पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/७७

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अक्षरलिपि ७३ तक कि, मिश्रके उपकूल पर्यन्त मगाधिपोंका आधि कोई १४६२ वर्ष पहले हम “फेनेख” नामसे फिनिकी- पत्य फैल गया था। इसमें सन्देह नहीं, कि उनका का उल्लेख पाते हैं। इस बातमें हम विशेष सन्देह आधिपत्य फैलनेके साथ पुरानी खरोडीलिपि भी सब करनेका कोई कारण नहीं देखते, कि इस समयसे जगह चल पड़ी थी। इसीसे असुरोय (Assyria), पहले ही यहां फिनिक संसव हो गया था। फिर भी बाबिलोन प्रभृति स्थानोंको लिपिके साथ खरोष्ठोलिपि विपर्यय या दक्षिणसे वाममुखीलिपिको सृष्टि नहीं का सादृश्य बना रहा है। [भोजक ब्राह्मण देखी।] हुई । इस समयके पत्रपट (Papyrus)में अङ्कित सङ्केत- अब हम समझ सकते हैं, कि अरमौय श्रेणी लिपि (Hieratic)के जिन अक्षरीका आभास मिलता है, को फिनिकलिपिसे खरोष्ठीका उद्भव नहीं हुआ है। उनका एक 'क' अक्षर, हम पहले हो लिख चुके हैं कितनी ही लिपियां जाननेवाले आइजाक् टेलरने कि, दाक्षिणात्यके सुप्राचीन बट्ट लेत्तूके अक्षरों में पाया अपनी “अक्षरमाला" पुस्तकमें लिखा है, कि नेबुकाद गया है। सलोमनके इतिहाससे इसका आभास मिला नेजार और नेरिग्लिसारको (सन् ई०से ५६० वर्ष है, कि भारतीय पणिक् खुष्ट-जन्मके कई हज़ार वर्ष पहले ) ईटोंपर ही अरमीय लिपिका स्पष्ट निदर्शन पहलेसे मिश्र प्रभृति स्थानोंमें वाणिज्य करते रहे थे। मिलता है। किन्तु इससे भी पूर्वकार बाबिलोनीय कोई-कोई पणिकोंने मिश्रमें पहुंच द्राविड़ को सभ्यता- लिपिसे खरोष्ठीका निदर्शन निकला है और यह बात का रेखापात किया और उन्हींके साथ दाक्षिणात्यको हम पहले ही कह चुके हैं, कि इससे भी बहुत पहले अति प्राचीन बट्टे लेतूने सङ्केतलिपिके स्थानको अधिकार यहां जरथुस्त्र-वंश आधिपत्य करता था। केवल बाबि किया। इससे पहले मिश्रमें केवल चित्रलिपिका हो लोनको ही बात नहीं, दूसरे स्थानों में भी सन् ई० के प्रचलन था। द्राविडीय पणिकोंके साथ सङ्केतलिपिके ७वे शताब्दसे पहले अरमीयलिपिका पुष्टिंसाधन न इजिपी प्रवेश करनेपर उसमें ही पत्रपट (Papyrus) हुआ था। अङ्कित करनेकी प्रथा चलो। जो लोग कहते हैं, कि प्रायः सन् ई से पहले के ७शताब्दमें फिनिकों पाश्चात्य देशसे फिनिकोंने जा द्राविड़में सेमेटिक सभ्यता- की राजशक्ति और उनके वाणिज्य-प्रभावका अवसान का बीज बोया, उनसे हमारा मत नहीं मिलता है। होनेसे फ़िनिसियाको आदि अक्षरमालासे ही उत्तर ऐसा होते मिश्रमें जैसे चित्राक्षर प्रचलित हैं, दाक्षि- सीरिया में अरमीयलिपि बनाई गई थी। आदि फिनिक णात्यमें भी वैसेही चित्राक्षरोंका कोई सन्धान हाथ लिपि भी दो प्रकारको देख पड़ती है। इन दोनों में आता। जब यह नहीं, फिर दाक्षिणात्यको बट्ट- जो सबसे पुरानो आविष्कृत हुई, वह सन् ई से | लेत्तूके 'अ' 'द' प्रभृति कोई-कोई अक्षरोंके साथ पहले १०वेंके अन्त या ११वे शताब्दके आदिमें खोदी मिश्रको सङ्केतलिपिका मेल देख पड़ता और उस गई थी। प्राचीन निनभ-नगरीमें कोलरूपा शिल्प समयमें चित्राक्षरोंका असदभाव भी न था, तब इस लिपिके साथ प्राचीन फिनिकलिपि उत्कीर्ण देखी विषयमें क्या आश्चर्य है, कि भारतवासियोंने नहीं; जाती है। जो हो, बेरोसासका मत मानते भी हम मिश्रवासियोंने हो उनसे सुविधा-जनक सङ्कत- देखते हैं, कि हृष्ट-जन्मके दो हजार वर्ष से भी पहले लिपि ग्रहण की होगी। इस सङ्केतलिपिका हो जरथुस्त्रके वंशधर असुरीयामें राज्य करते थे। किन्तु भिन्नरूप निदर्शन सुप्राचीन बाबिलोन और असुरोय उसी सुप्राचीनकालमें फिनिकलिपिका सन्धान तक नहीं कोललिपिमें वर्तमान रहा है। केवल मिश्रको मिलता। मिथपति आहमेशको चित्रलिपिमें सन् ई०से ही बात नहीं; वाणिज्य व्यपदेशसे फिनिकोंने जर-

  • Taylor's Alphabets, Vol. I. p. 247.

थुस्त्रोंके अधिकारमुक्त राज्यमें आ विपर्यस्तलिपि- † Taylor's Alphabets, Vol. I. p. 198. का व्यवहार लोगोंको सिखाया और फिर युरोपमें Taylor's Alphabets, Vol. I. p. 216. पहुच इसका प्रचार किया होगा। इसी कारण, १८