैम वामम दक्षिणको से ४७० वर्ष पहले ही लिख गये हैं, कि जरथुस्त्र य यानी ब्राहीलिपिस लिखे जात थे, वमही शाकद्वीपीय युद्धसे कोई ६०० वर्ष पहले आविर्भूत हुए थे। आरि मग अपने आदिधर्म ग्रन्थ ब्राह्मोलिपिक विपरोत भावने ष्टटल और इउडोक्सासके मतानुसार प्लेटोसे ६.०० यानी दाहनी ओरसे बाई ओरको पढ़त और लिखते वर्ष पहले जरथुस्त्रका अभ्युदय हुआ था। फिर प्र थे। इसी पाठविपर्ययसे उनका 'मग' पड़ा। सिद्ध ऐतिहासिक प्लिनिने य-युद्धसे ५००० हज़ार वर्ष यह 'मग' नाम अवस्ताके प्राचीनांश गामि भो मिला पहले जरथुस्त्रका आविर्भाव माना। इधर बाबिलोन है। ऐसे स्थलमें इसमें सन्देह नहीं, कि ४५ हज़ार के ऐतिहासिक बेरोसस्ने लिखा है, कि जरथुस्त्र किसी वर्ष पहले विपर्यस्त-लिपि या खरोष्ठीको उत्पत्ति समय बाबिलोनके अधीश्वर थे ; उनके वंशधरोंने यहां हुई थी। प्राचीनतर ऐतिहासिक और इस देशके पौरा- सन् ई०के २२०० वर्ष पहलेसे २००० वर्ष पहले तक णिक प्रायः सभी इस बात का आभास दे गये हैं, कि आधिपत्य किया था। पूर्वोक्त नाना ऐतिहासिकीको ४।५ हजार वर्ष पहले शाकहोपस बाबिलोन, यहां प्रमाणावलीसे देखते हैं, कि पूर्वकालमें कई जरथुस्त्र * "विपर्यस्त न वेदन मगा गायन्ताती मगाः । हुए थे। जरथुस्त्रके वंशधर भी जरथुस्त्रके नामसे परि- ऋग्वेदीऽथ यजुर्वेदः सामवेदस्वथर्वणः ॥ चय देते रहे । चार हज़ार वर्ष से भी बहुत पहले उ ब्रमणीकात्तथा वैदा मगानामपि मत्रत ॥ नका अभ्युदय हुआ था। उन्होंके प्रभावसे शकोंके आदि तपद विपरीतास्तु तेषां वेदाः प्रकीर्तिताः।" (भविष्य १४० १०) मित्र-धर्मका अधःपतन हुआ, और अग्निपूजा हो भविष्यपुराणका प्रमाण देख कोई उसे प्राथनिक न ममझ नम्बई- सर्वत्र प्रचलित हुई। पहले ही इस बातका आभास दे से प्रकाशित भविष्यपुराणवाले 'ब्राह्मपञ्च' के सिवा दृम की आधुनिक सम- झने के लिये यथेष्ट कारण रहते भी इसमें सन्द ह नहीं कि ब्राह्मपर्व बात

  • “गोव मिहिरमित्याहु व्रतं तु ब्राह्ममुत्तमम् ।

पुराना है। यहां तक, कि आपस्तम्वधर्मसूत्र (२।२४।५६)में इस भविष्यत्पुराण- ऋजिवा नाम धर्मात्मा ऋषिरासीत् पुरानघ ।" का उल्लेख रहा है । यह धर्म सूत्र अध्यापक बृहलरकै भतानमार अन्ततः सन् + "दोक्त विधिमुत्सृज्य यथोहं लवितस्तया । ई०से पहलेकै ५वें शताब्दका है। इस ग्रन्थम बुद्धप्रभावका निदर्शन न तस्मात् मगः समुत्पन्नस्तव पुत्रो भविष्यति ॥ रहने से इसे हम सन् ई०से पहलेकै हठं शताब्दका भी पूर्ववत्ता खयाल जरशस्त्र इति ख्याती वंशकीर्तिविवर्धनः । करते हैं। इससे भी पहले मूल भविष्यत् पुराण लिखा गया था। अग्रिजात्या मगा प्रोक्ता सीमजात्या विजातयः ॥" + पूर्वतन यूनानी ऐतिहासिकीको वर्णनाकै अनुसार वर्तमान युरोपीय (भविष्ये १३८।४३-४५) पुराविदीने स्थिर किया है, कि वर्तमान तातार, एशियास्थ रुस (साइबेरिया, । भविष्यपुराणसे भी मालूम होता है, कि शाकद्दीपने मग आधि मस्कोबी, क्रिमिया), पोलेप, हुङ्गेरियाका कितना ही अंश. लिथुयनिया, पत्य करते थे- जर्मनीका उत्तरांश, स्वीडेन, नारवै प्रभृति स्थानों तक पुराना स्किदिया “एभिर्यजन्ति भूयिष्ठ तस्मिन् हौपे मगाधिपाः । या शाकदीप विस्तृत था [वङ्गर जातीय इतिहास, ब्राह्मण काए, ४थांश विद्यावन्त कुले बेटाः शौचाचारसमन्विताः ॥ (१४० १०) ६-६ पृष्ठ द्रष्टव्य है।