पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/७६१

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०५४ अभिज्ञापक-अभितोभाव महाराज अपनी राजधानी वापस गये, इधर | अभिज्ञाय (वै० वि०) अभितः सम्मुखे जानुनी प्रस्य, शकुन्तला एक मनसे अपने प्राणपतिको चिन्ता करने प्रादि-बहुव्री। १ सामने घुटने रखकर बैठनेवाला, लगों। दुश्मन्तको चिन्तामें वह ऐसी लौन हो गयी जो बैठने में घुटने सामने रखता हो। (अव्य० ) थी, कि बाहरका ज्ञान उन्हें कुछ भी न रहा। वैसे ही २ घुटनोंके बल, घुटनों तक। समय अतिथि होनेके लिये दुर्वासा हारपर आ खड़े अभिन्न (सं० त्रि०) सामने घुटने रखकर बैठनेवाला। हुए। शकुन्तलाने उनकी अभ्यर्थना न की थी। उससे | अभिडीन (सं० ली.) उड़ान, किसीकी ओरको क्रुद्ध होकर दुर्वासाने शाप दिया,-"तुम जिसकी उड़ जाना। चिन्तामें लीन हो, वह तुम्हें भूल जायगा।" इसौ | अभितप्त (सं० त्रि.) १ मुलसा हुआ, जो जल गया अभिशापसे शकुन्तलाके हाथकी अंगूठी शचीतीर्थमें | हो। २ दुःखी, रजीदह । गिर पड़ी थी। कुछ दिनों बाद जब महाराजने वह अभितराम् (सं० अव्य') अभि प्रकर्षे तरप् आम् । अंगूठी पायो, तब शकुन्तलाको पहचान सके । अतिशय आभिमुख्य, शनैः शनैः आभिमुख्य, अत्यन्त अंगूठी द्वारा अभिज्ञान अर्थात् शकुन्तलाका स्मरण सम्मुखीन होकर, अल्प-अल्प सम्मुखौन बनके, ज्यादा होनेपर बहुव्रीहि समाससे 'अभिज्ञानशकुन्तल' रूप. नज़दीक, बिलकुल सामने । सिद्धि हुई है। इसी आख्यायिकाको अवलम्बनकर अभितस् (सं० अव्य० ) अभि-तसिल । १ ओर, तर्फ । कालिदासने जो पुस्तक लिखी, उसका नाम भी २ सामीप्य, नजदीक, पास, करीब, बगलमें। ३ उभ- 'अभिज्ञानशकुन्तल' है। यतः, दोनो ओरसे । ४ उभयार्थ, आगे-पौछ । साधारण व्यवहारानुसार यह नाटक सात अहमें ५ साकल्य, सब ओर, इधर-उधर। ६ शीघ्र, जल्द, समाप्त हुआ है। इनमें एक शुद्ध विष्कम्भक, एक तेजोसे। विष्कम्भक, और एक प्रवेशक है। इस नाटकके | अभिताड़ित (स'• त्रि०) मारा, पौटा या चोट प्रधान चरित्र शकुन्तला और दुष्मन्त राजा हैं। मूल पहुंचाया हुआ, जो ठोका जा चुका हो । आख्यायिका महाभारतसे ली गई है। किन्तु महा- | अभिताप (सं० पु.) अभि-तप-घञ् । १ अतिशय भारतको शकुन्तला और कालिदासको शकुन्तलामें सन्ताप, हदसे ज्यादा गरमी। २ संक्षोभ, उद्देग, बहुत प्रभेद है। कालिदासने शकुन्तलाके नामपर उपप्लव, आकुलत्व, बेचैनी, बेकली, इजतिराब, घबरा- पुस्तकका नाम रखा है सही, परन्तु विचार कर हट। ३ सर्वाङ्गताप, सारे जिस्मकी जलन। ४ अन्त्र- देखनेसे इसे नायक-प्रधान नाटक कहना चाहिये। ज्वर, आंतका बुखार। इसको कथा प्रधानतः तौन अंशोंमें विभक्त है- अभिताम्र (सं० पु०) अभि-तम औणादिक रक् १ शकुन्तलाका विवाह, २ शकुन्तलाका प्रस्थान और दीर्घश्च । १ अतिशय ताम्म्र, अत्यन्त ताम्रवर्ण, गहरा ३ दुष्मन्तके साथ शकुन्तलाका पुनर्मिलन । नाटकका लाल रङ्ग, जो रङ्ग निहायत सुख हो। (त्रि.) २ अति- चौथा अब अतिशय उत्कष्ट है। इसके अतिरिक्त शय ताम्रवर्णविशिष्ट, गहरा लाल, निहायत सुख । आख्यायिकामें आदिसे पन्ततक मनुष्थचरित उत्तम अभितिग्मरश्मि (स.अव्य) सूर्यको ओर, आफ- रूपसे चित्रित हुआ है। युरोपमें भी सब लोग इस ताबको तर्फ। पुस्तकका आदर किया करते हैं। दुभन्त-जैसे धार्मिक | अभिप्त (सं० वि० ) अतिढप्त, परिपूर्णकाम, पर्याप्त- और प्रवीण राजाका चरित्र कालिदासने खूब लिखा काम, सन्तर्पित, संपरिपूर्ण, आसूदा, छका हुआ, जो है, पुस्तकमें कहीं कोई दोष नहीं देख पड़ता। पेट भर चुका हो। अभिज्ञापक (सं.वि.) बतानेवाला, जो खबर अभितोभाव (सं० पु०) उभयपक्षपर रहनेको अवस्था, पहुंचाता हो। जिस हालतमें दोनो सर्फ सकें।