पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/७६०

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अभिजित -अभिज्ञानशकुन्तल ७५३ राणि नक्षत्राणि कर्तरि विप् । नक्षत्रविशेष। यह दो और समझमें न आनेवाली बात कहनेसे अभिज्ञातार्थ मिले हुए तारेसे बना और देखने में सिंघाड़े जैसा होता पड़ता है। है। ब्रह्मा इसके अधिपति हैं। उत्तराषाढ़ा नक्षत्रके | अभिज्ञान (स. क्लो०) अभिज्ञायते ज्ञातुं शक्यते शेष १५ दण्ड और श्रवणा , नक्षत्रके प्रथम ४ दण्ड, अनेन, अभि-ज्ञा करणे लुप्रट । १.चिड़, निशान्, जिस इन १८ दण्डोंमें, अभिजित् नक्षत्र पड़ता है। चिह्नको देख-सुनकर पूर्वविषय स्मरण आ जाये। अभिजित् नक्षत्रमें जन्म लेनेसे मनुष्य सुन्दर और भावे लुषट्। २ निश्चय ज्ञान, तहकोक, जो बात ठीक सज्जन होगा। तौरपर मालूम हो। ३ स्मृति, याद । ४ ज्ञान, इल्म । प्राभिमुख्य न.पश्चिमावस्थितां छायां जयति प्राग्- | अभिज्ञानपत्र (स. क्लो) सनद, सरटीफिकेट । दिग्गामिनी करोति वा, अभि-जि-क्विप् । २ पश्चिम | अभिज्ञानशकुन्तल (सं० लो० ) अभिज्ञानं अङ्गरोय- दिशाको छायाके पूर्वदिशामें लौट जानेका, समय, दर्शनेन पूर्वविवरणस्मरणं शकुन्तलाया यत्र, बहुव्रौ०, दिनका आठवां मुहते, कुतुप काल । गौणे इस्खः । १ विखामित्रके औरस और मेनकाके "अपराण तु सम्प्राप्त अभिजिद्रोहियोदये । गर्भसे उत्पन्न हुयो कन्या। २ संस्कृतभाषाका नाटक यदव दीयते जन्तीस्तदचयसदाइतम् ॥": मत्स्यपुराण विशेष । अभिज्ञानशकुन्तल संस्कृत-भाषामें सर्वोत्कृष्ट अभिजित् एवं रौहिण रूप गौणः अपराह्न प्राप्त नाटक है। राजा विक्रमादित्यके सभासद कालि- होते समय जन्तु : अर्थात् पिताके उद्देश्यसे जो दासने इसे बनाया था। दिया जाता है, उसका नाश कभी नहीं होता। पूर्वकालमें राजर्षि विश्वामित्र कठिन तपस्या करने "अभिजिदष्टमघटिका रौहिण नवम घटिका।” (स्मात) ३ यात्रा लगे। तपमें विघ्न डालनेके लिये देवराज इन्द्रने करनेका लग्नविशेष। ४ पच्चीस दिन अधिक पांच मेनकाको भेजा था। उसी समय विश्वामित्रके औरस मास। ५ पच्चीस दिन अधिक पांच मासमें करने और मेनकाके गर्भसे. एक कन्या उत्पन्न हुई। योग्य अतिरात्र यागादि। ६ . यदुवंशीय भव वा कन्याको वनमें ही छोड़कर मेनका स्वर्ग चली गई चन्दनोदकदुन्दुभिके पुत्र। (विषणुपुराण ) थों। कई शुकन्तों (पक्षियों )के पंखसे ढांक रक्षा अभिजित. (सं०. पु०) अभिजीयात् अन्यान्, अभि करने कारण कन्याका नाम शकुन्तला हुआ। उसके जि संज्ञायां त। अर्धरात्र सम्बन्धी मुहूर्त । बाद कख मुनि इस कन्याका लालन पालन करते अभिजिति. (सं० स्त्री.), अभि-जि भावे तिन् । अभि रहे। क्रमसे शकुन्तलाका यौवनकाल उपस्थित हुआ। जय, सर्वप्रकार जय, जीत, फतेह । महर्षि कण्ख आश्रममें न रहे, सोमतीर्थ गये थे। उसी अभिन्न (स' त्रि.) अभिजानाति, अभि-ज्ञा-क। समय दुष्मन्त राजाने आश्रममें पहुंच शकुन्तलाके साथ १ निपुण, होशियार। २. बुद्धिमान्, जानकार। गान्धर्व विवाह कर लिया। अभिज्ञा. (सं० स्त्री०) अभि-ज्ञा-अङ्-टाए। १ प्रथ. दुष्मन्त महाराज-चक्रवर्ती रहे, अन्तःपुरमें असंख्य मोत्पन्न ज्ञान, जो समझ पहले ही आ जाती हो। राजमहिषी विद्यमान थीं। आखेट करने जाते भी, २ स्मति, याद। पहले देख-सुनकर मनमें जो दृढ़ उनके साथ पुष्पमालाभूषित यवनकन्या हो लेते रहो। संस्कार उपजता, उसे अभिन्ना कहते हैं। तपोवनमें आकर वल्कलधारिणी ऋषिकन्याके साथ अभिज्ञात (सं० वि०) अभि-जायते' स्म, अभि-ज्ञा वह चुपचाप विवाह कर गये। अतएव राजधानी- १ पूर्वपरिचित, प्रतीत, धृत, पहलेसे को लौट जानेपर शकुन्तला उन्हें कितने दिन याद जाना हुआ। रहती! पौछे भूल न जाने और साद रखने के लिये अभिज्ञातार्थ (सं० पु.) निग्रहस्थानविशेष, बहसमें ही उन्होंने अपनी अंगूठी उतार कर शकुन्तलाको रुक जानेकी खास जगह। वादीके बेफायदा बकने दे दी थी। Vol. I. 189 - कर्मणि त। !