पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/७६५

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०५८ अभिध्या-अभिनन्दन २ ग्रन्थ प्रतिपाद्य, वर्णनौय, जिसका बयान किया शक्ति गौड़से काश्मीर चले गये थे। सदुक्ति कर्णामृतमें जाये । (क्लो० ) ३ वाच्यार्थ, सङ्केतयुक्त अर्थ, कहनेको इनके कितने ही श्लोक उद्धृत हुये. उनमें इन्होंने बात, इशारेका मतलब। भवभूति, वाण, कमलायुध एवं वाक्पतिराजका अभिध्या (सं• स्त्री०) अभिधायते, अभि-ध्यै चिन्तने नामोल्लेख किया और राजशेखरको अपना सम- अङ-टाप्। १ परधन-हरणेच्छा, दूसरेको चीज़को सामयिक बताया है। इनके बनाये कादम्बरीकथा- उठानेका हौसला। २ विषयप्रार्थना, चिन्ता, आलो. सार और योगवाशिष्ठसार नामक दो संस्कृतग्रन्थ चना, खाहिश तबीयत, चाह । प्रसिद्ध हैं। ८कोई प्रसिद्ध कवि। यह शतानन्द के अभिध्यातव्य (स० त्रि०) अभि-ध्यै-तव्य। सर्वदा पुत्र रहे। रामचरित नामक संस्कृत महाकाव्य इन्होंने चिन्तनीय, हमेशा याद रखने काबिल, जिसकी बनाया था। खाहिश बनी रहे। अभिनन्दन (सं० क्लो०) अभि-नन्द भावे स्थु ट। अभिध्यान (सं० ली.) अभि-ध्यै-लुट् । १ पुनः १ सन्तोष, अनुमोदन, खुशो, कनाअत। णिच-लुट् । पुनः परधनका अभिनिवेश, हरणेच्छा, बार-बार दूसरे २ सन्तोषके निमित्त प्रशंसा, जी तारीफ खुशीके लिये का रुपया लेनेकी तबीयत । २ विषयप्रार्थना, पालो- ३ इच्छा, मरज़ी। (त्रि०) कर्तरि ल्युट । चना, लालच । ३ खाहिश, इच्छा। ४ आनन्दजनक, उत्साहप्रवर्तक, प्रशंसाकारी, खुश- अभिध्यायत् (सं० त्रि०) इच्छुक, चाहनेवाला, जिसे करनेवाला, जो हौसला बढ़ाता हो। लालच लगा रहे। अभिनन्दन-चतुर्थ जैन तीर्थकर। इनके पिताका अभिध्यायमान (सं० वि०) ध्यान किया जानेवाला, सम्बरराज और माताका नाम सिद्धार्था रहा। इनकी जिसका ख्याल लगा रहे। चवनतिथि वैशाख शुक्ला चतुर्थी थी। विमानका नाम अभिनत (सत्रि०) आनमित, आभुम्न, सुका जयन्त कहते हैं। माघ शुक्ला द्वितीया पुनर्वसु नक्षत्रको हुअा, रागिब । मिथुन राशिके समय आठ मास अट्ठाईस दिन गर्भवास अभिनत (सं.वि.) अभिनयते स्म, अभि-नह-त । बाद इक्ष्वाकुवंशसे अयोध्या नगरौमें इन्होंने जन्म लिया सर्वथा बद्द, सब तरह बंधा हुआ। था। इनका चिह्न वानर, शरीरमान २५० धनु, आयु- अभिनवाक्ष (सं० वि०) बद्दनेत्र, अवरुदनयन, मान ५०००.०० पूर्व और वर्ण सुवर्ण रहा। यथाकाल जिसकी आंखपर परदा पड़ा रहे। इन्होंने विवाह किया और पिराज्यपर अधिष्ठित अभिनन्द (सं. पु.) अभि-नन्द-घज। १ सुख, हुये। अल्प वयससे हो इनके हृदयमें वैराग्य उठा खुशीका मनाना, खुश रहनेको हालत। २ प्रशंसा, था। यह अयोध्यामें एक सहस्त्र साधुके साथ माघ तारीफ। ३ इच्छा, उत्कण्डा, ख,ाहिश, चाह। शुक्ला हादशौकी दीक्षित हुये। दो दिन उपवास बाद ४ सन्तोष, कनायत, दिलजमयो। (त्रि०) ५ उत्साह इन्द्रदत्तके घरमें सर्वप्रथम इन्होंने दुग्धपारण किया प्रदर्शन द्वारा प्रवर्तक, जो हौसला दे रागिब करता था। अट्ठारह वर्ष काल घर रह अयोध्या नगरीमें हौ हो। अभितो नन्दः दुःखाभावो यत्र, ७-बहुव्री० । पौष कृष्णा चतुर्दशीको प्रियङ्ग वृक्षमूलपर इन्हें ज्ञान- ६ परब्रह्मा, परमामा। लाभ हुआ। उसके बाद कायोत्सर्ग द्वारा चैत्र शुक्ला ७ कोई प्रसिद्ध काश्मौरी पण्डित। इन्हें गौड़ाभि पञ्चमीको समेतशिखरमें इन्होंने मोक्ष पाया था। इनके नन्द भी कहते रहे। इनके पिताका नाम वृत्तिकार प्रथम गणधरका वचनाभ और प्रथम प्रार्याका नाम भट्ट जयन्त, पितामहका कान्त और प्रपितामहका अजिता था। गणधर-संख्या ११६, साधु ३०००००, नाम कल्याण था। वृद्धपितामह शक्लिस्वामौ काश्मीर साध्वी चतुर्दश पूर्व १५००, केवली १४००, पति मुक्तापौड़के मन्त्री रहे। शक्तिस्वामौके पितामह श्रावक २८८००० और धाविका ५२७००० हैं। 1